Maa Baglamukhi | दस महाविद्याओं में माँ बगलामुखी माता आठवीं महाविद्या मानी जाती है जिसकी पूजा अर्चना गुप्त नवरात्र के आठवें दिन किया जाता हैं. माँ को पीले रंग से विशेष लगाव के होने से इस महाविद्या को पितांबरा देवी भी कहा जाने के अलावा यह पूर्ण जगत की निर्माता, नियंत्रक और संहारकर्ता भी है मान्यता है कि इनकी पूजा साधना करने से साधक को शत्रुओं से विजय प्राप्त करने की शक्ति मिलने के साथ ही जीवन की अनेक बाधाओं से मुक्ति भी मिलती हैं और जीवन में सकारात्मकता आती हैं.माँ बगलामुखी को बगला, पीतांबरा, वल्गामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से पुकारा जाता हैं तो चलिए जानते हैं माँ बगलामुखी के बारे में विस्तार से.
जानते हैं माँ बगलामुखी की उत्पत्ति को :
हिंदू धर्मग्रंथों की कथानुसार एक बार सतयुग में ब्रह्मांडीय तूफान पैदा हुआ जिससे समस्त संसार नष्ट होने लगा था , चारों ओर हाहाकार और त्राहि – त्राहि मची हुई थी जिसके कारण से मनुष्यों की मृत्यु हो रही थी. धरती लोक की ऐसी स्थिति और हालत देखकर भगवान विष्णु बहुत चिंतित हो गए और इस समस्या का समाधान न पाकर उन्होंने भगवान शिव का स्मरण किया. भगवान शिव इस समस्या का समाधान बताते हुए भगवान विष्णु से कहा कि “इस विनाश को रोकने की क्षमता केवल जगत जननी आदिशक्ति में है अतः आप उनकी शरण में ही जाएं”.
भगवान विष्णु ने सौराष्ट्र (वर्तमान का गुजरात) में स्थित हरिद्रा नामक सरोवर के निकट पंहुचकर माँ भगवती आदिशक्ति को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या आरंभ किया माना जाता है कि विष्णुजी के तपस्या से हरिद्रा सरोवर का पानी हल्दी के समान पीले रंग में बदल गया था.कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु कीतपस्या से प्रसन्न होकर सरोवर से बगलामुखी के रूप में श्रीविद्या प्रकट हुई तब विष्णुजी ने उनको समस्या को बताया और फिर माँ बगलामुखी ने शक्तिशाली तूफान का मुकाबला करके उसका नाश कर दिया.
माँ बगलामुखी ने इस तरह से समस्त प्राणियों और जगत को नष्ट होने से बचा लिया और भगवान विष्णु को इच्छित वर दिया और संसार का संचालन पुनः सुचारू रूप से होने लगा. सरोवर का पानी का रंग पीला होने के कारण से माँ बगलामुखी को पीतांबर देवी भी कहा जाता है.तांत्रिक में इनको स्तंभन की देवी माना जाता है तो वही गृहस्थों के लिए यह देवी सभी प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.
जानते हैं माँ बगलामुखी का स्वरूप :
माँ बगलामुखी यौवन स्वरूप में पीले रंग की साड़ी को धारण करती हैं, इनकी कांति गोरी व स्वर्ण जैसी है और यह माँ सोने के सिहांसन पर विराजमान हैं जिनके तीन नेत्र एवं चार हाथ हैं इन्होंने सोने के मुकुट और आभूषण को धारण किया हुआ है. मातारानी के सामने उनके चरणों में एक राक्षस बैठा हुआ है, जिसके जीभ को माँ ने पकड़ा हुआ है और माँ ने अपने एक हाथ में गदा को पकड़ा हुआ है.
जानते हैं माँ बगलामुखी की पूजा विधि को :
1) पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करके साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करें हो सकें तो इस दिन पीले रंग के वस्त्र को धारण करें.
2) अब पूजा के लिए पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठे और एक चौकी को शुद्ध करके उस पर पीला कपड़ा बिछाकर उस आसन पर माँ बगलामुखी की मूर्ति या फिर तस्वीर को स्थापित करें.
3) अब बगलामुखी को पीले रंग के पुष्प, चंदन और पीले रंग के मिठाई को चढ़ाएं एवं धूप और घी के दीपक को जलाएं.
4) अब माँ बगलामुखी के मंत्रों का जाप हल्दी की माला से करके माँ बगलामुखी चालीसा का पाठ करें.
5) अब माँ बगलामुखी की आरती से करें और प्रसाद को सभी को वितरण करें.
6) अब पूजा को समाप्त करके किसी जरूरतमंद को दान करें .
Maa Baglamukhi Chalisa PDF Download | शत्रुओं से रक्षा करने और हर मनोकामना पूरी करने के लिए पढ़े माँ बगलामुखी चालीसा.
जानते हैं माँ बगलामुखी के मंत्रों को :
माँ बगलामुखी के कई मंत्र है जिसका अलग अलग उद्देश्यों के लिए जाप किया जाता हैं :
1) माँ बगलामुखी का भयनाशक मंत्र :
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगले सर्व भयं हर:
2) माँ बगलामुखी का शत्रु नाशक मंत्र :
ॐ बगलामुखी देव्यै ह्रीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु.
3) माँ बगलामुखी का तंत्र मंत्र नाशक मंत्र :
ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं पीताम्बरे तंत्र बाधां नाशय नाशय.
जानते हैं माँ बगलामुखी की पूजा का महत्व :
मान्यता है कि जो भी भक्त माँ बगलामुखी की पूजा पूरी विधि विधान से करता है उसे अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होने के साथ ही वो अपने जीवन में किसी भी क्षेत्र में पराजित कभी भी नही हो सकता कहा जाता है कि माँ बगलामुखी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती है और विभिन्न बाधाओं, विपत्तियों के साथ भक्त के सारे कष्ट और रोगादि से मुक्त करती हैं. माँ बगलामुखी की आराधना से पूर्व हरिद्रा गणपति की आराधना करनी चाहिए तभी साधक की साधना पूरी तरह से फलीभूत हो पाती और माँ बगलामुखी के मंत्रों के जाप से पहले बगलामुखी कवच का पाठ जरूर करना चाहिए.
जानते हैं माँ बगलामुखी के सिद्धपीठ के बारे में :
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से लगभग 30 km दूर ज्वाला जी और चिन्तपूर्णी देवी मंदिर दोनों के पास बगलामुखी मंदिर हैं जो कि बगलामुखी सिद्धपीठ के नाम से प्रसिद्ध हैं मान्यता है कि पीला रंग बगलामुखी माता का प्रिय होने के कारण इस मंदिर को पीले रंग से रंगा गया है और यहां भक्त भी पीले रंग की पोशाक पहनते हैं एवं पीले रंग की मिठाईयां देवी को अर्पित करते हैं. मान्यता है कि इस सिद्धपीठ में भक्त कानूनी मामलों से जुड़े संघर्षों में जीत के लिए, अपने दुश्मन को हराने के लिए, व्यापार में उन्नति के लिए मनोकामनाएं मांगते हैं.
उम्मीद है कि आपको गुप्त नवरात्रि के आठवें दिन को समर्पित मां बगलामुखी से जुड़ा हुआ यह लेख पसंद आया होगा तो इसे अधिक से अधिक अपने परेशान और दोस्तों के बीच शेयर करें और ऐसे ही गुप्त नवरात्रि से जुड़े लेख को पढ़ने के लिए जुड़े रहें madhuramhindi.com के साथ.
FAQ – सामान्य प्रश्न
1) गुप्त नवरात्र के आठवें दिन किस माँ की पूजा अर्चना की जाती हैं ?
माँ बगलामुखी.
2) माँ बगलामुखी ओर किस नाम से जानी जाती हैं ?
पितांबरा देवी.
3) शत्रुओं से विजय प्राप्त करने के लिए बगलामुखी माँ के किस मंत्र का जाप करना चाहिए ?
ॐ बगलामुखी देव्यै ह्रीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु ॥
4) माँ बगलामुखी को कौन सा रंग प्रिय हैं ?
पीला रंग.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.