Kashi ke Kotwal | बारह (12) ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर जो कि अनादिकाल से काशी में है. भगवान शिव यहां के राजा व पालनहार हैं तो वहीं काल भैरव काशी के कोतवाल कहलाते हैं जिनकी नियुक्ति स्वयं भगवान शिव ने की थी मान्यता है कि काशी में रहने वाला हर व्यक्ति को यहां पर रहने के लिए बाबा काल भैरव की आज्ञा लेनी पड़ती है और यह भी माना जाता हैं कि काशी नगरी में काल भैरव की मर्जी चलती है बाबा विश्वनाथ के मंदिर के नजदीके ही एक कोतवाल है जिसकी रक्षा स्वयं काल भैरव करते हैं जिसका वर्णन पुराणों में भी किया गया है. मान्यता है की काल भैरव मंदिर में आकर और मात्र काल भैरव बाबा के दर्शन से ही सभी पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है.
Kashi ke Kotwal – Kaal Bhairav | काल भैरव को क्यों कहा जाता है काशी का कोतवाल :
पौराणिक कथानुसार एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच अपनी – अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया और दोनों एक दूसरे के विचार से सहमत नहीं हुए. इन दोनों के बीच हुए विवाद की खबर तीनों लोकों में अग्नि की तरह फैल गई और उस समय देवता और ऋषि मुनि ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी को भगवान शिव के पास चलने का अनुरोध किया क्योंकि इस विवाद के बारे में ऋषि मुनि और देवताओं का मानना था कि भगवान शिव के पास कोई न कोई इसका समाधान होगा और यही सोचकर सभी देवी देवता और ऋषि मुनि भगवान शिव के पास कैलाश गए. भगवान शिव को पहले ही इस का ज्ञान था कि भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद चल रहा है और इसका निदान करने के लिए भगवान शिव ने कहा कि मेरे द्वारा उत्पन्न ज्योत के अंतिम छोर पर आप दोनों में जो सबसे पहले पहुंचेगा उसे ही श्रेष्ठ घोषित किया जाएगा अगर आप दोनों ने कोई छल करने का प्रयत्न किया या झूठ बोलने की कोशिश की तो परिणाम गंभीर होगा.
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भगवान शिव के द्वारा कहे गए वचनों को सुनकर भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी दोनों सहमत हों गए तब उसी क्षण भगवान शिव के शरीर से एक ज्योत उत्पन्न हुई जो पाताल और नभ की ओर बढ़ रही थी.भगवान विष्णु ज्योत उत्पन्न होने के बाद नभ की ओर बढ़े तो वही ब्रह्माजी पाताल की ओर बढ़े लेकिन दोनों ही ज्योत के शीर्ष और शून्य स्थिति पर पहुंचने में सफल नहीं हो पाए और थक हारकर दोनों ही लौट आए तब भगवान शिव ने उन दोनों से पूछा – क्या आप दोनों ज्योत की अंतिम बिंदु तक पहुंचने में सफल हो पाए इस पर भगवान विष्णु कहा – हे देवों के देव महादेव आपकी लीला अपरंपार है इसे भला कैसे कोई जान सकता है, मैं ज्योत के शीर्ष पर नहीं पहुंच पाया इसके लिए मुझे क्षमा कीजिए. इसके पश्चात भगवान शिव ने ब्रह्मा जी से पूछा – क्या आप ज्योत की अंतिम बिंदु तक पहुंचने में सफल हुए.अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने और श्रेष्ठता की उपाधि पाने के लिए ब्रह्माजी ने झूठ बोल दिया.
ब्रह्मा जी ने कहा कि पाताल में एक निश्चित स्थल पर ज्योत की अंतिम बिंदु है. ब्रह्मा जी के इस तरह के बातें को सुनकर भगवान शिव ने कहा – हे ब्रह्मदेव ! आप झूठ बोल रहे हैं इस ज्योत का अंत नहीं है और फिर भगवान शिव ने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया. भगवान विष्णु को श्रेष्ठ घोषित करने पर ब्रह्मा जी बहुत ही नाराज हो गए और भगवान शिव पर पक्षपात करने का आरोप लगा दिया. भगवान शिव पर आरोप लगने के बाद वह बहुत क्रोधित हो गए और भगवान शिव के क्रोध से लाल भैरव देव की उत्पत्ति हुई इसके पश्चात तत्क्षण ही काल भैरव देव ने अपने नाखून से ब्रह्म देव के चौथे मुंह को सिर से अलग कर दिया. काल भैरव देव के क्रोध को देखकर ब्रह्मदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ तब उसी क्षण ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से क्षमा की याचना की.
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काल भैरव देव को ब्रह्म हत्या का पाप लगा जिसके कारण उन्हें दंड भोगना पड़ा और वह कई सालों तक भिखारी के वेश में पृथ्वी पर भटकना पड़ा लेकिन जब वे काशी पहुंचे तो उनकी सजा समाप्त हो गई मान्यता है की ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए काल भैरव ने अपने नाखून से एक तालाब को स्थापित किया और उस तालाब में स्नान किया जिसके बाद उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली. ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिलने के बाद भगवान शिव वहां प्रकट हुए और काल भैरव को वहीं रहकर तप करने की आज्ञा दी इसके पश्चात काल भैरव काशी में बस गए और भगवान शिव ने काल भैरव को इस काशी नगरी का कोतवाल बनने के लिए कहा और तभी से बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है मान्यता है कि काशी नगरी में काल भैरव की मर्जी चलती है और काल भैरव मंदिर में पूजा और प्रार्थना के बाद ही बाबा विश्वनाथ प्रार्थना सुनते हैं इसके अलावा यह भी मानता है कि काशी में जिसने काल भैरव बाबा के दर्शन नहीं किए हैं उनकी प्रार्थना अधूरी मानी जाती है और भक्त हो उनका फल नहीं मिलता.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) काशी का पालनहार व राजा कौन है ?
भगवान शिव.
2) काशी का कोतवाल किसे कहा जाता हैं ?
काल भैरव बाबा.
3) भगवान शिव ने ब्रह्माजी और भगवान विष्णु में से किसे श्रेष्ठ घोषित किया ?
भगवान विष्णु.
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