Durgadhar Mandir | उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले का बोरा ग्राम में स्थित दुर्गा माँ का एक प्राचीन मंदिर है जो दुर्गाधार मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. इस दुर्गाधार मंदिर के बारे में कहा जाता हैं यह मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र ही नहीं जबकि यहां की परंपरा और चमत्कार इस मंदिर को ओर भी खास विशेष बनाती हैं. इस दुर्गाधार मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बीच में एक दरार हैं और यह दो भागों में बंटा हुआ है इसके साथ ही इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि माँ दुर्गा गांव में कोई भी विपत्ति आने से पहले सचेत कर दिया करती हैं तो चलिए जानते हैं दुर्गाधार मंदिर से जुड़े रहस्यों को.
दुर्गाधार मंदिर की स्थापना की पौराणिक कथा
दुर्गाधार मंदिर की स्थापना को लेकर कहा जाता हैं कि प्राचीन काल में गांव के एक परिवार की गाय प्रतिदिन जंगल में एक पेड़ के नीचे दूध प्रवाहित करती थी लेकिन घर में कभी भी उसका दूध नही निकलता था. एक दिन उस गाय का मालिक गाय का पीछा करते हुए जंगल के उस शिला रूपी स्थान को देखा जहां गाय दूध डालती थी तब गाय के मालिक ने गुस्से में गाय पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया लेकिन प्रहार गाय पर न लगकर शिला पर लगा. इसके पश्चात गांव वालों ने उस शिला का अंतिम छोर को खोजने के लिए खुदाई शुरू किया. खुदाई करते करते गांव वाले थक गए किंतु शिला का अंत नहीं मिला लेकिन वहां आकाशवाणी हुई और इसके बाद इस शिला के स्थान पर माँ का मंदिर का निर्माण कराया गया और तब से यह मंदिर आस्था का केंद्र बना एवं इस दिव्य स्थान पर माँ दुर्गा और भगवान शिव एक साथ विराजमान है.
दुर्गाधार मंदिर में बाघ आकर माथा टेकते है
दुर्गा माँ के वाहन बाघ को लेकर यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर में आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान के समय माँ के दरबार में बाघ आते हैं, परिक्रमा करते हैं और शांति पूर्ण से वापस चले जाते हैं. बाघ तो सामान्य रूप में आक्रामक होते हैं लेकिन इस मंदिर में आने वाले बिना किसी को नुकसान पहुचाएं बहुत शांत रहते हैं.
माँ दुर्गा अनहोनी से पहले सचेत करती है
दुर्गाधार मंदिर में दुर्गा माँ की दिव्यशक्ति के अलावा यह भी मान्यता है कि अगर किसी भी तरह की विपत्ति की आशंका होती हैं तो दुर्गा माँ पहले ही गांव वाले को सचेत कर दिया करती हैं इसके लिए देवी की पश्वा बनने की परंपरा देखने को मिलती है. कहा जाता हैं कि जब भी किसी भी तरह अनहोनी होने की आंशका होने पर देवी माँ गांव के किसी भी एक व्यक्ति पर अवतरित हो जाता करती हैं जिसको देवी का पश्वा कहते हैं और आज भी यह परंपरा बरकरार है एवं माना जाता है कि गांव वाले पर आज भी दुर्गा माँ का आशीर्वाद कायम है और आज भी किसी भी अनिष्ट होने से पहले दुर्गा माँ गांव वालों को सचेत कर देती हैं.
दुर्गाधार मंदिर, उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन का मुख्य केंद्र
दुर्गाधार मंदिर न केवल उत्तराखंड का ही जबकि देशभर के श्रद्धालुओं की विश्वास और आस्था का प्रतीक हैं जो कि प्रकृति की सुंदरता और दिव्य शक्ति का संगम है. इस मंदिर के चारों ओर से मंत्रमुग्ध करने वाले घिरा पहाड़ियां श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं तो वहीं भक्तों को दुर्गा माँ के चमत्कार और मंदिर की दिव्यता का भी अनुभूति कराती हैं. इस मंदिर में दुर्गा माँ की चमत्कारी घटनाएं और बाघ की भक्ति इस मंदिर को खास बनाने के साथ ही यहां आने वालों को चौखंबा पर्वत के दर्शन और मंदिर की पवित्रता का एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव कराती हैं.
दुर्गाधार मंदिर कैसे पहुँचा जाएं
दुर्गाधार मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में नागनाथ पोखरी रूट पर है.इस मंदिर तक आने के लिए कई परिवहन सुविधाएं उपलब्ध हैं. रुद्रप्रयाग जिला राज्य के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है, देहरादून से 180 km की दूरी, हरिद्वार से 160 km की दूरी तो वहीं ऋषिकेश से 140 km की दूरी पर है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) दुर्गाधार मंदिर किस राज्य में स्थापित है ?
उत्तराखंड.
2) उत्तराखंड के किस स्थान पर दुर्गाधार मंदिर स्थित है ?
रुद्रप्रयाग जिले के बोरा ग्राम.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.