Janmashtami | आखिर क्यों 2 दिन मनाई जाती हैं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ? जानेंगे इस रहस्य को.

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Janmashtami | हिन्दू धर्म में प्रमुख त्योहारों में से एक त्यौहार है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जोकि भाद्रपद महीने में कृष्ण पक्ष के आठवें दिन मनाया जाता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी और श्रीकृष्ण जयंती के नाम से भी जाना जाता हैं. यह त्यौहार हिंदुओं के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि भगवान विष्णु ने भगवान श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया था. ऐसा कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म पांच हजार वर्ष पहले द्वापर युग में मथुरा नगर में मध्यरात्रि में हुआ था. ऐसी मान्यता है कि कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था लेकिन क्या आप जानते हैं कि कृष्ण जन्माष्टमी अक्सर 2 दिन मनाई जाती हैं एक दिन स्मार्त द्वारा और वैष्णवों द्वारा.

Janmashtami | आखिर क्यों होती है स्मार्त और वैष्णवों की जन्माष्टमी अलग अलग दिन :

पुराणों में बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि में हुआ उस वक्त रोहिणी नक्षत्र और वृषभ लग्न था. जन्माष्टमी को मनाने वाले दो समुदाय अलग अलग तिथियों में श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव मनाया करते हैं. सनातन धर्म को 5 (पांच) संप्रदायों में बांटा गया है जो हैं वैष्णव, शैव, शाक्त, स्मार्त और वैदिक संप्रदाय.

यहां पर बता दे कि वैष्णव संप्रदाय विष्णु भगवान को परमेश्वर मानते हैं. शैव सम्प्रदाय भगवान शिव को परमेश्वर मानते हैं शाक्त संप्रदाय देवी को परमशक्ति मनाते हैं और स्मार्त संप्रदाय जोकि परमेश्वर के सभी रूपों को एक समान मानते हैं और सभी देवी देवताओं की पूजन किया करते हैं यहां पर गृहस्थ आश्रम (जीवन) को स्वीकार करने वाला मनुष्य स्मार्त संप्रदाय में आते हैं क्योंकि वो सभी की पूजा किया करता है अंत में आते हैं वैदिक संप्रदाय जोकि वेदों को मानते हैं व पुराणों को नही मनाते हैं. वैसे तो सभी सम्प्रदायों का धर्म ग्रंथ है क्योंकि वेदों से ही आगें पुराणों का प्रतिपादन हुआ है लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को लेकर स्मार्त संप्रदाय और वैष्णव संप्रदाय के दृष्टिकोण में अंतर है.

Janmashtami | जान लेते हैं कि स्मार्त संप्रदाय और वैष्णव संप्रदाय के दृष्टिकोण में किस प्रकार का अंतर है :

ये तो हम सभी जानते ही है की भगवान श्रीकृष्ण का जन्म बहुत ही विकट परिस्थितियों में हुआ था क्योंकि कंस के द्वारा देवकी के सारे संतानों को मौत के घाट उतार दिया जा रहा था स्मार्त संप्रदाय यानि कि गृहस्थ जीवन वाले लोग भगवान के जन्म होने से पहले व्रत रखते हैं जिससे कि भगवान का जन्म माता देवकी के गर्भ से सकुशल पूर्वक हो जाए इसी सकुशलता के लिए व्रत को करते हैं और मध्य रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के साथ पूजा अर्चना  करने के बाद भोजन या फिर फलहारी किया जाता हैं इसलिए स्मार्त लोगों यानि कि गृहस्थ जीवन में जीने वाले को कृष्ण जन्माष्टमी उस दिन मनाना चाहिए जिस भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी और रात्रि में रोहिणी नक्षत्र का संयोग हो.

वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद भगवान का प्राकट्योत्सव मनाया करते हैं क्योंकि भगवान के जन्म के बाद भगवान रात्रि में ही गोकुल पहुँच गए और सुबह जब सबको जानकारी हुआ कि भगवान का जन्म हो चुका है और भगवान सकुशल भी है तो सभी वैष्णवों और गोकुल वासियों ने भगवान के जन्मोत्सव को मनाया यही कारण है कि आज भी इसी परंपरा के अनुसार वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान का प्राकट्योत्सव मनाते हैं जब अष्टमी उदय तिथि हो अर्थात सूर्य उदय के समय जब अष्टमी तिथि हो.


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FAQ – सामान्य प्रश्न

सनातन धर्म को कितने सम्प्रदाय में बांटा गया है ?

5 (पांच)

स्मार्त सम्प्रदाय के लोग किस तिथि में जन्माष्टमी मनाते हैं ?

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी और रात्रि में रोहिणी नक्षत्र हो.

वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान का जन्मोत्सव कब मनाते हैं ?

अष्टमी उदय तिथि हो अर्थात सूर्य उदय के समय अष्टमी तिथि हो. 


अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.