Shakti Peeths | हिन्दू धर्म में जैसे सप्तपुरी, चार धाम की यात्रा, भगवान शिव की 12 ज्योतिर्लिंग का महत्व है ऐसे ही माता सती के शक्तिपीठों का भी महत्व है जो कि पूरे भारत के अलग-अलग स्थान पर स्थापित है. देवी भागवत पुराण में 51 शक्तिपीठों का उल्लेख मिलता है और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का उल्लेख मिलता है तो वही तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ का वर्णन किया गया है. देवी भागवत पुराण के अनुसार 51 शक्ति पीठ में से कुछ दूसरे देश यानी कि विदेश में भी स्थापित है भारत में 42 बांग्लादेश में चार श्रीलंका में एक तिब्बत में एक पाकिस्तान में एक और नेपाल में दो शक्तिपीठ है.
देवी भागवत में बताए गए सभी शक्तिपीठों में अपारशक्ति के अलावा सभी शक्तिपीठों की अपनी अपनी पहचान और यह सभी कई रहस्यों से भरे हुए हैं लेकिन भारत के सभी शक्तिपीठों में प्रमुख ऐसी शक्तिपीठ हैं जिनकी महिमा अलग होने के साथ ही इनमें गहरे रहस्य भी छिपे हुए हैं जिसको आज तक कोई नही समझ पाया वैसे तो सभी शक्तिपीठों में नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ होती है लेकिन माना जाता है कि कि इन प्रमुख शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से ही सभी कष्टों से मुक्ति मिलने के अलावा मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं.
Shakti Peeths | जानते हैं प्रमुख शक्तिपीठों को जिनके दर्शन से ही सारे कष्टों से मुक्ति मिलती हैं :
1) कालीघाट मंदिर :
कोलकाता में स्थित कालीघाट मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है मान्यता है कि कालीघाट का यह काली मंदिर एक प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है यहां माता सती के दाएं पावं की चार उंगलियां (अंगूठा छोड़कर) गिरी थी. यहां की शक्ति कालिका व भैरव नकुलेश है. इस शक्तिपीठ में काली मां की भव्य मूर्ति विराजित है जिनकी लंबी लाल जिव्हा जो सोने की बनी हुई हैं और मुख से बाहर निकली हुई है, दांत सोने के हैं आंखें और सिर भी गेरुआ सिंदूर के रंग से बना है और माथे पर तिलक भी गेरुआ सिंदूर का ही है. देवी मां की मूर्ति के हाथ स्वर्ण आभूषणों और गला लाल फूल की माला से सुसज्जित हैं.
2) अम्बाजी का मंदिर :
गुजरात और राजस्थान की सीमा बनासकांठा जिले की दांता तालुका में स्थित पहाड़ियों के ऊपर यह मंदिर देवी सती को समर्पित 51 शक्तिपीठ में से प्रमुख है धार्मिक मान्यता है कि इसी जगह पर माता सती का हृदय गिरा था. अंबाजी का मंदिर एक अनोखा मंदिर है क्योंकि यहां देवी मां की कोई प्रतिमा (मूर्ति) नहीं है बल्कि प्रतिमा की जगह यहां एक बहुत ही पवित्र श्री यंत्र है जिसकी प्रमुख रूप से पूजा की जाती है लेकिन इसमें भी एक खास बात है कि श्री यंत्र को सामान्य आंखों से देख पाना मुश्किल है और ना ही इसकी फोटो खींच सकते हैं. यहां भक्त आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा किया करते हैं.
3) नैना देवी मंदिर :
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में नैना देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख है मान्यता है कि यहां पर माता सती के नेत्र गिरे थे इसलिए इस मंदिर का नाम श्री नैना देवी पड़ा. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अगर किसी की आंखों में किसी तरह की परेशानी हो या कोई बीमारी हो तो श्रद्धालु माता के दरबार में चांदी के नैत्र अर्पित करते है तो उसकी आंखों की रोशनी ठीक हो जाती है यही कारण है कि बरसों से श्रद्धालु अपनी आंखों की कुशलता के लिए माता श्री नैना देवी के दरबार में चांदी के नेत्र को चढ़ाने आते हैं.
4) हरसिद्धि माता मंदिर :
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि मंदिर 51 शक्तिपीठों में प्रमुख है जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है मान्यता है कि यहां माता सती का बांया हाथ और होंठ का ऊपरी हिस्सा गिरा था. यह मंदिर महाकाल ज्योतिर्लिंग के नजदीक हैं इस तरह एक ही शहर उज्जैन में भगवान शिव और माता शक्ति दोनों के स्थान हैं. इस मंदिर की परंपराएं भी बहुत ही महत्वपूर्ण और खास है मंदिर के सामने दो दीप स्तंभ हैं जो लगभग 51 फीट ऊंचे है. दोनों दीप स्तंभों में लगभग 1 हजार 11 दीपक है कहा जाता है कि इस स्तंभों पर दीप जलाने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता मान्यता है कि स्तंभ पर दीप जलाते समय बोली गई हर मनोकामना पूर्ण होती है.
5) कामख्या देवी मंदिर :
असम के गुवाहाटी में कामाख्या देवी का मंदिर है मान्यता है की मां सती का योनि भाग यही कट कर गिरा था यही कारण है कि यहां उनकी कोई मूर्ति नहीं बल्कि योनि की पूजा की जाती है और आज यह जगह शक्तिशाली पीठ कहलाती है. माना जाता है कि कामाख्या मंदिर 22 जून से 25 जून तीन दिनों के लिए बंद रहता है और इन दोनों पुरुष भी मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि माना जाता है कि इन दोनों में माता सती रजस्वला रहती है और इन तीन दोनों में माता के दरबार में सफेद कपड़ा रखा जाता है जो की तीन दिनों में लाल रंग का हो जाता है इस कपड़े को अम्बूवाची वस्त्र कहा जाता है. यहां पर भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने के बाद कन्या भोजन कराया जाता है वहीं कुछ लोग यहां जानवरों की बलि भी देते हैं लेकिन यहां मादा जानवरों की बाली नहीं दी जाती.
6) तारापीठ :
पश्चिम बंगाल के बिरभुल जिले में यह शक्तिपीठ स्थित है मान्यता है कि यहां देवी सती की आंख का तारा गिरा था इसी कारण इसकी प्रसिद्धि तारापीठ के नाम से हुई. तारापीठ में आद्या देवी शक्ति की अवतार मां तारा विराजती है इस शक्तिपीठ की मान्यता एक जागृत शक्तिपीठ और तंत्र पीठ के रूप में है जहां आराधकों और साधकों की प्रार्थना बहुत जल्दी सुनी जाती है. मां तारा सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य – आरोग्य, ज्ञान – साधना की देवी मानी जाती है इस माता का निवास स्थान शमशान है.
7) ज्वाला देवी मंदिर :
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कलीदार पहाड़ के बीच में ज्वाला देवी मंदिर मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख और काफी प्रसिद्ध मंदिर हैं यह मंदिर भी शिव और शक्ति से जुड़ा है. मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी इसीलिए इस स्थान को ज्वाला जी के नाम के साथ-साथ इसे जोता वाली और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है. इस ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं जल रही है इन ज्वालामुखी में प्रमुख ज्वाला माता है तो वहीं आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी महालक्ष्मी सरस्वती अंबिका और अंजी देवी है. कहा जाता है कि इस शक्तिपीठ में देवी मां के दर्शन करने पर माँबहुत जल्द प्रसन्न हो जाती है और अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण कर देती है.
8) महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर :
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी का मंदिर भी प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है मान्यता है कि यहां पर माता सती के त्रिनेत्र गिरे थे तभी से यहां देवी लक्ष्मी का वास होता है यही कारण है कि कोल्हापुर के शक्तिपीठ में देवी महालक्ष्मी के रूप में शक्ति की आराधना की जाती है. इस मंदिर की सबसे खासियत है देवी महालक्ष्मी की मूर्ति पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें, इस मंदिर में पूरे साल सूर्य की सीधे किरणें देवी मां की मूर्ति के शरीर पर पड़ती है खासकर 31 जनवरी से 9 नवंबर तक सूर्य की किरणें देवी मूर्ति के चरणों पर पड़ती है इसलिए कहा जाता है कि यहां माँ महालक्ष्मी की आराधना करने स्वयं सूर्य देव आते हैं. इस मंदिर में चार दिशाओं में चार दरवाजे हैं लेकिन मंदिर परिसर में कितने खंबे हैं इसको कोई गिन नहीं पता है मान्यता है कि जितनी बार खभों की गिनती करने की कोशिश की गई है उतनी बार कोई ना कोई अनहोनी जरूर होती है.
9) विशालाक्षी मंदिर :
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ कुछ किलोमीटर की दूरी पर विशालाक्षी माता का मंदिर है जो की प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है मान्यता है कि यहां माता सती के दाहिने कान के मणिजड़ित कुंडल गिरे थे इसलिए इस जगह को मणिकर्णिका घाट भी कहते है माना जाता है कि यहां जो कोई भी सच्चे मन से प्रार्थना करता है उसकी इच्छा पूरी होती है. स्कंद पुराण के अनुसार मां विशालाक्षी नौ गौरियों यानि नौ देवियों में पंचम गौरी हैं. माँ विशालाक्षी को ही मां अन्नपूर्णा भी कहा जाता है क्योंकि यह संसार के समस्त प्राणों को भोजन उपलब्ध कराती है. मान्यता है की मां विशालाक्षी के दर्शन से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं और सुख, समृद्धि और यश में बढ़ोतरी होती है.
उम्मीद है कि आपको प्रमुख शक्तिपीठों से जुड़ा हुआ यह लेख पसंद आया होगा तो इसे अपने परिजनों और दोस्तों के बीच शेयर करें और ऐसे ही धर्म से जुड़े लेख को पढ़ने के लिए जुड़े रहें madhuramhindi.com के साथ.
FAQ – सामान्य प्रश्न
देवी भागवत के अनुसार सती माता के कुल कितने शक्तिपीठ है ?
51 शक्तिपीठ
अंबाजी का मंदिर कहां स्थित है ?
गुजरात के बनासकांठा जिले में.
कामख्या मंदिर में सती माता के किस अंग की पूजा होती हैं ?
योनि अंग की.
ज्वाला देवी मंदिर कहा स्थित है ?
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में.
मणिकर्णिका घाट कहां पर स्थित है ?
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.