16 Sanskar | जानते हैं हिन्दू धर्म के उन 16 (सोलह संस्कार) के बारे में जिसका पालन करना हर मनुष्य का मुख्य कर्म है.

16 Sanskar

16 Sanskar | हिन्दू धर्म में संस्कारों का बहुत ही धार्मिक महत्व बताया गया है. “संस्कार” जिसका शाब्दिक अर्थ है किसी को शुद्ध करके लायक बनाना. संस्कार से व्यक्ति शुद्ध होकर मानव बनता हैं उसके अंदर के अवगुण दूर होकर समाप्त हो जाते हैं. संस्कारों के द्वारा मनुष्य को नैतिक कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का ज्ञान कराया जाता हैं इससे हर मनुष्य अपने नैतिक कर्तव्य का पालन करते हुए मोक्ष को प्राप्त करता है. सनातन धर्म में 40 संस्कारो को बताया गया है जिनमे से 16 संस्कारों को षोडश संस्कार कहते हैं जिसका उद्देश्य मनुष्य कि  उन्नति, आध्यात्मिक विकास और सामाजिक आदर्शों को तय करना हैं ये सारे 16 संस्कार वर्षों से चले आ रहे हैं जिन्हें मनुष्य का मुख्य कर्म माना गया है. इन 16 संस्कारों में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सारे कर्मों के बारे में बताया गया है.

16 Sanskar | आइए जान लेते हैं हिन्दू धर्म के 16 संस्कार को :-

हिन्दू धर्म के 16 प्रमुख संस्कार –

1) गर्भाधान संस्कार – 

हिन्दू धर्म के मान्य 16 संस्कारों में पहला  संस्कार गर्भाधान संस्कार हैं. गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने के बाद इस संस्कार को पहला कर्तव्य के रूप में मान्यता दिया गया है और यह संस्कार पुरुष और स्त्री के बीच संतान को पाने के लिए किया जाता हैं. इस संस्कार के बारे में महर्षि चरक ने कहा है कि प्रसन्न चित्त और मन के लिए पुरुष और स्त्री को उत्तम भोजन और सकारात्मक रहना चाहिए. गर्भधान संस्कार अच्छे संतान को पाने के लिए किया जाता हैं.

2) पुंसवन संस्कार –

पुंसवन संस्कार का मुख्य उद्देश्य गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य और सुरक्षा का खास ध्यान रखना है. यह संस्कार गर्भाधान के तीन महीने के बाद किया जाता हैं क्योंकि तीन महीने के बाद माँ के गर्भ में पल रहे शिशु के विचार तंत्र का विकास शुरू हो जाता हैं.

3) सीमन्तोन्नयन संस्कार –

सीमन्तोन्नयन को सीमन्तकरण या सीमन्त संस्कार भी कहा जाता हैं सीमन्तोन्नयन का अर्थ होता है सौभाग्य संपन्न होना. यह संस्कार गर्भ धारण के छठे या फिर आठवें महीनें में होता है जिसमें गर्भवती स्त्री के सिर में धागा बांधकर उसे बच्चे की सुरक्षा का आशीष दिया जाता हैं.

4) जातकर्म संस्कार – 

यह संस्कार नवजात शिशु के नालच्छेदन से पहले करने का विधान है इस संस्कार में नवजात शिशु को घी या फिर शहद को चटाकर वेद मंत्रों का पाठ किया जाता हैं जिससे शिशु को कई तरह के दोष से मुक्ति की प्राप्ति होती हैं.

5) नामकरण संस्कार –

नामकरण संस्कार को सनातन धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार कहा गया है और साथ ही इस संस्कार को शिशु जन्म के बाद पहला संस्कार कहा जाता हैं. यह संस्कार शिशु जन्म के 11वें दिन बाद जन्मे नवजात शिशु को नाम दिया जाता हैं जो नाम जीवन भर उसके साथ रहता है जैसे कि वस्त्र शरीर को सुंदर बनाता हैं बिल्कुल उसी प्रकार नाम भी जीवन को सकारात्मक बनाता है.

6) निष्क्रमण संस्कार –

इस संस्कार में शिशु को सूर्य और चंद्रमा की ज्योति दिखाने का विधान हैं इस संस्कार का उद्देश्य होता है शिशु को भगवान सूर्य के तेज और चंद्रमा की शीतलता को अवगत कराना हैं इसके अलावा इस संस्कार में हवन का आयोजन करके वेदमंत्रों द्वारा देवी देवताओं का आह्वान किया जाता हैं और देवी देवताओं से बच्चे की सुरक्षा और कल्याण की प्रार्थना की जाती हैं.

7) अन्नप्राशन संस्कार –

यह संस्कार बच्चे के जन्म से 06 से 07 महीने के बाद किया जाता हैं बच्चे को जब दूध के अलावा अन्न देना आरंभ किया जाता हैं जिसकी शुरुआत यज्ञीय धर्मानुष्ठान के रूप में होता हैं जिसमें बच्चे को अन्न खिलाया जाता है और फिर इसके बाद से बच्चे को अन्न खिलाना शुरू हो जाता हैं.

8) चूड़ाकर्म संस्कार –

चूड़ाकर्म संस्कार में बच्चे के सिर के बाल को पहली बार काटे जाते हैं. इस संस्कार को मुंडन भी कहा जाता हैं और ये तब किया जाता है जब बच्चे की उम्र एक साल, तीन साल, पांच साल या सात साल होती हैं. चूड़ामणि संस्कार यानि कि मुंडन संस्कार सनातन धर्म मे विशेष महत्व रखता है मुंडन करने से बच्चे के बालों के साथ साथ कई तरह के रोगों का भी भय दूर हो जाता हैं.

9) कर्णवेध संस्कार –

कर्णवेध संस्कार में कान को छेदा जाता हैं जो कि लड़का और लड़की दोनों के लिए महत्व होता है क्योंकि यह संस्कार आभूषण पहनने के साथ राहु केतु के प्रभाव को करने के लिए किया जाता हैं. मान्यता है कि कर्णवेध संस्कार करने से श्रवण शक्ति बढ़ती है.

10) उपनयन संस्कार –

उपनयन संस्कार खासकर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य संप्रदाय में मनाया जाता हैं इस संस्कार में वेद मंत्रों के साथ बालकों को जनेऊ जो तीन सूत्र ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी का प्रतीक होता है को पहनाया जाता हैं.कहा जाता हैं कि उपनयन संस्कार के पश्चात ही गुरु के पास जाकर बालक वेदों का अध्ययन कर सकते हैं.

11) वेदारंभ संस्कार –

इस संस्कार में वेद का अर्थ होता हैं “ज्ञान” और वेदारंभ संस्कार के द्वारा बालक ज्ञान को अपने अंदर समाविष्ट करना शुरू करता है. यह संस्कार बहुत ही महत्व रखता है क्योंकि इस संस्कार का उद्देश्य होता है व्यक्ति को वेदों का ज्ञान प्रदान करवाना जिससे कि व्यक्ति जीवन के सारे मूल्यों को सही तरीके से पालन कर सकें.

12) विवाह संस्कार –

यह संस्कार तब किया जाता हैं जब व्यक्ति विवाह के योग्य हो जाता हैं इस संस्कार में वर व वधु वेद मंत्रों के साथ जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाने का वचन देते हैं और माता पिता व देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करके नए गृहस्थ जीवन की शुरुआत करते हैं माना जाता हैं कि यह संस्कार व्यक्ति के आध्यात्मिक और मानसिक विकास के लिए बहुत मायने रखता है धार्मिक मान्यता है कि इस संस्कार के पालन करने से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है.

13) वानप्रस्थ संस्कार –

यह संस्कार संन्यास धारण करने से पहले किया जाता हैं इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक जीवन को सफल बनाना होता हैं.

14) संन्यास संस्कार –

इस संस्कार में व्यक्ति संन्यास लेकर समाज और अपने परिजनों से हमेशा लिए अलग हो जाता हैं.

15) अंत्येष्टि संस्कार –

अंत्येष्टि संस्कार जिसका मतलब होता हैं अंतिम संस्कार जिसमें मृत शरीर को अग्नि में समर्पित करके मृत्यु लोक से मुक्त कर दिया जाता हैं इस संस्कार को करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलने के साथ ही उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं.

16) श्राद्ध संस्कार –

श्राद्ध  संस्कार में पितरों और पितृ देवता की पूजा करके प्रार्थना किया जाता हैं कि उन्हें मोक्ष मिल जाएं .यह संस्कार पितरों को प्रसन्नता औऱ साथ ही पितृगणों को आत्मा की शांति मिले.


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FAQ – सामान्य प्रश्न

हिन्दू धर्म में कितने संस्कार होते हैं ?

सोलह संस्कार

सोलह संस्कारों को क्या कहा जाता हैं ?

षोडश संस्कार

कर्णवेध संस्कार किस ग्रह के प्रभाव को कम करता है ?

राहु केतु

मुंडन संस्कार बालक की किस उम्र में किया जाता हैं ?

एक साल, तीन साल ,पांच साल या फिर सातवें साल

उपनयन संस्कार में पहनाये जाने वाले जनेऊ में किसका प्रतीक होता है ?

ब्रह्मा, विष्णु और शंकरजी का. 


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