Maha Shivratri Vrat Katha | हिन्दू पंचाग के अनुसार हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती हैं. महाशिवरात्रि का दिन भगवान शिव की आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने का दिन होता है इस दिन व्रत रखने के साथ शिव परिवार की पूजा किया जाता हैं. पूजा के दौरान महाशिवरात्रि व्रत कथा को पढ़ना और सुनना बहुत फलदायक होता है. शिव पुराण में कहा गया है कि जाने अनजाने में जो कोई मानव और जीव महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का व्रत करता है तो उस पर शिव कृपा बरसती हैं और उससे यमराज के दूत भी दूर रहते हैं इसलिए महाशिवरात्रि व्रत में शिव भक्तों को महाशिवरात्रि की इस कथा (Shivratri ki katha) का पाठ अवश्य करना चाहिए जिससे भगवान शिव मनोकामनाएं पूरी होने का वरदान दे.
Maha Shivratri Vrat Katha | महाशिवरात्रि व्रत कथा :
शिव पुराण की कथानुसार एक गांव में एक चित्रभानु नाम का शिकारी रहता था वो जानवरों की हत्या और शिकार करके अपने परिवार को भरण पोषण करता था. एक बार वह गांव के ही एक साहूकार का कर्जदार हुआ और बहुत कोशिशों के बाद भी वह कर्ज से मुक्त नहीं हो पाया तो एक दिन क्रोधित होकर साहूकार ने उसे शिवमठ में बंदी बना लिया संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव से सम्बंधित धार्मिक बातों को सुनता रहा साथ ही उसने शिवरात्रिव्रत की कथा को भी सुना. शाम होते ही साहूकार ने उस शिकारी को अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात किया तो शिकारी ने वचन दिया कि अगले दिन वह सभी कर्ज को चुकाकर मुक्त हो जाएगा इस पर उसे साहूकार ने छोड़ दिया.
शिकारी रोज की भांति जंगल में जाकर शिकार की तलाश करने लगा लेकिन दिन भर बंदी गृह में रहने के कारण भूख प्यास से व्याकुल था और शिकार को खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया और अंधकर होने से एक तालाब के किनारे पहुंचा वहां एक बेल के पेड़ पर अपना ठिकाना बनाने लगा उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जिसकी उसे इस बात की जानकारी नहीं थी क्योंकि वो बेलपत्रों से ढंका हुआ था वो बेल पेड़ की टहनियों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा और वो बेलपत्र उस शिवलिंग पर गिरते गए चुकी शिकारी भूख प्यास से व्याकुल था और अनजाने में उससे शिवजी की पूजा हो गई.
रात्रि में एक गर्भवती हिरण तालाब में पानी पीने को आई उसे देखकर शिकारी उसे मारने के लिए धनुष बाण तैयार करके ज्यों ही प्रत्यंचा खींची तब हिरणी बोली – मैं गर्भवती हूँ बहुत जल्द ही प्रसव करूंगी, तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगें जो कि अधर्म हैं मैं बच्चे को जन्म देकर जल्द ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊंगी तब मुझे मार लेना यह सुनकर शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी फिर वह हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई. प्रत्यंचा चढ़ाने और ढीली करने के दौरान कुछ बेलपत्र अनायास ही टूटकर शिवलिंग पर गिर गए इस तरह से अनजाने में उस शिकारी का प्रथम प्रहर का पूजन पूरा हुआ. इसके कुछ ही समय बीतने के बाद एक और हिरणी उधर से निकली जिसे देखकर शिकारी को बहुत प्रसन्नता हुई नजदीक आने पर उसने पुनः धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाया यह देखकर हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया – हे शिकारी! मैं थोड़े समय पहले ही ऋतु से निवृत हुई हूँ, मैं कामातुर विरहिणी हूँ और अपने प्रिय को खोज रही हूं और अपने पति से मिलकर बहुत जल्द ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी यह सुनकर शिकारी उसे भी जाने दिया. दो बार शिकार को खोने के बाद वो चिंतित हुआ और फिर रात्रि के आखिरी प्रहर बीत रहा था इस बार भी धनुष से लगकर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे इस तरह से दूसरे प्रहर की भी पूजा सम्पन्न हो गई.
कुछ समय गुजरने के बाद एक अन्य हिरणी अपने बच्चों को लेकर उधर से निकली यह देखकर शिकारी प्रसन्नता के साथ धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई और जैसे ही तीर छोड़ने ही वाला था कि वह हिरणी बोली -हे शिकारी ! मैं इन बच्चों को इसके पिता के पास छोड़कर लौट आऊंगी इस समय मुझे मत मारो. इस पर शिकारी हंसा और बोला कि – सामने आए शिकारी को छोड़ दूँ मैं ऐसा मूर्ख भी नहीं इससे पहले मैंने दो बार अपना शिकार खो दिया हूँ मेरे बच्चे भूख प्यास से व्याकुल हो रहें होंगे तब हिरणी ने जवाब दिया – जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही हैं ठीक वैसे ही मुझे भी अपने बच्चों पर ममता हैं, हे शिकारी ! मेरा विश्वास करो मैं इस बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं. हिरणी की इस तरह से दुख भरा स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आई और उस हिरणी को भी जाने दिया. शिकारी भूख प्यास से व्याकुल और शिकार के अभाव में बेल पेड़ पर बैठकर बेलपत्र को तोड़कर अनजाने में नीचे फेंकता रहा.
सुबह होने को थी तब उसने एक हष्ट पुष्ट हिरण को उसी रास्ते पर आते देखा शिकारी उसे देखकर सोच लिया कि अवश्य ही इस हिरण का शिकार करेगा. शिकारी की तनी प्रत्यंचा को देखकर हिरण ने विनीत स्वर में बोला – हे शिकारी ! अगर तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन हिरणियों और छोटे छोटे बच्चों को मार दिया है तो मुझको भी मारने में विलंब मत करो जिससे कि मुझे उनके वियोग में एक पल भी दुःख सहना नहीं पड़ें क्योकि मैं उन हिरणियों का पति हूँ, अगर तुमने उनसब को जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ पल का जीवन देने की कृपा करो ताकि मैं उन सबसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगा. हिरण की बातें को सुनकर उस शिकारी को पूरी रात्रि का घटनाचक्र घूम गया तब उसने सारी बातें हिरण को सुनाया इस पर हिरण ने कहा – मेरी तीनों पत्नियां जिस तरह से प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई है मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी इसलिए जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर जाने दिया है ठीक वैसे ही मुझे भी जाने दो जिससे कि मैं उन सबके साथ तुम्हारे समक्ष जल्द ही उपस्थित होता हूं.
शिकारी ने उस हिरण को भी जाने दिया और फिर सुबह हो गई इस प्रकार से उपवास, रात्रि जागरण और शिवलिंग पर अनजाने से बेलपत्र को चढ़ाने से शिवरात्रि की पूजा पूरी हो गई लेकिन भगवान शिव की कृपा से अनजाने में ही सही उसे पूजन का परिणाम शीघ्र मिला कि शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो जाने से उसमें भगवद्शक्ति का संचार होने लगा इसके थोड़े पश्चात वह हिरण अपने सपरिवार सहित शिकारी के सामने उपस्थित हो गया जिससे कि वह उसका शिकार कर सकें लेकिन जंगली जानवरों की ऐसी सत्यता, सात्विकता और सामुहिक प्रेम की भावना को देखकर शिकारी को बहुत आत्मग्लानि हुई और उसने हिरण के सपरिवार को जीवन दान दे दिया और स्वंय हिंसा को छोड़कर दया के मार्ग पर चलने लगा. अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर शिकारी को मोक्ष और शिवलोक की प्राप्ति हुई.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
महाशिवरात्रि व्रत कब मनाया जाता हैं ?
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को.
महाशिवरात्रि में किस भगवान की पूजा की जाती हैं ?
भगवान शिव की.
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