Maa bhuvaneshwari | गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन माँ आदिशक्ति के भुवनेश्वरी देवी स्वरूप की पूजा अर्चना और साधना किया जाता हैं. माँ भुवनेश्वरी को संसार की यश एवं ऐश्वर्य की देवी कहा जाता हैं और इसी रूप में माँ ने त्रिदेवों को दर्शन दिए थे. माँ भुवनेश्वरी माता को दस महाविद्याओं में से चौथा स्थान हैं और धार्मिक मान्यता है कि संपूर्ण जगत का पालन पोषण माँ भुवनेश्वरी ही करती हैं जिसके कारण से इनको जगत धात्री कहा जाने के साथ यह माँ चौदह भवनों की स्वामिनी भी है. माँ भुवनेश्वरी को भगवान शिव की सखी के रूप में जाना जाता हैं तो चलिए जानते हैं माँ भुवनेश्वरी के बारे में विस्तार से.
जानते हैं आदिशक्ति माँ के भुवनेश्वरी स्वरूप की पौराणिक कथा :
पौराणिक कथानुसार काल की शुरुआत में ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र जगत की संरचना को आरंभ कर रहे थे कि तभी उड़ता हुआ एक रथ उनके समक्ष प्रकट हुआ और आकाशवाणी हुई जिसमें उनको उस रथ में बैठने का आदेश मिला. त्रिदेव जैसे ही रथ में बैठे वह रथ मन की गति से उड़ने लगा तब उन्हें एक कौतूहल से भरे स्थान पर लेकर गया जो कि वास्तव में वह स्थान एक रत्नों का द्वीप था जिसके चारों ओर अमृत का सागर और मनमोहक घने वन थे. त्रिदेव जैसे ही रथ से उतरे वे सभी स्त्री स्वरूप में बदल गए तब उन्होंने अच्छी तरह से उस द्वीप का मुआयना किया तो उन्हें वहां एक नगर मिला जिसके चारों ओर सुरक्षा की नौ परतें थी तो वहीं उस नगर की सुरक्षा में उग्र स्वभाव के भैरव, क्षेत्रपाल, मातृका और दिगपाल व्यस्त थे.
त्रिदेव जैसे ही शहर के अंदर गए तो शहर का सौंदर्य और विकास को देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गए और जब शहर के अंदर स्थित मुख्य राजमहल में पहुंचे जिसका नाम चिंतामणी गृह था एवं इसकी सुरक्षा योगिनियां कर रही और यह नगर श्रीपुर माँ देवी भुवनेश्वरी की राजधानी थी जो कि मणिद्वीप की रानी भी थी. त्रिदेव जैसे ही महल के अंदर प्रवेश हुए तब उन्हें देवी माँ के भुवनेश्वरी स्वरूप के भव्य दर्शन हुए, लाल रंग की निराली छटा लिए माँ की तीन आंखे एवं चार हाथ थे और उनके तन पर लाल चंदन का लेप लगाएं हुए लाल रंग के आभूषण धारण किए हुए लाल कमल की माला पहना हुआ था. उनके बाएं हाथ में अंकुश और फरसा पकड़ा था तो वहीं दाएं हाथ से अभय और वरदा मुद्रा दिखा रही थी. उनके मस्तक पर मुकुट, अर्ध चंद्र रूपी मणि द्वारा सुसज्जित माँ श्वेत वस्त्र धारण करके त्र्यंबक भैरव के बाएं गोद में बैठी थी. देवी भुवनेश्वरी और त्र्यंबक भैरव पंचप्रेत आसान पर विराजमान थे. पंचप्रेतासन वह सिहांसन हैं जिसमें परमशिवा गद्दी के रूप में और पांच पैरों वाली जगह सदाशिव, ईश्वर, रुद्र, विष्णु और ब्रह्मा स्थापित है. इन सब की सेवा में अनेक योगिनियां थी जिनमें कुछ पंखा डोल रही थी, कुछ कपूर डालकर पान के पत्ते समर्पित कर रही थी, कुछ नए शीशे पकड़े हुए थी तो वही कुछ घी, शहद और नारियल पानी समर्पित कर रही थीं, कुछ माँ के केशों का श्रृंगार करने के लिए तैयार दिख रही थी और कुछ माँ के मनोरंजन के लिए नृत्य और गायन में लिप्त थी.
त्रिदेव ने वहां पर असंख्य ब्रह्मांड देखें, हर ब्रह्मांड में उनकी समान ही त्रिदेव थे और वह सब उन्होंने माँ भुवनेश्वरी के पैरों के नाखून में ही देख लिया था कुछ ब्रह्मांड की रचना ब्रह्माजी कर रहे थे, कुछ विष्णु जी द्वारा पाले जा रहे थे तो वहीं कुछ रुद्र देव द्वारा संहारित किए जा रहे थे. त्र्यंबक जी की इच्छा शक्ति द्वारा उत्पन्न माँ भुवनेश्वरी ने त्र्यंबक के तीन स्वरू बनाए – ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र और ऐसे ही त्रिदेव त्र्यंबक के ही तीन स्वरूप हैं. तत्पश्चात माँ भुवनेश्वरी देवी ने अपनी शक्तियां त्रिदेव को प्रदान की ब्रह्मा जी के लिए देवी सरस्वती, विष्णु जी के लिए देवी लक्ष्मी और रुद्र जी के लिए देवी काली को अवतरित किया और उन्हें उनकी जगह पर स्थापित भी किया फिर ब्रह्माजी और सरस्वती ने मिलकर एक ब्रह्मांड रूपी अंडा बनाया, रुद्र और काली ने इसे तोड़ा जिससे पंचतत्व उत्पन्न हुआ इसके पश्चात पंचतत्व का उपयोग करके ब्रह्मा और सरस्वती ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना किया एवं विष्णु और लक्ष्मी ने इस ब्रह्मांड के पालन पोषण का हर कार्य किया और अंत में रुद्र और काली ने ब्रह्मांड की समाप्ति किया ताकि ब्रह्माजी और सरस्वती पुनर्रचना शुरू कर सकें.
जानते हैं माँ भुवनेश्वरी की पूजा विधि :
1) गुप्त नवरात्रि में मां भुवनेश्वरी की पूजा अर्चना करने के लिए सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ साफ वस्त्र को धारण करें.
2) अब अपने पूजा घर में पूर्व दिशा की ओर मुख करके सफेद ऊनी आसन पर बैठ जाएं और अपने सामने एक लकड़ी की चौकी रखकर उस पर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लें.
3) इसके पश्चात उस चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर एक प्लेट को रखकर रोली से उस प्लेट में त्रिकोण को बनाएं.
4) अब बने त्रिकोण में अखंड चावल को भरकर उस चावलों पर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त “भुवनेश्वरी यंत्र” को स्थापित करें.
5) अब भुवनेश्वरी यंत्र के सामने चावल की दस ढेरियां बनाकर उसके ऊपर छोटे छोटे दस नारियल को रखकर सभी पर रोली का तिलक लगाएं.
6) इसके बाद भुवनेश्वरी यंत्र के सामने शुद्ध घी का दीपक को जलाएं और यंत्र का पूजन करके अपने दोनों हाथों को जोड़कर माँ भुवनेश्वरी की सच्चे मन से धूप, दीप, चावल और पुष्पों से पूजा करके भुवनेश्वरी महाविद्या के इस “ॐ श्री भुवनेश्वर आए नमः” मंत्र का जाप करें.
7) माँ भुवनेश्वरी की पूजा किसी शिव मंदिर में भी किया जा सकता है. जिसके लिए शिव मंदिर में जाकर षोडशोपचार के द्वारा माँ भगवती भुवनेश्वरी का पूजन गाय के घी और कपूर को जलाकर धूप करें.
8) अब माँ भुवनेश्वरी को सफेद पुष्प, चंदन, अक्षत, इत्र, दूध और शहद को अर्पित करने के पश्चात मावे का भोग लगाएं.
9) इसके पश्चात माँ के मंत्र का जाप करें और माँ भुवनेश्वरी की पूजा संपन्न करने के बाद उन पर अर्पित किए भोग को किसी स्त्री को भेंट कर दें.
जानते हैं माँ भुवनेश्वरी की पूजा में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए :
1) माँ भुवनेश्वरी की पूजा और साधना करने के लिए उपासक की सभी सामग्री खास रूप से सिद्धि युक्त होनी चाहिए अगर ऐसा नहीं हुआ तो माँ भुवनेश्वरी की उपासना नहीं हो सकती.
2) माँ भुवनेश्वरी की उपासना के लिए उपासक को सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा “भुवनेश्वरी यंत्र” सफेद हकीक या रुद्राक्ष की माला के साथ दस छोटे छोटे नारियल यह तीन चीजें आवश्यक रूप से होने चाहिए.
3) माँ भुवनेश्वरी की पूजा व साधना ग्यारह दिनों तक और सदैव सुबह 04 बजे से 06 बजे के बीच या फिर रात के सवा दस बजे के बाद करना चाहिए.
4) माँ भुवनेश्वरी की पूजा करने के बाद भुवनेश्वरी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए.
5) माँ भुवनेश्वरी की साधना करते समय उपासक को पूरी निष्ठा के साथ सभी नियमों का पालन करने के साथ ही सभी जानकारियों को पूर्ण रूप से गोपनीय रखना चाहिए तभी पूजा सफल होती हैं.
6) ग्यारह दिनों के बाद पूजा संपन्न होने के बाद भुवनेश्वरी यंत्र को लाल कपड़े में बांधकर अपने घर के मंदिर या फिर तिजोरी में एक साल के लिए रख दें और पूजा में उपयोग हुई बाकी सभी सामग्री को नदी में प्रवाहित करें या फिर किसी पीपल वृक्ष के नीचे दबा दें.
7) इन नियमों का पालन करने से साधक की साधना पूर्ण होने के साथ ही उसके ऊपर माँ भुवनेश्वरी की असीम कृपा सदैव बनी रहती हैं.
जानते हैं माँ भुवनेश्वरी की पूजा के महत्व को :
माँ भुवनेश्वरी को तीनों लोकों की ईश्वरी माना जाता है क्योंकि यह साक्षात संपूर्ण जगत को धारण करती हैं और इसका पालन पोषण करती हैं यही कारण से इनको जगत माता और जगत धात्री कहा जाता हैं. शास्त्रों के अनुसार यह भगवान शिव के वाम भाग में विराजमान रहती हैं मान्यता है कि इनकी साधना और पूजा करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति के साथ साथ जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं. माँ भुवनेश्वरी देवी की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ उसको ज्ञान, धन सम्मान और प्रतिष्ठा की भी प्राप्ति होती हैं.
उम्मीद है कि आपको गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन को समर्पित माँ भुवनेश्वरी से जुड़ा यह लेख पसन्द आया होगा तो इसे अधिक से अधिक अपने परिजनों और दोस्तों के बीच शेयर करें और ऐसे ही गुप्त नवरात्रि से जुड़े लेख को पढ़ने के लिए जुड़े रहें madhuramhindi.com के साथ.
FAQ – सामान्य प्रश्न
1) गुप्त नवरात्र के चौथे दिन किसकी साधना की जाती हैं ?
माँ भुवनेश्वरी.
2) माँ भुवनेश्वरी को और किस नाम से जाना जाता हैं ?
जगत धात्री.
3) माँ भुवनेश्वरी भगवान शिव के किस भाग में विराजमान रहती हैं?
वाम भाग.
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