Bhagavad Gita | भागवत गीता के इन 5 (पांच) श्लोकों में समाहित हैं पूरा गीता का सार, तो जानते हैं इन श्लोकों (verses) को.

Geeta Updesh

Bhagavad Gita | हिंदू धर्म में कई पवित्र और धार्मिक ग्रंथ है जिनमें से श्रीमद्भागवत गीता भी हिन्दू धर्म का पवित्र धार्मिक ग्रंथ है जिसे दिव्य साहित्य कहा जाता हैं. महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश का सार ही गीता में मिलता है. कुरुक्षेत्र के मैदान में जब महाभारत के युद्ध के लिए कौरव और पांडव आमने सामने आए तो अपने संबंधी को देखकर अर्जुन का मन विचलित हो गया कि अपनों से ही कैसा युद्ध? अर्जुन को इस प्रकार से विचलित देखकर तब श्री कृष्ण न उसे परम ज्ञान दिया जिसे गीता कहा गया.

जो व्यक्ति श्रीमद्भागवत गीता (Shrimad Bhagavad Gita) का पाठ करता हैं और इसमें बताई गई बातों का अनुसरण करता हैं वह जीवन भर दुःख और चिंताओं से मुक्त हो जाता हैं इसलिए निष्ठापूर्वक हर किसी को श्रीमद्भागवतगीता का पाठ ज़रूर करना चाहिए. गीता के द्वितीय अध्याय में वर्णित इन पांच श्लोकों (verses) में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश का परम ज्ञान समाहित हैं.

Bhagavad Gita | जानते हैं भागवत गीता के इन पांच श्लोकों (verses) में समाहित हैं पूरा गीता का सार :

1) वांसांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि ग्रहाति नोरोपणानि ।
   तथा शरीराणि विहाय जीर्णानय न्यानि संयाति नवानि देहि ।।

अर्थात : जिस तरह मनुष्य पुराने कपड़े को त्यागकर नए कपड़े पहनता है, ठीक उसी प्रकार आत्मा भी पुराने और व्यर्थ शरीर को त्याग कर नए शरीर को धारण करता है.

2) नैंन छिन्दन्ति शस्त्राणि नैंन दहति पावकः ।
    न चैंन क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः  ।।

अर्थात : आत्मा न तो किसी शस्त्र द्वारा खण्ड – खण्ड हो सकती हैं, न ही अग्नि इसे जला सकती है, न जल इसे भीगा सकती हैं और न वायु इसे सूखा सकती हैं.

3) जातस्य हि ध्रुवो मृत्युध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
    तस्मादपरिहार्येर्थे न त्वम शोचितुमर्हसि  ।।

अर्थात : जिसने इस संसार में जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म भी निश्चित है इसलिए अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में शोक नहीं करना चाहिए.

4) सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
    तो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ।।

अर्थात : कृष्ण अर्जुन से कहते हैं – तुम सुख – दुख, लाभ – हानि, विजय – पराजय का विचार किए बिना केवल युद्ध के लिए युद्ध करो इससे तुम्हें  कभी पाप नहीं लगेगा.

5) अथ चेत्वमिम धमर्य संग्राम न करिष्यसि ।
     तत: स्वधर्म कीर्ति च हित्वा पापमवाप्स्यसि ।।

अर्थात : यदि तुम युद्ध करने के स्वधर्म को सम्पन्न नहीं करते तो तुम्हें निश्चित रूप से अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने का पाप लगेगा और तुम योद्धा के रूप में अपना यश खो दोगे.


  FAQ – सामान्य प्रश्न

धार्मिक ग्रंथों में किस ग्रंथ को दिव्य साहित्य कहा जाता हैं ?

श्रीमद्भागवतगीता (Shrimad Bhagavad Gita)

महाभारत का युद्ध कहां हुआ था ?

कुरुक्षेत्र

किन किन के बीच हुआ था महाभारत का युद्ध ?

पांडव और कौरव के बीच

गीता का उपदेश किसने किसको दिया ?

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया. 


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