Narak Chaturdashi | हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाए जाने वाले पर्व को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस, नरक निवारण चतुर्दशी और काली चौदस के रूप में भी मनाया जाता है. दीवाली के पांच दिनों के पर्वों में यह दूसरे दिन यानि कि धनतेरस के बाद मनाया जाता हैं मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके यमदेव की विधिवत पूजा और तर्पण करने के बाद शाम को दीप दान करने का महत्व हैं.
कोई भी त्यौहार को मनाने के पीछे कोई न कोई पौराणिक मान्यता या फिर कथा अवश्य जुड़ी होती है तो आइए चलिए जानते हैं नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi kya hai) से जुड़ी उस पौराणिक कथा (Mythology) को की क्यों मनाई जाती हैं नरक चतुर्दशी.
Why is Narak Chaturdashi celebrated? नरक चतुर्दशी मनाने की पौराणिक कथा :
पुराणों की कथानुसार भूदेवी के पुत्र नरकासुर ने कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया जिसके फलस्वरूप उसने ब्रह्माजी से असीम शक्ति का आशीर्वाद के साथ वरदान में यह प्राप्त कर लिया कि वो केवल अपनी माता भूदेवी के हाथों मृत्यु को प्राप्त हो. इसके पश्चात नरकासुर ने घनघोर अत्याचार करना शुरू कर दिया जिसके कारण चारों तरफ हाहाकार मचने लगा. नरकासुर के अत्याचार को सहन करने में असमर्थ देवतागण और स्वर्ग लोक के राजा इंद्र सब मिलकर श्रीकृष्ण के पास पहुँचे तब देवराज इंद्र ने कहा – हे कृष्ण ! राक्षस नरकासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि त्राहि कर रहे हैं क्रूर उस राक्षस ने वरुण का छत्र, अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि को छीन लिया है और वह त्रिलोक विजयी हो गया है,इसके आगे इंद्र ने कहा – राक्षस नरकासुर ने पृथ्वी लोक के कई ऋषि मुनियों और राजाओं के साथ सोलह (16) हज़ार एक सौ सुंदर राजकुमारियों को भी बंधक बना रखा है,कृपया करके आप हम सभी को बचाइये प्रभु.
इंद्र की प्रार्थना को स्वीकार करके श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को नरकासुर के साथ युद्ध में उनका सारधी बनने को कहा क्योकि सत्यभामा राक्षस नरकासुर की माता भूदेवी का पुनर्जन्म थी और नरकासुर को वरदान प्राप्त था, कि वह केवल अपनी माता भूदेवी के हाथों से मर सकता था जब युद्ध हुआ तो श्रीकृष्ण ने पहले नरकासुर को एक तीर से बेहोश कर दिया तब सत्यभामा ने धनुष को हाथों में लेकर नरकासुर को निशाना बनाते हुए तीर मारा जिससे नरकासुर राक्षस की मृत्यु हो गई इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का अंत किया और उसकी कैद से सोलह (16) हजार एक सौ कन्याओं को मुक्त कराया. कैद से मुक्त करने के बाद इन कन्याओं को समाज में सम्मान दिलाने के लिए सभी कन्याओं से भगवान श्रीकृष्ण ने विवाह कर लिया.
नरकासुर से मुक्ति प्राप्त होने पर देवतागण, ऋषि – मुनि और बाकी आमजन खुशी में बहुत आंनदित हुए और इसी खुशी में सभी ने इस पर्व को मनाया मान्यता है कि तभी से नरक चतुर्दशी पर्व मनाए जाने की परंपरा की शुरूआत हुआ. मान्यता है कि नरकासुर के मरने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के शरीर पर पड़े रक्त के छींटे साफ करने के लिए उन्होंने तेल और उबटन से स्नान किया था तभी से इस दिन तेल और उबटन लगाकर स्नान करने की परंपरा की शुरुआत हुआ. माना गया है कि ऐसा करने से नरक से मुक्ति मिलने के साथ ही सौंदर्य और स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं. धार्मिक मान्यतानुसार नरकासुर के कैद में रहने के वजह से सोलह हजार एक सौ कन्याओं के उदार रूप को फिर से श्रीकृष्ण ने कांति प्रदान किया था.
यही कारण है कि नरक चतुर्दशी के दिन महिलाएं तेल और उबटन से स्नान करके सोलह श्रृंगार किया करती हैं कहा गया है कि नरक चतुर्दशी के पर्व के दिन जो भी महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं उनको सौभाग्यवती औऱ सौंदर्य का आशीर्वाद मिलता हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
नरकासुर ने किस भगवान की कठोर तपस्या करके वरदान प्राप्त किया था ?
भगवान ब्रह्माजी
भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर के कैद से कितनी कन्याओं को मुक्त किया था ?
सोलह हजार एक सौ कन्या
भगवान श्रीकृष्ण ने किसकी सहायता से नरकासुर का वध किया था ?
पत्नी सत्यधामा
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