Vastu Shastra में कितने दिशायें है? उनके क्या प्रभाव होते हैं और किस दिशा में क्या रखे ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे.

Vastu Directions

Vastu Shastra | वास्तु शास्त्र जिसका शाब्दिक अर्थ होता हैं – “”वास्तु कला का विज्ञान””. मान्यता के अनुसार वास्तु शास्त्र का मतलब होता हैं ”वैदिक निर्माण विज्ञान”. वास्तु शास्त्र के जनक विश्वकर्मा जी हैं यह किसी निर्माण के कारण होने वाली समस्याओं के कारण और निवारण को बताता है. ये किसी भवन निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं जिसमें वास्तुशास्त्र के ज्ञाता भूमि की शुभ अशुभ दशा का अनुमान आसपास उपस्थित वस्तुओं को देखकर लगाते हैं.

Vastu Shastra | वास्तु शास्त्र की दिशायें :

वास्तु शास्त्र में घर की वस्तुओं को रखने की शुभ – अशुभ दिशाएं बताई जाती हैं क्योंकि अगर सही दिशा में चीजें नही रखी जाए तो घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास हो जाता हैं और अगर चीजें वास्तु के अनुसार सही दिशा में रखी जाती हैं तो घर में सकारात्मकता बढ़ जाती हैं. सभी दिशाओं का अलग अलग महत्व है और सभी दिशाओं के अपने अलग अलग देवता भी है.

Vastu Shastra |किस दिशा में क्या रखें ताकि घर में बनी रहें सकारात्मकता :

1) पूर्व दिशा –

ये दिशा अग्नि तत्व से संबंधित है और इस दिशा का स्वामी सूर्य और इंद्र हैं. ये दिशा सोने के लिए, पढ़ाई के लिए शुभ मानी गई हैं घर में इस दिशा में एक खिड़की अवश्य होनी चाहिए जिससे कि सूर्य की किरणों का घर में प्रवेश होने से घर में सकारात्मकता बनी रहे क्योंकि ये संपन्नता और समृद्धि को आकर्षित करता है. इस दिशा में भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति ज़रूर रखे.वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में किसी प्रकार से कोई समस्या होने से पिता – पुत्र के बीच तनाव पैदा होती हैं और साथ ही स्वास्थ्य को लेकर कई अन्य समस्याएं जागृत होती हैं.

2) पश्चिम दिशा –

इस दिशा का संबंध वायु तत्व है और शनि इस दिशा का स्वामी हैं इस दिशा में रसोई घर नहीं बनाना चाहिए. पश्चिम दिशा में किसी प्रकार की समस्या होने पर परिवार के सदस्यों को हवा के माध्यम से फैलने वाले रोग और हड्डियों व पैरों का दर्द उत्पन्न होती हैं इसके अलावा इस दिशा में अगर कोई दिक्कत हो तो घर के बिजली के उपकरण सही से कम नहीं करते हैं.

3) उत्तर दिशा –

ये दिशा जल तत्व से संबंधित है व कुबेर देव इस दिशा के देवता माने गए हैं यह दिशा धन समृद्धि को बताता है इसलिए इस दिशा में मंदिर बना सकते हैं या फिर रख सकते हैं इसके साथ ही घर का मुख्य द्वार भी इस दिशा में रखा जा सकता है.अगर ये दिशा अनिष्ट शक्तियों के अधीन हो जाये तो आर्थिक समस्याओं के साथ साथ स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कि नाक और गले के रोग जैसी परेशानी हो सकते हैं और इसके अलावा लगातार बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है.

4) दक्षिण दिशा –

इस दिशा का तत्व पृथ्वी है और देवता यम हैं. इस दिशा में भारी सामान रखना चाहिए, धन का जमावड़ा होना चाहिए क्योंकि ये धन संचय करने की सबसे अच्छी जगह है. अगर इस दिशा की तरफ कोई वास्तु दोष उत्पन्न हो जाए तो इसकी वजह से कानूनी अड़चनें पैदा हो सकती हैं साथ ही बड़े भाई के साथ विवाद हो सकते हैं.

5) उत्तर-पूर्व(ईशान कोण)दिशा –

इस दिशा का तत्व जल हैं और स्वामी बृहस्पति हैं. इस दिशा को सबसे पवित्र और शुभ माना गया है. वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण देवताओं द्वारा शासित होता हैं इसलिए इस दिशा में वाशरूम, शौचालय या फिर कूड़ाघर नही बनाना चाहिए बल्कि इस दिशा में पूजा घर और बोरिंग वॉरटैक बनाना चाहिए इसके अलावा इस दिशा को हमेशा साफ सुथरा होना चाहिए अगर इस दिशा में किसी भी प्रकार का वास्तु दोष उत्पन्न हो जाए तो धन में गिरावट और पारिवारिक परेशानी का कारण बन जाती हैं.

6) उत्तर – पश्चिम (वायव्य कोण) दिशा –

ये दिशा वायु तत्व का कोण हैं. इस दिशा का स्वामी चंद्रमा है. ये वायव्य कोण  खिड़की के स्थान मानी गई हैं यहां मेहमान कमरा (गेस्ट रूम) बनाया जा सकता हैं लेकिन अगर इस दिशा में कोई वास्तु दोष उत्पन्न हो जाए तो पड़ोसियों के साथ विवाद और मानसिक तनाव जैसी परेशानी हो सकती हैं इसके अलावा यदि कोई लड़की शादी योग्य उम्र होने पर भी उसकी विवाह योग में देरी हो सकती हैं.

7) दक्षिण-पूर्व(आग्नेय कोण) दिशा –

ये दिशा अग्नि तत्व का प्रतिनिधि करता है और इस दिशा का देवता या स्वामी अग्निदेव हैं इसलिए इस दिशा में किचन बनाना चाहिए और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी रख सकते हैं अगर इस दिशा में वास्तु दोष हो तो घर में हमेशा परेशानी बनी रहती हैं. विवाहित जोड़ों के बीच गलतफहमी और अशांति जैसी कई समस्याएं बनी रहती हैं.

8) दक्षिण-पश्चिम (नैरुत्य कोण) दिशा –

ये दिशा पृथ्वी तत्व का स्थान माना गया है और इस दिशा का स्वामी राहु व केतु हैं. इस दिशा में टीवी,रेडियो और खेलकूद का सामान रखना चाहिए इसके साथ ही इस दिशा में मास्टर बेडरूम बनाना चाहिए अगर  नैरुत्य कोण यानि दक्षिण-पश्चिम दिशा में वास्तु दोष पैदा हो जाए तो पितृ दोष और मातृ – पितृ पक्ष से जुड़ीं समस्याएं उत्पन्न होने के साथ ही परिवार के सदस्य दुर्घटनाओं, बीमारियों, मस्तिष्क संबंधी जैसी परेशानियों के शिकार हो सकते हैं. 


FAQ – सामान्य प्रश्न

वास्तु शास्त्र में कितनी दिशाएं होती हैं

8 दिशाएं

उत्तर-पूर्व(ईशान कोण) दिशा के स्वामी कौन है ?

उत्तर-पूर्व(ईशान कोण) दिशा का तत्व जल हैं और स्वामी बृहस्पति हैं


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