Manikarnika Ghat | महादेव की नगरी काशी विश्व की सबसे प्राचीन नगरियों में और तीर्थ धामों में से एक है जिसकी संस्कृति से पूरी दुनिया वाकिफ है और इसे मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है. यह नगरी अद्भुत और अनोखे रहस्यों से भरी पड़ी है महादेव के कंठ में अगर राम नाम का जाप चलता है तो उनके हृदय में काशी वास करती है. काशी को बनारस और वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है और काशी के लिए एक पंक्ति काफी प्रचलित हैं “जिसने भी छुआ वो स्वर्ण हुआ सब कहे मुझे मैं पारस हूं मेरा जन्म महाशमशान मगर मैं जिंदा शहर बनारस हूं” और ऐसे ही जिंदा शहर बनारस में मणिकर्णिका नाम से एक श्मशान घाट है.
अधिकांश घाट स्नान पूजा अनुष्ठान के लिए होता है लेकिन मणिकर्णिका घाट एक ऐसा घाट है जहां 24 घंटे शाम के बाद भी दाह संस्कार किया जाता है. माता पार्वती और भगवान शिव का आशीर्वाद है कि यदि इस घाट पर किसी भी व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया जाए तो उसकी आत्मा को मोक्ष की यात्रा आसान हो जाती है. पुराणों के अनुसार मान्यता है कि इस स्थान पर आकर मौत भी दर्दहीन हो जाती अर्थात इस स्थान पर जिस भी व्यक्ति की मृत्यु होती है उसे किसी भी दर्द की अनुभूति नहीं होती है यह घाट सिंधिया घाट और दशाश्वमेध घाट दोनों के बीच में बसा हुआ है. मान्यता है कि सप्तपुरी में काशी एक ऐसी नगरी है जहां पर मृत्यु को मंगल बताया जाता है.
Secrets of Manikarnika Ghat | तो चलिए जानते हैं मणिकर्णिका घाट से जुड़ी रहस्यों को :
1) मणिकर्णिका घाट की पौराणिक कथा :
मणिकर्णिका घाट में अंतिम संस्कार और चिताओं के दहन की एक कथा प्रचलित है जिसमें इस घाट का नाम मणिकर्णिका कैसा पड़ा यह भी रहस्य छिपा हुआ है. धार्मिक मान्यता है कि जब देवी सती जो की देवी आदि शक्ति के रूप में अवतरण लिया था अपने पिता के द्वारा भगवान शिव का अपमान होने के कारण वह हवन अग्नि में कूद गई थी तब भगवान शिव उनके जलते हुए शरीर को हिमालय तक ले गए उस समय भगवान विष्णु ने भगवान शिव की इस दुर्दशा को देखकर अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के जलते हुए शरीर पर फेंका जिसके कारण उनके शरीर के 51 टुकड़े हुए और प्रत्येक टुकड़े पृथ्वी पर जहां गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाई और माता सती की कान की बालियां इस घाट पर गिरी जिसके कारण यह घाट मणिकर्णिका के नाम से प्रचलित हो गया क्योंकि संस्कृत में मणिकर्ण का अर्थ होता है कान की बाली.
2) मणिकर्णिका घाट का महत्व :
पुराणों में काशी के मणिकर्णिका घाट की महिमा और महत्व के बारे में बताया गया है की काशी में मृत्यु को प्राप्त करना मंगलकारी होता है क्योंकि जहां की विभूति आभूषण हो जहां की राख भी रेशमी वस्त्र के समान हो तो वह काशी दिव्य और अतुलनीय है कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति या प्राणी काशी में प्राण को छोड़ता है तो फिर उसे जन्म मरण के चक्र से मुक्ति आसानी से मिल जाती है. इस घाट के तट पर मृत्यु शुभ और मंगल इतना है कि जिसकी प्रशंसा स्वयं देवता गण किया करते हैं.
जिस मनुष्य की मृत्यु काशी नगरी में होती है तो उसे देवताओं के राजा इंद्र अपने सहस्र नेत्रों से देखने के लिए व्याकुल रहते हैं तो वहीं सूर्य देव भी उस आत्मा को शरीर त्याग आता देखकर अपनी हजारों किरणों से उनका स्वागत करते हैं. उसे जीव आत्मा के परलोक गमन की यात्रा के बारे में देवता गण विचार करते हैं और सोचते हैं कि यह जीवात्मा भगवान शिव के वाहन पर सवार होकर कैलाश जाएगी या फिर गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन पर सवार होकर बैकुंठ जाएगा जिसको जानने में देवता भी असमर्थ होते हैं.
3) काशी में 24 घंटे जलती है चिताएं :
काशी के मणिकर्णिका घाट में 24 घंटे चिताएं जलती रहती है यह कभी भी बुझती नहीं है यही कारण है कि काशी के इस घाट को महाशमशान कहा जाता है. इस घाट के बारे में एक प्रचलित मान्यता है कि इस घाट में जिस दिन भी चिताएं जलनी बंद हो जाएगी वो दिन काशी के लिए प्रलय का दिन होगा. स्कंद पुराण के काशी खंड के अनुसार जिस भी मनुष्य का यहां अंतिम संस्कार या फिर मृत्यु होती है उसे भगवान शिव स्वयं तीन बार राम राम राम बोलते हैं जिसे तारक मंत्र कहा जाता है और इसी तारक मंत्र कान में बोलने पर जीवात्मा सीधे जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है क्योंकि राम नाम में इतना सामर्थ है कि यह किसी को भी भव सागर से पार कर सकती है इसीलिए काशी में मृत्यु को मंगल कहा जाता है. कितना भी दुराचारी मनुष्य या पापी व्यक्ति क्यों ना हो अगर उसकी मृत्यु काशी में होती है तो उसकी मुक्ति निश्चित है.पुराणों में बताया गया है कि काशी में मृत्यु को प्राप्त करना पूर्व जन्म के कर्म ही होते हैं.
Mystery related to Manikarnika Ghat and Lord Shiva | मणिकर्णिका घाट और शिव जी से जुड़ा रहस्य
आइए जानते हैं उस रहस्य को जब शव से पूछा जाता है भगवान शिव के कुंडल के बारे में | मणिकर्णिका घाट पर एक कुंड भी है जिसको भगवान विष्णु ने बनाया था. पौराणिक कथा के अनुसार जब एक बार भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ भगवान विष्णु के सामने उनकी एक इच्छा पूरी करने के लिए काशी आए थे तब भगवान विष्णु ने उनके स्नान के लिए गंगा तट पर एक कुआं खोदा था इस कुएं पर जब भगवान शिव स्नान करने लगे तो उनके कान की बाली से एक मणि उस कुएं में गिर गई इसलिए इस कुंड को मणिकर्णिका कुंड कहा जाने लगा. कहा जाता है कि जब भी यहां जिस किसी का भी दाह संस्कार किया जाता है तो अग्निदाह से पहले उसके कानों में पूछा जाता है क्या उसने भगवान शिव के कान का कुंडल देखा है. धार्मिक मान्यता है कि इस मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव सदैव अघोरी स्वरूप में निवास करते हैं.
वास्तव में काशी का मणिकर्णिका घाट देश के अनोखे स्थान में से एक है जो न जाने कितनी अदभुत अनोखे रहस्यों को समेटा हुआ है. जीवन की वास्तविकता का अद्भुत नजारा की जीवन का अंतिम अटल सत्य मृत्यु है जिसने भी जन्म लिया है उसे एक न एक दिन मृत्यु आनी है लेकिन काशी में मृत्यु को शोक नहीं बल्कि मंगल माना जाता है इसीलिए जीवन में एक बार इस घाट के दर्शन के लिए जरूर जाना चाहिए.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
मणिकर्णिका घाट किस नगर में बसा हुआ है ?
काशी नगरी
मणिकर्णिका घाट पर स्थित कुंड को किस भगवान ने बनवाया है ?
भगवान विष्णु.
मणिकर्णिका घाट पर माता सती का क्या गिरा है ?
कान की बाली
मणिकर्णिका घाट को किस नाम से जाना जाता है?
महाश्मशान घाट.
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