Bhimashankar Jyotirlinga| जानते हैं भगवान शंकर के छठे ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के बारे में विस्तार से, इसके पीछे की पौराणिक कथा और कैसे पड़ा भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का नाम.

Bhimashankar Jyotirlinga

Bhimashankar Jyotirlinga | भगवान शंकर के 12 (बारह) ज्योतिर्लिंग में भीमा शंकर (Shiv) का छठा स्थान है यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110km दूर सह्न्द्री पर्वत पर स्थित हैं इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को भगवान के रूप में पूजा जाता हैं इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी बड़ा और मोटा हैं जिसके कारण इस मंदिर को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता हैं. इस मंदिर के पास ही भीमा नदी बहती हैं जो कृष्णा नदी में जाकर मिलती हैं. यह मंदिर 3,250 फीट की ऊँचाई पर स्थित हैं माना जाता हैं कि भगवान शिव यहां पर निवास करते हैं

Bhimashankar Jyotirlinga | जानते हैं भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा को :

पौराणिक कथा (Mythology) के अनुसार त्रिपुरासुर नाम का एक राक्षस था जोकि भगवान शिव (Shiv) का परम भक्त था उसने भगवान शिव से “अमरता” का वरदान पाने के लिए शंकर भगवान की कठोर तपस्या की और इसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इसकी इच्छा अमरता होने का वरदान इस शर्त में दिया कि वह लोगों के कल्याण के कार्य करेंगे और सबकी मदद भी करेगा त्रिपुरासुर इससे राजी हो गया किन्तु कूछ समय के बाद वह अपना वचन भूल गया और घमंड में देवताओं और मनुष्यों दोनों को परेशान करना शुरू कर दिया. तब देवताओं ने भगवान शिव से राक्षस के आतंक से मुक्ति के लिए विनती की तो भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती से प्रार्थना किया तब वे दोंनो अर्धनारी नटेश्वर के रूप में अवतरित हुए और त्रिपुरासुर का वध करके शान्ति कायम किया.

भगवान शिव इस युद्ध में काफी थक चुके थे इसलिए उन्होंने सहाद्रि पर्वत पर विश्राम किया जैसे ही भगवान शिव विश्राम किया उनके शरीर से पसीना बहने लगा जोकि कई छोटी छोटी धाराएँ बनने लगी और ये सभी छोटी छोटी धाराएं मिलकर सामुहिक रूप से एक तालाब का निर्माण हुआ. भीमा नदी इसी तालाब से शुरू हुई थी तब भक्तों ने भगवान शिव से इसी स्थान पर हमेशा के लिए निवास करने की प्रार्थना किया और भगवान शिव ने अपने भक्त के विनय को स्वीकार करके ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं बस गए.

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Bhimashankar Jyotirlinga | जानते हैं कि कैसे पड़ा इसका नाम  “भीमाशंकर” :

शिवपुराण के अनुसार कुम्भकर्ण का एक पुत्र था जिसका नाम भीम कहा जाता हैं कि कुम्भकर्ण को कर्कटी नामक महिला पर्वत पर मिली थी उसे देखकर कुम्भकर्ण उस पर मोहित हो गया और उससे विवाह कर लिया विवाह के बाद कुम्भकर्ण लंका लौट आया लेकिन कर्कटी पर्वत पर ही वहीं रह गई. कुछ समय बाद कर्कटी को एक पुत्र हुआ जिसका नाम भीम रखा गया.

जब भीम बड़ा हुआ तो उसे ज्ञात हुआ कि पिता का वध भगवान श्रीराम ने किया है तो वह उनसे बदला लेने के लिए आतुर हो गया और इसके लिए उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की, भीम की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे विजयी होने का वरदान दिया. इस वरदान से भीम ने अत्याचार करना शुरू कर दिया. भीम के आतंक से हर कोई भयभीत रहने लगा यहां तक कि देवी देवता भी परेशान होने लगे तब सभी देवी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे सभी देवी देवताओं को भगवान शिव ने राक्षस से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया तब भगवान शिव ने भीम से युद्ध किया और उसे जलाकर भस्म कर दिया. इसी प्रकार से भीम नाम के राक्षस से सभी को मुक्ति मिली इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव से इसी स्थान पर शिवलिंग रूप में निवास करने का आग्रह किया जिसे भगवान शिव (Shiv) ने मानव कल्याण के लिए सहज स्वीकार कर लिया तबसे भगवान शंकर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान हैं.

Bhimashankar Jyotirlinga | जानते हैं भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के महत्व को :

1) इस मंदिर की मान्यता है कि अगर कोई इस मंदिर के हर दिन सुबह  सूर्योदय के बाद दर्शन करता है उसके सारे जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं और उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं.

2) इस ज्योतिर्लिंग के सिर्फ दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के सभी दुःखों से मुक्ति मिल जाती हैं.

3) भीमा शंकर ज्योतिर्लिंग एक सिद्ध स्थान है यहां जो भी भक्त सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आते हैं वह पूर्ण होती हैं.

4) सावन महीने में भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का नाम लेने से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं.


FAQ – सामान्य प्रश्न

बारह ज्योतिर्लिंगों में से छठवां ज्योतिर्लिंग कौन सा है?

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

कुंभकर्ण के बेटे का नाम क्या है?

भीम

भगवान शंकर ने किस राक्षस का  वध किया था?

त्रिपुरासुर राक्षस

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को दूसरे किस नाम से जाना है?

मोटेश्वर महादेव 


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