Jagannath Snana Yatra | मान्यता के अनुसार हिंदू धर्म में आषाढ़ माह का बहुत महत्व हैं क्योंकि इसी माह देवशयनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की आराधना करके शुभ फलों को प्राप्त किया जाता हैं. इसी आषाढ़ मास में ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) निकाली जाती हैं और माना जाता हैं जगन्नाथ जी भगवान विष्णु (Vishnu) का ही दूसरा रूप है. पुरी के जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ भगवान अपनी बहन देवी सुभद्रा ओर बड़े भाई बलराम के साथ विराजमान हैं.
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा को गृभार्गग्रह से बाहर आते हैं और फिर उन्हें स्नान मंडप में लाया जाता हैं पानी में सुगंधित फूल, चंदन, केसर, कस्तूरी औषधियां मिलाई जाती हैं और फिर 108 घड़ों से इन्हें स्नान कराया जाता हैं इसे सहस्त्रस्नान कहा जाता हैं.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पूर्णिमा के दिन पानी से नहाने (Jagannath Snana Yatra) की वजह से भगवान बीमार हो जाते हैं उन्हें बुखार हो जाता हैं जिसके कारण भगवान 15 दिनों तक शयन कक्ष में विश्राम करते हैं. बीमारी के कारण मंदिर में इन 15 दिनों तक घण्टे आदि नहीं बजाये जाते सिर्फ यहीं नहीं अन्न का कोई भोग नहीं लगाया जाता आयुर्वेदिक काढ़े ही प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. यह परंपरा हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा से शुरू होती हैं लेकिन हर साल भगवान जगन्नाथ क्यों हो जाते हैं बीमार, क्या हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा.
Jagannath Snana Yatra | जानते हैं कि आखिर क्यों हर बीमार पड़ते हैं भगवान श्री जगन्नाथ
पौराणिक कथानुसार बहुत सालों पहले जगन्नाथपुरी (Jagannath Puri) में एक भगवान जगन्नाथ का एक भक्त माधव दास रहते थे. वे अकेले रहते दुनिया से उनका कोई लेना देना नहीं था बस अकेले बैठे बैठे भजन किया करते रोज प्रभु जगन्नाथ जी के दर्शन किया करते और उन्हीं को अपना सखा मानते उनके साथ साथ खेलते यहां प्रभु भी अपने माधव दास के साथ अनेक प्रकार की लीलाएं किया करते. एक बार माधव दास बीमार पड़ गया वह इतना दुर्बल हो गया कि उसे उठा बैठा भी नहीं जा सकता था फिर भी जब तक बना वो अपना काम खुद किया करता किसी से कोई मदद भी नहीं लेता अगर कोई अपनी तरफ से मदद करना भी चाहता तो माधव दास कहता ” मेरे तो केवल एक जगन्नाथ जी हैं वहीं मेरी रक्षा करेंगे ” किन्तु दिन प्रतिदिन उसका रोग और बीमारी बढ़ती गई और स्थिति ऐसी हो गई कि वो उठने बैठने में बिल्कुल असमर्थ हो गए तब श्री जगन्नाथ जी खुद सेवक बनकर उनके घर पहुंचे और माधव दास को बोला कि हम आपकी सेवा कर दें महाराज. अपने प्रिय भक्तों के लिए भगवान क्या नहीं करते क्योकि माधव दास का रोग इतना बढ़ गया था कि उसको होश नहीं था कि कब मल मूत्र त्याग देते थे, वस्त्र और शरीर खराब हो गए थे और उसके शरीर से दुर्गंध आने लगी थी उनके वस्त्रों को भगवान श्री जगन्नाथ जी अपने हाथों से साफ किया करते, पूरे शरीर को साफ करके उसको स्वच्छ रखते थे.
इस तरह की सेवा कोई अपना भी नहीं कर सकता जितना कि जगन्नाथ जी ने अपने भक्त माधव दास की की जब माधवदास को होश आया तब वो तुरंत पहचान लिया कि ये तो मेरे भगवान श्री जगन्नाथ जी है और एक दिन मौका देखकर माधव दास ने पूछ लिया कि “प्रभु आप तो त्रिभुवन के स्वामी होने के बावजूद भी आप मेरी सेवा कर रहे हैं आप चाहते तो मेरा रोग जल्द ही दूर कर सकते थे, रोग को दूर कर देने से आपको ये सेवा भी नहीं करनी पड़ती” इस पर जगन्नाथ जी ने कहा – माधव ! मुझसे अपने भक्तों का कष्ट नहीं देखा जाता यही कारण है कि मैंने तुम्हारी सेवा स्वयं की. जो जैसा कर्म करता हैं उसको वैसा ही फल भोगना ही पड़ता है अगर कोई कर्म का फल इस जन्म में नहीं भोग पाता है तो उसको अगला जन्म दुःख भोगने के लिए लेना पड़ेगा और मैं नही चाहता कि मेरे भक्त को फिर से कर्मो के कारण अगला जन्म दुःख भोगने के लिए लेना पड़े यही कारण है कि मैंने स्वयं ही तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर तुम फिर भी कह रहे हो तो मैं अपने भक्त की बात को नहीं टाल सकता अब तुम्हारें कर्मों में से 15 दिन का रोग बाकी रह गया हैं, इसलिए 15 दिन का रोग मुझे दे दो. और फिर भगवान जगन्नाथ जी ने माधव दास का 15 दिन का बचा हुआ रोग ले लिया यहीं कारण है कि आज भी भगवान जगन्नाथ जी बीमार होते हैं क्योंकि प्रभु भक्तों के सहायक बनकर उनको कर्मों के दुखों से,कष्टों से सहज ही पार कर देते हैं.
यही कारण हैं कि सहस्त्रस्नान के बाद भगवान जगन्नाथ जी 15 दिन के लिए बीमार हो जाते हैं और फिर उनका उपचार चलता हैं जिसके दौरान 15 दिनों तक मंदिर के कपाट बंद रहता है वैसे तो जगन्नाथ भगवान की रसोई बंद नही होती किन्तु इन 15 दिनों तक रसोई भी बंद रहती हैं क्योंकि भगवान को 56 भोग नहीं लगाया जाता बल्कि इनकी जगह 15 दिनों तक आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है जगन्नाथ मंदिर में भगवान की बीमारी को जांचने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं. बीमार के समय उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाने के साथ रात्रि में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता हैं.
जब भगवान स्वस्थ हो जाते हैं तब अपने विशालकाय रथों पर अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को विराजमान होकर नगर यात्रा करके अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर में जाएंगे और नौ दिन रहेंगे और फिर शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ इस यात्रा का समापन होता है ऐसी मान्यता है कि भगवान अपने भक्तों का सुख दुख लेने रथ यात्रा (Yatra) पर निकलते हैं.
FAQ – सामान्य प्रश्न
भगवान जगन्नाथ जी को किस तिथि में सहस्त्र स्नान कराया जाता हैं ?
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि
जगन्नाथ जी कितने दिन तक बीमार होते हैं ?
15 दिनों तक
बीमार होने पर भगवान जगन्नाथ जी को क्या पिलाया जाता हैं ?
आयुर्वेदिक काढ़ा
भगवान स्वस्थ होने पर रथ यात्रा करके कहाँ जाते हैं ?
अपनी मौसी के घर गुंडिचा
रथ यात्रा का समापन कब होता हैं ?
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को
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