Prana Pratishtha | सनातन धर्म मे पूजा पाठ और अनुष्ठान का विशेष महत्व होता है जिसका शास्त्रों में भी उल्लेख मिलता है. मंदिरों के अलावा घर मे भी देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है.हर कोई अपने घर मे किसी न किसी देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित करते हैं शास्त्रों के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा के बिना मूर्ति की पूजा नहीं होनी चाहिए खासकर मन्दिरों में क्योंकि हिंदू धर्म में किसी मंदिर में की जाने वाली भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का विशेष रूप से महत्व होता है मान्यता है कि मंदिर में भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाती हैं और पूजा का शुभ फल की प्राप्ति भी नहीं होती हैं.
Why is the idol of God consecrated in the temple? | मंदिर में भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है :
Prana Pratishtha | सनातन धर्म मे प्राण प्रतिष्ठा का विशेष महत्व होता है. मूर्ति स्थापित करने से पहले प्राण प्रतिष्ठा अवश्य किया जाता हैं. किसी भी मूर्ति को स्थापित करने से पहले मूर्ति को जीवित करने की विधि प्राण प्रतिष्ठा कहलाती है जिसमें “प्राण” शब्द का अर्थ होता है जीवन शक्ति और “प्रतिष्ठा” का अर्थ होता है स्थापना तो ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ जीवन शक्ति की स्थापना करना या फिर देवता को जीवन में लाना होता हैं. मंदिर में स्थापित होने वाली मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा से पहले सिर्फ एक मूर्ति पत्थर, धातु या मिट्टी की मूर्ति मात्र होती हैं किंतु जब उनमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती हैं तो माना जाता है कि उनमें भगवान का वास हो जाता है इसलिए बिना प्राण प्रतिष्ठा के कोई भी मूर्ति पूजा के योग्य नहीं मानी जाती हैं धर्मिक मान्यता है कि प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा मूर्ति में जीवन शक्ति का संचार होता है और यह मूर्ति देवता के स्वरूप में बदल जाया करती हैं और वास्तव में पूजा आराधना मूर्ति की नहीं बल्कि उनमें निहित दिव्य शक्ति और चेतना की होती हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार गृहस्थ जीवन में घर में बने मंदिर में भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान नहीं होता है क्योंकि जिन मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठित किये जाते हैं उनसे जुड़ी कई सारे नियमों का पालन आवश्यक होता हैं जिसको घरों में करना असंभव होता है यही कारण है कि यह कार्य केवल मंदिर में स्थापित देवी देवताओं की मूर्ति के लिए किया जाता हैं.
Prana Pratishtha Ki Puja Vidhi |प्राण प्रतिष्ठा की पूजन विधि :
प्राण प्रतिष्ठा के लिए सही तिथि और शुभ मुहूर्त का होना आवश्यक होता है क्योंकि बिना मुहूर्त के प्राण प्रतिष्ठा करने से शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती हैं. मन्दिरों में जब मूर्तियां लायी जाती है तो मात्र पत्थर की या फिर धातु की होती हैं जिसको प्राण प्रतिष्ठा करके उनको जीवंत बनाया जाता हैं जिससे कि वे सिर्फ मूर्तियां न रह जायें बल्कि उनमें भगवान का वास हो इसके लिए सबसे पहले उस पुजारी के पैर धोए जाते हैं जो प्राण प्रतिष्ठा के लिए भगवान की मूर्ति को लेकर मंदिर में प्रवेश करता है इसके बाद मूर्ति को कम से कम पांच नदियों के जल से या फिर गंगाजल से स्नान कराया जाता है इसके पश्चात मूर्ति को मुलायम वस्त्र से पोछने के बाद देवी देवता के रंग के अनुसार नए वस्त्र धारण कराने के बाद मूर्ति को शुद्ध व स्वच्छ स्थान पर विराजित किया जाता है और चंदन का लेप लगाकर मूर्ति का विशेष तरीके से श्रृंगार किया जाता हैं और बीज मंत्रों का जाप करके प्राण प्रतिष्ठा किया जाता हैं इस समय पंचोपचार करके विधि विधान से भगवान की पूजा किया जाता हैं और फिर अंत देव स्तुति और आरती कर भक्तों में प्रसाद वितरित किया जाता हैं.
Prana Pratishtha Ke Mantra | मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में इन मंत्रों का जाप करें :
अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै देवत्व मर्चायै माम हेति च कश्चन ॥
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव प्रसन्नो भव, वरदा भव ॥
प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति रूप में उपस्थित देवी देवता की विधि विधान से पूजा, धार्मिक अनुष्ठान और इस मंत्रों का जाप किया जाता हैं.
Murti Prana Pratishtha Ka Mahatv | मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा का महत्व :
मान्यता है कि मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करने से भगवान की पूजा करने से मनुष्यों को भय से और सभी बाधाओं से मुक्ति मिलने के साथ ही कष्टों को दूर भी किया जाता हैं. मान्यता है कि प्राण प्रतिष्ठा से एक पत्थर भी भगवान का रूप धारण कर लेता है और भगवान उस मूर्ति में मौजूद हो जाते हैं यहीं कारण है कि जब भक्त किसी ऐसे स्थान पर पूजा करता है तो उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं कहा जाता है कि प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति की पूजा करने से जीवन से बाधाओं को दूर किया जा सकता है इसके अलावा प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति की पूजा करने वालों को रोग दोष से भी मुक्ति मिलती हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
प्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ क्या होता है ?
देवता को जीवन में लाना.
मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा होने से किस का संचार होता है ?
जीवन शक्ति
प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति की पूजा करने से किस दोष से मुक्ति मिलती हैं ?
रोग दोष
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