Bhadra | हिंदू पंचांग और ज्योतिष के अनुसार कुछ समय ऐसे होते हैं जिनमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता इन्हें अशुभ समय कहा जाता है और इन्हीं अशुभ समयमें एक है भद्रा. भद्रा का अर्थ है भद्रा कर देना यानि कि बिगाड़ देना, जिस समय और जिस पहर में भद्रा लगी होती है उस समय कोई भी शुभ कार्य चाहें विवाह हो, मुंडन हो, या गृह निर्माण या फिर गृह प्रवेश हो कोई भी शुभ कार्य भद्रा में नहीं किया जाता यहां तक की अगर भद्रा लगी हो तो भाई बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता हैं, जिस समय भद्रा लगी होती है उस समय राखी बांधना अशुभ माना जाता है.
Kaun hai Bhadra | आइए जानते हैं कौन है भद्रा :
Who is Bhadra? धार्मिक मान्यता के अनुसार भद्रा माता छाया से उत्पन्न भगवान सूर्य की पुत्री और शनि देव की सगी बहन है जिनका जन्म राहुकाल में हुआ और इनका वर्ण काला रूप भयंकर लंबेकेश और दांत विकराल है. राहु काल में जन्म होने के कारण इसका स्वभाव उग्र और अशांत हैं मान्यता है कि जब इनका जन्म हुआ तो संसार को यह अपना ग्रास बनाने के लिए दौड़ी और यज्ञ में विध्न बाधाएं पहुंचने लगी यहां तक की उत्सव और मंगल कामों में बाधा डालते हुए जगत को पीड़ा पहुंचने लगी यह जिसके लिए भी बुरा सोचती उसके साथ बुरा ही होता यहां तक की यह अपने भाई शनिदेव के बारे में बुरा सोचती तब शनिदेव को जीवन में कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ता इनके ऐसे व्यवहार को देखकर सूर्य की पुत्री होने के बाद भी कोई भी देव – देवता इससे विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुआ.
Origin of Bhadra | जानते हैं भद्रा की उत्पत्ति कैसे हुई :
भद्रा का डर लोगों के मन में बैठने लगा जिससे लोग उनसे दुखी रहने लगे. भद्रा के उपद्रवी स्वभाव के कारण सूर्यदेव बहुत चिंतित थे तब उन्होंने ब्रह्मादेव से भद्रा के बारे में बात किया तब ब्रह्मदेव ने भद्रा को समझाया कि तुम्हारे लिए एक समय तय किया जाता है उस समय में ही तुम्हारा वास होगा तुम स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी लोक पर वास करोगी और उस समय अगर कोई शुभ कार्य करें तो उसमें तुम विध्न और बाधा डालना. ब्रह्मदेव ने भद्रा को बव, बालव आदि कारणों के बाद उसको निवास स्थान दिया और ब्रह्मदेव के सुझाव के बाद पंचांग में भद्रा का एक विशेष स्थान दिया गया हैं और हिंदू पंचांग को पांच प्रमुख अंगों में बांटा गया है और यह है तिथि, वार, योग, नक्षत्र, और करण. जिसमें ग्यारह (11) करण होते है इसमें से सातवें करण विष्टि का नाम भद्रा हैं.
How to Count Bhadra Kaal | भद्रा काल की गणना कैसे की जाती हैं :
पंचांग के अनुसार जब भद्रा काल शुरू होता है तो इसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता यहां तक की कोई भी यात्रा भी नहीं होती हैं. मान्यता के अनुसार चंद्रमा की राशि से भद्रा का वास होता है और गणना के अनुसार चंद्रमा जब कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि या फिर मीन राशि में होता है तो भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है तो वही चंद्रमा जब मेष राशि, वृष राशि, मिथुन राशि और वृश्चिक राशि मे रहता है तो भद्रा का वास स्वर्गलोक मे होता है और कन्या राशि, तुला राशि, मेष राशि या मकर राशि में चंद्रमा रहता है तब भद्रा का वास पाताल लोक में माना गया है.
Why is there a shadow of Bhadra on Raksha Bandhan | आइए जानते हैं कि रक्षाबंधन पर भद्रा का साया क्यों रहता है :
भद्रा जिस लोक में रहती है वही असरदार होती है और रक्षाबंधन के समय चंद्रमा कुंभ राशि मे रहने के कारण भद्रा रहती है और ब्रह्मदेव ने भद्रा के कठोर और उदंड स्वभाव के कारण उनको शाप दिया कि जो भी भद्रा काल मे कोई शुभ कार्य करेगा उसको मुश्किलों का सामना करने के साथ ही उसकों अशुभ परिणाम भी मिल सकते हैं यही कारण है कि भद्राकाल होने पर रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता और नहीं ही भाई की कलाई पर राखी बांधी जाती है क्योंकि पौराणिक कथा के अनुसार रावण की बहन शूर्पणखा ने भद्रा काल में ही अपने भाई रावण को राखी बांधी थी जो कि उसके विनाश का कारण बना कहा जाता है कि रावण के बाद एक-एक करके उसके पूरे कल का नाश हो गया. धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने भद्रा को काल का रूप दिया जिससे कि यह कार्य मानव जीवन में दंड के रूप में आए यही कारण है कि भद्रा को अशुभ माना जाता है और जिससे की भद्रा काल के समय शुभ काम करने की मनाही होती हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) भद्रा किसकी पुत्री हैं ?
छाया और सूर्यदेव की
2) भद्रा का क्या अर्थ होता है ?
बिगाड़ देना.
3) भद्रा को श्राप किसने दिया ?
ब्रह्मदेव ने.
4) भद्रा की गणना किसके आधार पर होता हैं ?
चंद्रमा का राशि मे रहना.
5) चंद्रमा अगर कुंभ राशि में रहे तो भद्रा का वास कहा होता है ?
पृथ्वी लोक में.
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