Vastu Shastra | वास्तु शास्त्र किसी निर्माण से जुड़ी चीजों के परिणाम यानि कि चीजों के शुभ अशुभ फलों को बताता हैं, यह किसी निर्माण के समय होने वाली समस्याओं के कारण और निवारण को भी बताता हैं. वास्तु शास्त्र आशावादी और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह के माध्यम से किसी दिए गए स्थान पर काम करने वाली सभी शाक्तियों को समाहित करती हैं. सही तरीके से वास्तु नियमों का पालन होने पर नकारात्मक ऊर्जा दूर होती हैं और समृद्धि को आकर्षित करती हैं. वास्तु शास्त्र भूमि, दिशाओं और ऊर्जा के नियम पर कार्य करती हैं इसमें भी पांच तत्वों को संतुलित करने का क्षमता होती हैं.
वास्तु शास्त्र के अनुसार दो प्रमुख ताकतें होती है जो कि समान रूप से और विपरीत रूप से वातावरण में मौजूद होती हैं, सरल भाषा में कहा जाए तो एक ताकत सकारात्मक होती हैं और दूसरी नकारात्मक हैं. उस स्थान का वास्तु बनाने वाली इन शक्तियों की तीव्रता एक जैसी नहीं हो सकती लेकिन इन ताकतों का पारस्परिक प्रभाव लगातार बनी रहती हैं, चुंबकीय बल के साथ गुरुत्वाकर्षण बल का उपाय करके लोग अपने जीवन से नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करते हैं.
वास्तु शास्त्र एक प्राचीन विद्या हैं जिसको वर्तमान आधार पर समझना आवश्यक हैं, वास्तु के अनुसार किसी ऐसी जगह में प्रवेश करना जो निर्माणाधीन हो यानि जिसकी बनावट पूरी ना हुई हो वह हमारे जीवन में कई प्रकार की परेशानियों को बढ़ती है उस जहां की नकारात्मक ऊर्जा हममें प्रवेश कर जाती हैं जिससे शारीरिक और भावनात्मक परेशानी होती हैं. वास्तु शास्त्र के आधार पर घर बनने से सभी प्रकार की परेशानियों से छुटकारा मिलने के साथ ही कई तरह के बेहतर अनुभव मिलते हैं.
Vastu Shastra | जानते हैं वास्तु शास्त्र के कौन कौन से है तत्व :
वास्तु शास्त्र पाँच तत्वों से बना है जिनका अपना विशिष्ट महत्त्व और भूमिका है.
1) पृथ्वी तत्व –
पृथ्वी या भूमि का अपना चुंबकीय बल हैं और इसका आकर्षण केंद्र पश्चिम दक्षिण के ध्रुवों से बना है. पांच तत्वों में पृथ्वी एक ऐसी तत्व है जोकि प्राणियों को सूँघने की शक्ति प्रदान करती हैं.पृथ्वी तत्व पर तीन तत्व अग्नि,जल और वायु तत्व विशेष रूप से हावी होते है पृथ्वी या भूमि का चयन भूमि के प्रकार व आकर पर ध्यान देना चाहिए और इसके बाद ही निवास स्थल व्यवसाय स्थल और धार्मिक स्थल का चुनाव करना चाहिए.
वास्तु शास्त्र के अनुसार वर्गाकार या आयताकार भूमि का इस्तेमाल भवन या फिर निवास स्थल के लिए करना चाहिए ,इसके साथ ही भूमि का चयन ऐसा होना चाहिए कि भवन के दक्षिण पश्चिम यानी कि नैऋत्य कोण पर पृथ्वी तत्व का स्वामित्व और आधिपत्य होना चाहिए. दक्षिण पश्चिम दिशा में ज्यादा भारी निर्माण या फिर मोटी दीवारों का निर्माण करना बहुत ही शुभ माना जाता हैं. इस बात का ज़रूर ध्यान रखना चाहिए कि अगर दक्षिण पश्चिम में पृथ्वी तत्व की कमी होने पर घर में रहने वाले लोगों के बीच मनमुटाव और असुरक्षा की भावना पैदा होती हैं.
2) जल तत्व –
जल तत्व भूमि या निवास स्थल के उत्तर पूर्व दिशा से संबंधित होता हैं जल तत्व का स्वामी वरुण देव हैं इसके अलावा ये तत्व मानव शरीर में स्वाद की पहचान करवाता है. घर के उत्तर व पूर्व दिशा में पानी की टंकी ,हैंडपंप, दर्पण या फिर पारदर्शी कांच को इसलिए रखना चाहिए क्योंकि घर के उत्तर पूर्व दिशा में जल तत्व का आधिपत्य होता हैं.बाथरूम के लिए घर का पूर्वी भाग और सेप्टिक टैंक के लिए उत्तर पश्चिम दिशा शुभ फल देने वाला होता हैं. वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर घर में जल तत्व की कमी हो जाये तो परिवार के सदस्यों के बीच अनबन बनी रहती हैं.
3) अग्नि तत्व –
वास्तु शास्त्र के अनुसार पंचतत्वों में अग्नि ही ऐसा तत्व है जो प्राणियों को स्पर्श का अहसास करवाता है. भूमि या भूखंड के दक्षिण पूर्व यानि कि आग्नेय कोण में अग्नि तत्व का प्रभाव और आधिपत्य होता हैं इसलिए किचन और बिजली का मीटर दक्षिण पूर्व दिशा में लगवाने से शुभ होता हैं. त्रिकोण अग्नि तत्व का प्रतीक होता हैं इसलिए कभी भी त्रिकोणनुमा भूमि या फिर प्लॉट पर घर का निर्माण नही करना चाहिए इससे कई समस्याओं और दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता हैं. घर या भवन में अग्नि तत्व के संतुलित होने से आर्थिक स्थिति में सुधार तो होगा ही साथ ही मान सम्मान में बढ़ोतरी भी होंगी.
4) वायु तत्व –
वायु तत्व पांच तत्वों का ऐसा तत्व है जो वास्तुपुरूष के श्वास का प्रतीक हैं.घर के उत्तर पश्चिम दिशा यानी कि वायव्य कोण में वायु तत्व की प्रधानता होती हैं. घर के लोगों की अच्छे स्वास्थ्य के लिये घर में वायु तत्व को एक निश्चित अनुपात में होना बहुत ज़रूरी होता हैं अगर वायु तत्व में कमी होने पर घर में रहने वाले लोग अल्पायु होते हैं. वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन में वायु तत्व के सही अनुपात में होने से भवन या घर में रहने वाले लोगों का समाज में मान सम्मान की बढ़ोतरी होती हैं.
5) आकाश तत्व –
आकाश तत्व के स्वामी ग्रह देवता गुरु बृहस्पति और आराध्य देव परमपिता ब्रह्मा माने गए हैं ये आकाश तत्व सुनने की शक्ति प्रदान करता है. वास्तु शास्त्र के अनुसार अगर घर में आकाश तत्व की कमी हो जाये तो घर में अक्षय लड़ाई झगड़े हुआ करते है इसलिए घर में आकाश तत्व का सही अनुपात में बनाए रखना चाहिए जिससे घर में मीठे स्वर और शान्ति भरा मौहाल बना रहे.
ब्रह्मस्थान यानि घर का मध्य भाग जो आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता हैं इसलिए इस भाग को खुला रखना चाहिए जिससे कि इस हिस्से या भाग में वायु का गमन होता रहे ऐसा होने से घर के लोंगो के बीच प्रेम भरा रिश्ता कायम रहता है,यही वजह है कि पुराने जमाने में बनने वाले घर के मध्य भाग में खुला छत रखा जाता था जिससे कि घर के सभी कोने तक रोशनी और वायु पहुँच सके.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
वास्तु शास्त्र के कौन कौन से है तत्व ?
वास्तु शास्त्र पाँच तत्वों से बना है – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश.
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