Mahabharata | महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण को सारथी के रूप में देखा गया है क्योंकि श्रीकृष्ण (Lord Krishna) ने महायुद्ध महाभारत के शुरू होने से पहले कह दिया था कि वह युद्व में न ही शस्त्र ही उठाएंगे और ना ही युद्ध ही लड़ेंगे और पूरे युद्व में कई विकट परिस्थितियां आई फिर भी उन्होंने ना ही युद्ध किया और ना ही अपना सुदर्शन चक्र ही चलाया बस स्थिरचित्त बने रहे कहा जाता है कि अगर भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत की युद्ध (Mahabharata War) में शस्त्र उठाया होता तो युद्ध कुछ ही क्षणों में खत्म हो जाता लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने ऐसा क्यों नही किया, क्यों खुद को युद्ध से अलग रखा और क्यों वह पार्थ यानि कि अर्जुन के सारथी बनकर मार्गदर्शक बने रहे.
Mahabharata | आइए जानते हैं इस रहस्य को क्यों भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत का युद्ध नहीं लड़ा :
महाभारत महायुद्ध (Mahabharata Story) के शुरुआत में एक ऐसा क्षण आया जब भीष्म पितामह की मनोदशा और इच्छा का सम्मान की खातिर और अर्जुन को कर्तव्य का ज्ञान कराने के लिए उन्होंने रथ का पहिया हाथों में उठा लिया किन्तु अर्जुन के आग्रह पर पहिया को नीचे रख दिया. भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध में शस्त्र नहीं उठाने के रहस्य को जानने से पहले भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के पूर्वजन्म को जानना होगा और किंवदंतियों के अनुसार पूर्व जन्म में भगवान श्रीकृष्ण नारायण और अर्जुन नर थे जो कि भगवान विष्णु के अंश से उत्पन्न हुए थे और जिन्होंने युद्व में दम्बोद्वव को हराया था.
पौराणिक कथानुसार भगवान श्रीकृष्ण पूर्व जन्म में नारायण और अर्जुन नर थे इन्होंने बदरीकाश्राम यानि कि बद्रीनाथ में नर और नारायण पर्वत पर तपस्या किया था यह दोनों ही भगवान विष्णु के अंश से ही उत्पन्न हुए थे क्योंकि उस समय सूर्य देव के परम भक्त असुर दम्बोद्वव ने भगवान सूर्यदेव की कठोर तपस्या करके उनसे एक हजार (1000) कवच का वरदान मांगने के साथ यह भी मांगा की एक हजार (1000) साल तपस्या के बाद ही कोई इस कवच को तोड़ सके और जो इसे ऐसे ही तोड़े तो वह स्वंय ही मर जाएं और इस प्रकार की वरदान को पाकर दम्बोद्वव अपने आप को ताकतवर और अमर मानने लगा और इसी घमंड में वह देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार करने लगा.
एक बार दम्बोद्वव ने नर और नारायण को युद्व के लिए ललकारा तब नारायण ने दम्बोद्वव से युद्ध किया और लगातार एक हजार साल युद्ध करने के पश्चात आखिरकार नारायण ने असुर दम्बोद्वव का पहला कवच तोड़ दिया किन्तु कवच तोड़ने के साथ नारायण स्वंय भी मृत्यु को प्राप्त हो गए तब नर ने दैवीय मंत्रों की सहायता से नारायण को पुनः जीवित किया और फिर दम्बोद्वव को युद्ध के लिए ललकारा और युद्व करना आरंभ किया यह युद्ध भी एक हजार साल चला जिसमें नर ने असुर दम्बोद्वव का दूसरा कवच तोड़ दिया और इस बीच नारायण ने एक हज़ार साल की तपस्या पूर्ण किया और दम्बोद्वव से युद्ध करने लगे इस प्रकार से बारी बारी युद्ध करते हुए नर और नारायण ने असुर दम्बोद्वव के नौ सौ निन्यानबे (999) कवच तोड़ दिया और जब अंतिम कवच रहा तब दम्बोद्वव भगवान सूर्य देव के पीछे जाकर छिप गया तब सूर्यदेव ने अपने शरण में आए भक्त को नर नारायण से बचा लिया किन्तु स्वयं को नर नारायण के श्राप से नहीं बचा पाए और सूर्यदेव को नर नारायण ने कहा कि आपका यह भक्त द्वापर में आपके अंश से उत्पन्न होगा और तब आपको अपने पुत्र की मृत्यु का शोक को भोगना पड़ेगा. सूर्यदेव का यह असुर दम्बोद्वव ही द्वापर में कर्ण हुआ जो सूर्य के अंश से कवच कुंडल के साथ उत्पन्न हुआ था.
नर ने एक हजार साल की तपस्या पूरी कर लिया था और दम्बोद्वव से अंतिम युद्ध लड़ने की बारी अब उसकी थीं इसलिए श्रीकृष्ण (जो पूर्व जन्म में नारायण थे) ने अर्जुन से कहा कि यह महाभारत का युद्ध तुम्हारा युद्ध हैं और तुम्हें ही यह युद्ध लड़ना होगा मैं इस युद्ध में मार्गदर्शक ही हो सकता हूँ इस युद्ध को जीतकर तुमको कीर्ति की प्राप्ति होगी और धरती का सुख मिलेगा अगर तुम अपना इस युद्ध को नहीं लड़ोगे तो मैं भी तुम्हारी मदद नहीं कर सकूंगा और कर्ण का वध तो सिर्फ अर्जुन ही कर सकता हैं क्योंकि सूर्यदेव के वरदान के अनुसार दम्बोद्वव को वहीं मार सकता था जिसने एक हजार साल की तपस्या किया हो और अगर कर्ण जीवित रह जाता तो महाभारत का युद्ध पांडव नहीं जीत पाते यही कारण है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध करने को कहा और खुद पार्थ के सारथी बने रहे.
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत का युद्ध स्वयं न करके अर्जुन को युद्ध करने के लिए आगे किया इसके पीछे यह रहस्य भी है कि भगवान कहा करते हैं मैं तो सिर्फ मार्गदर्शक हो सकता है बुद्धि रूपी रथ का सारथी हो सकता है क्योंकि हर मनुष्य के जीवन में अपना अपना युद्ध होता है और जो मनुष्य अपना युद्ध खुद नहीं लड़ सकता है भगवान भी उनकी मदद नही करते हैं इसलिए हमेशा मनुष्य को यह समझना चाहिए कि जब युद्ध हमारा हैं तो उसे खुद ही लड़ना होगा भगवान हमारे बदले आकर युद्ध नहीं लड़ेंगे अगर सत्य और न्याय की लड़ाई करेंगे तो भगवान सारथी बनेंगे और अगर असत्य और अन्याय की ओर से युद्ध करेंगे तो वह आपके सारथी भी नहीं बनेंगे और फिर कौरवों के समान विनाश होना तय है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन पूर्व जन्म में क्या थे ?
नारायण और नर.
असुर दम्बोद्वव किसकी कठोर तपस्या किया था ?
भगवान सूर्यदेव.
द्वापर युग में कर्ण किसका पुनः जन्म था ?
असुर दम्बोद्वव
महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी कौन थे ?
भगवान श्रीकृष्ण.
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