Vat Savitri Vrat Katha | वट सावित्री व्रत के दिन इस पौराणिक कथा के सुनने से मिलती है अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद.

vat savitri vrat Katha

Vat Savitri Vrat Katha | हिंदू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य जीवन के लिए बरगद (वट) के वृक्ष की विधि विधान से पूजा करने के साथ साथ वट वृक्ष से प्रार्थना करती हैं कि पति के साथ संतानें भी दीर्घायु और सुखी रहे. इस दिन बरगद यानी कि वट वृक्ष की पूजा करने के बाद इस कथा को अवश्य सुनना चाहिए जिससे कि अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं.

Vat Savitri Vrat Katha | वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा :

पौराणिक कथा के अनुसार किसी नगर में अश्वपति नामक राजा था जिसकी कोई संतान नहीं थी एक बार एक ऋषि के कहने पर राजा अश्वपति और उसकी पत्नी ने पूरे मन से भगवान की पूजा व व्रत किया जिसके फलस्वरूप भगवान ने प्रसन्न होकर उन दोनों को पुत्री प्राप्ति का आशीर्वाद दिया. राजा और उसकी पत्नी ने अपनी पुत्री का नाम सावित्री (Savitri) रखा क्योंकि यह कन्या भगवान सावित्र का दिया हुआ वरदान थी.

कई वर्ष गुजरने के बाद जब सावित्री विवाह योग्य हुई तो राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री के लिए योग्य वर की तलाश करना शुरू किया लेकिन राजा अपनी बेटी के लिए एक वर खोजने में असफल रहा, इसलिए उसने सावित्री को अपना जीवन साथी ढूढंने के लिए कहा. सावित्री की मुलाकात जंगल में राजा घ्रुमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुई. राजा घ्रुमत्सेन देख नहीं पाता था और उसने अपना सारा राजपाट व धन खो दिया था. सावित्री ने घ्रुमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया लेकिंन जब नारद मुनि को सावित्री की पसन्द के बारे में पता चला तो उन्होंने राजा अश्वपति से कहा “वह इस रिश्ते को मना कर दे क्योंकि सत्यवान का जीवन कम बचा है वो एक वर्ष में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा”. सत्यवान के अल्पायु के बारे में जानकर सावित्री के माता पिता ने बहुत समझाया किन्तु सावित्री ने इनकार कर दिया और कहा कि वह सिर्फ सत्यवान से ही शादी करेंगी इस तरह की जिद के आगे राजा को झुकना पड़ा.

सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया. सत्यवान बहुत गुणवान,धर्मात्मा और बलवान था वह अपने माता पिता का पूरा ख्याल रखता था सावित्री भी वस्त्राभूषणों और राजमहल को त्यागकर जंगल की कुटिया में रहकर अपने अंधे ससुर और सास की सेवा करने लगी. जैसे जैसे समय गुजरता गया और सत्यवान की मृत्यु का दिन नजदीक आते गया. नारदजी ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था निकट समय आने से सावित्री व्याकुल रहने लगी उसने तीन दिन पहले से ही व्रत शुरू कर दिया और साथ में नारद मुनि के कहने पर पितरों का पूजन भी करती रही.

हर दिन की तरह सत्यवान भोजन बनाने के लिए जंगल में लकड़ियां काटने जाने लगा तो सावित्री भी जिद करके उसके साथ गई. वह दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ा लेकिन सिर चकराने की वजह से नीचे उतर आया.सावित्री ने अपने पति के सिर को अपने गोद में रखकर सहलाने लगी तभी यमराज को आते दिखे जोकि सत्यवान के प्राण को लेकर जाने लगें तब सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे जाने लगीं ये देखकर यमराज ने उसे बहुत समझाया लेकिन सावित्री नहीं मानी और बोला “”जहां मेरे पतिदेव जायेगे, वहां मुझे जाना ही चाहिए””. यमराज के बार बार मना करने के बावजूद सावित्री भी पीछे चलती रही सावित्री के इस प्रकार की निष्ठा और पति परायणता को देखते हुए भगवान यम ने उसको तीन इच्छाएं मांगने का वरदान दिया.

पहला वरदान में सावित्री ने अपने अंधे ससुर की आंखे और खोया हुआ राजपाट मांगा, दूसरे वरदान में अपने पति के लिए 100 पुत्र मांगे और तीसरे वरदान में उसने सत्यवान से एक पुत्र मांगा. भगवान यम सावित्री की सारी इच्छाएं मान गए और प्रसन्न होकर ”तथास्तु ” बोलकर आगे बढ़ने लगे तब सावित्री ने कहा कि “”प्रभु मैं एक पतिव्रता स्त्री हूँ और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है, पति के बिना पुत्र का जन्म होना कैसे संभव है “”. भगवान यम अपने शब्दों में फंस गए थे सावित्री के इसी तरह के प्यार को देखकर सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े.

सावित्री वापस उसी वक्त वृक्ष के पास आई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था. भगवान यम के वरदान से सत्यवान पुनः जीवित हो गया, माता पिता को दिव्यज्योति मिली और उनका राज्य भी वापस मिल गया. इस प्रकार सावित्री-सत्यवान लंबे समय तक राज्य सुख भोगते रहे. वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat ) करने और इस कथा को सुनने से व्रत रखने वाले के वैवाहिक जीवन के सभी संकट टल जाते हैं और अखण्ड सौभाग्य का आशीर्वाद भी मिलता है. 


FAQ – सामान्य प्रश्न

वट सावित्री व्रत के दिन किसकी पूजा होती है?

वट वृक्ष की


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