The story of the origin of the river Ganges | जाने कैसे आयी गंगा नदी धरती पर

गंगा नदी की उत्पत्ति

The Story of Ganga| गंगा नदी को स्वर्ग की नदी कहा गया है सबसे खास बात इस नदी का जल कभी भी खराब नही होता और गंगा जल को धार्मिक अनुष्ठान में इस्तेमाल करते हैं. गंगा नदी की उत्पत्ति का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. हिन्दू धर्म में गंगा नदी की उत्पत्ति की कहानी दो कथाओं में बतायी गयी हैं.

The Story of ganga | गंगा नदी की उत्पत्ति की पौराणिक कथाएं

गंगा नदी की उत्पत्ति की पौराणिक कथा दो भागों में बटी हुई है पहली कथा में राजा बलि की कथा और दूसरी कथा में राजा भागीरथी की कथा.

गंगा नदी की उत्पत्ति – राजा बलि की कथा

कहते हैं बलि नाम का एक राजा था जो बहुत ही बहादुर था. अपनी बहादुरी के चलते उन्होंने स्वर्ग के राजा इंद्र को युद्ध के लिए ललकारा पर उसकी बहादुरी देख कर भगवान इंद्र को लगा कि यदि यह जीत गया तो स्वर्ग का सारा राज्य हथिया कर ले जाएगा.

राजा बलि बहुत बड़े विष्णु भक्त थे, अब दुविधा देखिये इन्द्र देव सहायता के लिए भगवान विष्णु के पास ही गये और तब विष्णु जी ने इंद्र देव की सहायता की. विष्णु जी उस समय अपने असली रूप में नही बल्कि वामन ब्राह्मण का अवतार लेकर राजा बलि के राज्य में गये, पर तब राजा बलि अपने राज्य की समृद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहे थे फिर भी विष्णुजी उसी अवतार में राजा बलि के पास गए और उनसे दान मांग लिया. विष्णुजी ने बहुत ही चालाकी से राजा बलि से तीन कदम ज़मीन मांग ली पर आश्चर्य की बात ये है कि राजा बलि जानते थे कि वो भगवान विष्णु है जो ब्राह्मण अवतार में आये हैं फिर भी उन्होंने सोच कि वो किसी ब्राह्मण को अपने द्वार से खाली हाथ नही जाने दे सकते इसीलिए उन्होंने तीन कदम ज़मीन देने के लिए हाँ कर दी पर जैसे ही विष्णुजी ने पहला कदम रखा तो उनका पैर इतना बड़ा हो गया कि सारी ज़मीन एक ही बार में नाप ली. फिर उन्होंने दूसरा कदम आकाश की तरफ रखा तो सारा आसमान नाप लिया पर जब तीसरे कदम की बारी आयी तो विष्णुजी ने राजा बलि से पूछा कि ये तीसरा कदम कहाँ रखूं तो राजा बलि ने बड़ी उदारता से कहा प्रभु मेरे सर पर रख लीजिये जैसे ही विष्णुजी ने उसके सर पर कदम रखा तो वो सीधा पाताल लोक में ज़मीन के नीचे समा गया जहाँ केवल असुरो का शासन था.

इस कथा में ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने आकाश की तरफ अपना कदम रखा था तब खुद ब्रह्मा जी ने उनके पाँव धुलाये थे और उसका सारा जल एक कमंडल में इकट्ठा कर लिया इसी जल को गंगा का नाम भी दिया गया और यही वजह है कि गंगा को ब्रह्मा की पुत्री भी कहा जाता है वो कमंडल इतना बड़ा था कि उसमें इकट्ठा किया हुआ जल एक नदी जितना विशाल था। इस तरह गंगा नदी का जन्म हुआ.

गंगा नदी की उत्पत्ति – राजा भागीरथी की कथा

गंगा नदी का इतिहास काफी ज्यादा गौरव शाली रहा है इस कथा को पढ़ने के बाद ये तो पता चल गया कि गंगा नदी हमेशा से पृथ्वी पर नहीं थीं बल्कि उन्हें पृथ्वी पर लाया गया था क्योंकि उनका जन्म तो स्वर्ग लोक में हुआ था तो सवाल ये है कि गंगा नदी इस धरती लोक में आयी कैसे? तो इस सवाल का जवाब हमारे पास है. दरअसल उस युग में बहुत प्रतापी राजा हुए करते थे और राजा बलि के बाद राजा सगर भी उन्हीं में से एक थे उस युग में राजा अपने साम्राज्य की बढ़ाने के लिए एक यज्ञ किया करते थे जिसे अशमेघ यज्ञ भी कहा जाता था. इसमें ऐसा होता था कि एक घोड़ा राज्य में छोड़ दिया जाता था और वो घोड़ा जिस राज्य से गुजरता था वो राज्य यज्ञ करने वाले राजा का हो जाता था पर इसी बीच अगर किसी राजा ने वो घोड़ा पकड़ लिया तो उस राजा को यज्ञ करने वाले राजा के साथ युद्ध करना पड़ता था.

एक बार राजा सगर ने भी ऐसा ही अश्वमेघ यज्ञ किया था और घोड़ा छोड दिया पर उस समय भी इंद्रदेव को ये भय था कि कहि अगर घोड़ा स्वर्ग से गुजरा तो स्वर्ग का सारा राज्य राजा सगर के पास चला जायेगा और यदि कहीं घोड़ा पकड लिया तो राजा सगर से युद्ध जीतने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थीं ऐसी स्थिति में इंद्रदेव ने बहुत ही चालाकी से सोच समझ कर निर्णय लिया और भेष बदल कर घोड़ा पकड़ा और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया.

राजा सगर को इस बात को पता चला कि उनका घोड़ा किसी ने पकड़ लिया तो उन्होंने गुस्से में अपने साठ हजार पुत्रों को युद्ध के भेजा. कपिल मुनि अपने आश्रम में ध्यान लगा कर बैठे थे राजा सगर के पुत्र भी घोड़े की तलाश कर रहे थे और जब उन्होंने घोड़ा आश्रम में देखा तो आश्रम में हुई चहल पहल से मुनि जी का ध्यान हट गया जब राजा के पुत्रों ने मुनि जी पर घोड़ा पकड़ने का झूठ इल्जाम लगाया तब मुनिजी ने गुस्से में आकर राजा के सारे पुत्रों को भस्म कर दिया इसके बाद राजा के पुत्रों की आत्मा को शांति नहीं मिल रही थी। यही राजा सगर की कहानी का अंत हो गया.

कई पीढ़ियों के बाद उस कुल में राजा भागीरथ का जन्म हुआ उन्होंने ये निश्चय कर लिया कि वे अपने पूर्वजों की आत्मा की ज़रूर शान्ति दिलवाएंगे इसलिए उन्होंने भगवान की कठोर तपस्या की और उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णुजी ने राजा भागीरथ को अपने दर्शन दिए. भागीरथ ने गंगा नदी को धरती पर लाने की  प्राथर्ना की दरअसल राजा भागीरथ के पूर्वजों की आत्मा को शांति तभी मिल सकती थी जब उनकी अस्थियां गंगा नंदी में बहाई जाए, इसलिए राजा भागीरथ ने भगवान विष्णु से ये वरदान मांगा था पर भगवान विष्णु ने कहा कि गंगा बहुत ही क्रूर स्वाभाव की है पर फिर भी वो बहुत मुश्किल से धरती पर आने के राजी हो गयी पर मुश्किल ये थी कि गंगा नदी का प्रवाह इतना ज्यादा था कि यदि वो धरती पर आती तो सारी धरती तूफान में बह जाती और नष्ट हो जाती. ऐसे में भगवान विष्णु ने शिवजी से प्राथर्ना की वो गंगा नदी को अपनी जटाओं में बांध कर काबू करें ताकि धरती को कोई नुकसान न हो.

जब गंगा बहुत तीर्व गाति से धरती पर उतरी तब चारों तरफ धरती पर तूफान से छा गया ऐसे में भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समाकर एक पतली धार के समान धरती पर उतारा. इस तरह गंगा का धरती पर प्रवेश हुआ. अगर देखा जाए तो राजा भागीरथ के कारण गंगा नदी धरती परआयी इसलिए उसे भागीरथी भी कहा जाता है.

गंगा नदी को स्वर्ग से धरती तक की यात्रा को पढ़ कर हम सबको पता चल ही गया कि गंगा का हमारे जीवन में क्या महत्व है. इसकी पवित्रता आत्मा को भी शुद्ध कर देती है इसलिए गंगा नदी को हमेशा पवित्र रहने दे तभी वो धरती परआकर समृद्व रह पाएगी.


FAQ – सामान्य प्रश्न

गंगा नदी की उत्पत्ति की पौराणिक कथा कौन कौन सी है?

राजा बलि की कथा और राजा भागीरथी की कथा.


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