Pitru Paksh Ki Katha | क्या आप जानते हैं दानवीर कर्ण के वजह से ही 15 दिनों का पितृ पक्ष मनाया जाता हैं, जाने इसके पौराणिक कथा को.

Pitru paksha ki katha

Pitru Paksh Ki Katha | हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष यानि कि श्राद्घ का विशेष महत्व है जिसकी शुरुआत होती हैं भाद्र माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर समापन हो जाता हैं. कहा जाता हैं कि पितृ पक्ष (Pitru Paksh) के दौरान पितरों के नाम से तर्पण, पिंडदान श्राद्ध करने से पितरों को आत्मा शांति के साथ मोक्ष भी मिलती हैं. पितृ पक्ष में पितरों को तृप्ति मिलने से वंश वृद्धि और परिवार में सुख, समृद्धि और उन्नति होती हैं. पितरों को लेकर महाभारत की एक कथा का उल्लेख मिलता है जिससे पता चलता है कि दानवीर कर्ण के कारण से पितृ पक्ष मनाया जाता हैं.

Pitru Paksh Ki Katha | दानवीर कर्ण के वजह से 15 दिन पितृपक्ष मनाने की पौराणिक कथा –

कथानुसार महाभारत (Mahabharata) के युद्ध में दानवीर कर्ण (Karan) की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई चूंकि कर्ण एक क्षत्रिय थे जिनको महाभारत की युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने की वजह से स्वर्ग मिला जहां पर उन्हें अपने द्वारा किए गए सभी पुण्यों का फल तो मिला किन्तु स्वर्ग कर्ण के लिए नर्क बन गया क्योंकि वहां स्वर्ग में कर्ण के साथी और दूसरे अन्य योद्धाओं को खाने के लिए स्वादिष्ट और विभिन्न प्रकार के पकवान खाने को मिल रहे थे लेकिन वहीं कर्ण को सोने की बड़ी बड़ी थाल में सोने के आभूषण और सिक्के दिए जाते थे जिससे क़ोई कैसे खा सकता है यही हालात कर्ण का होने लगा क्योकि सोने से बनी वस्तु को वो खा नहीं सकता माना जाता है कि इस तरह का व्यवहार इंद्र सेव के आदेश के कारण किया जा रहा था.

अपने साथ इस तरह का व्यवहार देखकर कर्ण बहुत निराश व दुखी रहता एक दिन वो भूख से व्याकुल होकर इंद्र देव के पास पहुंच कर उनसे सवाल किया कि – आखिर ऐसी क्या वजह है कि उन्हें भोजन ना देकर खाने के लिए सोना दिया जाता हैं ? कर्ण के किए गए इस प्रश्न का उत्तर देते हुए इंद्र देव ने कहा कि – कर्ण ! तुम बहुत बड़े दानवीर थे किंतु तुमने जीवन भर अपनी प्रसिद्ध और नाम कमाने के लिए सिर्फ और सिर्फ सोने का ही दान किया और तुम तो ये भलीभांति जानते थे कि मनुष्य अपने जीवन काल में धरती पर जो भी दान देता है उसे मृत्यु के बाद स्वर्ग में वहीं खाने को मिलता हैं, और तुमने खुद के अहंकार और मोह में आकर पितृ पक्ष के समय कभी अपने पूर्वजों और पितरों का श्राद्ध व तर्पण भी नहीं किया यही वजह है कि तुम्हें अपने दान के अनुसार स्वर्ग में होते हुए भी खाने के लिए सोना दिया जाता हैं.

इंद्र देव की बात सुनकर कर्ण ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उसे ये पता नहीं था कि उसके पूर्वज कौन थे इसी वजह से कभी भी उसने पिंडदान नहीं किया.धर्म का बिल्कुल ज्ञान नही होने के कारण अधर्मी कर्ण अपने जीवन काल में केवल सोने का ही दान करता रहा किन्तु वो दानवीर था इसी गुण के कारण इंद्र देव ने उसे अपनी गलती को सुधारने का मौका दिया और कर्ण को 15 दिन के लिए धरती पर उसको प्रायश्चित करने के लिए वापस भेजा तब कर्ण ने धरती पर अपने पूर्वजों को याद करके विधि पूर्वक तरीके से केवल श्राद्ध ही नही बल्कि अपने पितरों को अन्न दान कर तर्पण किया.

धार्मिक मान्यता के अनुसार इन्ही 15 दिन की अवधि पितृ पक्ष कहलाती हैं और कर्ण के द्वारा किए गए पितरों के श्राद्ध और तर्पण के कारण आज भी पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता हैं.


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 FAQ – सामान्य प्रश्न

दानवीर कर्ण को स्वर्ग में खाने को क्या दिया जाता था ?

सोने के आभूषण और सोने के सिक्के

इंद्र देव ने कर्ण को धरती पर वापस किसलिए भेजा था ?

पितरों का श्राद्ध करने और तर्पण करने के लिए

कर्ण को कितने दिन के लिए धरती पर वापस भेजा गया था ?

15 दिन के लिए. 


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