Maa Chinnamasta | गुप्त नवरात्रि के पांचवें दिन माँ छिन्नमस्ता की पूजा अर्चना की जाती हैं. शिवपुराण और मार्कण्डेय पुराण मे उल्लेख है कि माँ छिन्नमस्ता देवी राक्षसों का संहार करके देवताओं को उनसे मुक्त कराया था. माँ छिन्नमस्ता को माता चिंतपूर्णी का रूप माना जाता हैं क्योंकि मान्यता के अनुसार माँ छिन्नमस्ता मनुष्यों की सभी चिंताओं को दूर करके उनकी मनोकामनाएं पूरी करने के साथ ही इनकी पूजा करने से साधक को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता है. छिन्नमस्ता माँ सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही इनका स्वरूप प्रचंड डरावनी, भयंकर और प्रलयकारी हैं और इसी तरह का स्वरूप चंडिका देवी माँ का भी हैं केवल अंतर इतना है कि चंडिका देवी की पूजा गृहस्थ वाले कर सकते हैं लेकिन छिन्नमस्ता माँ की साधना गृहस्थों को करनी की मनाही होती हैं तो चलिए जानते हैं छिन्नमस्ता माँ के बारे में विस्तार से.
जानते हैं माँ छिन्नमस्ता की उत्पत्ति को :
पौराणिक कथानुसार एक बार माँ भगवती मंदाकिनी नदी में अपनी सखियों के साथ स्नान और ध्यान कर रही थी कि अनायास माँ भगवती की सखियों को बहुत भूख लगने लगी और उन्होंने माँ से कुछ खाने को मांगने लगी तब माँ ने अपनी सखियों को कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहा किंतु भूख से व्याकुल साखियाँ माँ से बार – बार कुछ खाने के लिए मांगती रही और जब माँ से अपनी साखियों की भूख नहीं देखी गई तब माँ भगवती ने तुरंत अपनी तलवार से अपना सिर काट लिया तुरंत ही माँ भगवती का कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा इसके साथ उनके सिर से खून की तीन धाराएं निकली जिसमें से दो धाराओं से उनकी सखियों ने भोजन करना आरंभ किया तो वहीं तीसरी धारा से माँ भगवती स्वंय रक्तपान करने लगी और माना जाता है कि तब से माँ भगवती छिन्नमस्ता माँ के नाम से संसार में जानी जाती हैं मान्यता है कि देवी छिन्नमस्ता दुष्टों के लिए संहार करने और भक्तों के लिए दया भाव रखने के कारण इनकी आराधना सदैव सच्चे मन और निर्मल मन से करनी चाहिए.
जानते हैं माँ छिन्नमस्ता के स्वरूप को :
माँ छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं में से पाँचवी विद्या मानी जाती हैं जिनको प्रचण्ड चण्डिका भी कहा जाता हैं माना जाता है कि हिंदू धर्म के सभी देवी देवताओं में सबसे अलग देवी छिन्नमस्ता का स्वरूप है. माँ छिन्नमस्ता ने अपने बाएं हाथ में स्वंय का ही कटा हुआ सिर लिया हुआ है तो वहीं उनकी कटी हुई गर्दन से रक्त की तीन धाराएं निकल रही हैं जिसमें से एक धारा स्वंय उनके मुख में जा रही हैं तो बाकी दो धाराएं उनकी दो सखियों के मुख में जा रही हैं और उन्होंने अपने दाहिने हाथ में खड्ग को धारण किए हुए हैं.
जानते हैं माँ छिन्नमस्ता की पूजा विधि को :
1) ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि के बाद साफ व स्वच्छ वस्त्र को धारण करें और व्रत का संकल्प लें.
2) अब पूजा घर में एक चौकी पर लाल रंग के कपड़ा बिछाकर उस पर माँ छिन्नमस्ता की मूर्ति या फिर तस्वीर को स्थापित करें.
3) इसके पश्चात माँ को गंगाजल, पंचामृत और स्वच्छ जल से स्नान कराने के बाद इनको कुमकुम ओर तिलक लगाकर गुड़हल के फूलों की माला को चढ़ाए.
4) अब माँ के समक्ष घी का दीपक जलाएं और लौंग, इलाइची, बताशा, नारियल और फलों का भोग लगाएं.
5) माँ छिन्नमस्ता के वैदिक मंत्रों का जाप करके पूजा के बाद आरती करें.
6) माँ छिन्नमस्ता की पूजा करने के बाद इनकी पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा अवश्य मांगे.
जानते हैं माँ छिन्नमस्ता देवी के मंत्र :
1) श्रीं ह्रीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचनीये ह्रीं फट स्वाहा ।।
ॐ श्री ह्री ह्री ऐं वज्र वैरोकण्ये ह्री ह्री फां स्वाहा ।।
2) श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्र वैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा फट स्वाहा ।।
ॐ श्री ह्री ह्री वज्र वैरोकण्ये ह्री ह्री फां स्वाहा ।।
जानते हैं माँ छिन्नमस्ता की पूजा के महत्व को :
माँ छिन्नमस्ता देवी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ सभी दुखों का भी अंत होता है माना जाता है कि माँ छिन्नमस्ता की कृपा से सभी प्रकार के भय और रोगों से छुटकारा मिलता हैं लेकिन मान्यता है कि देवी छिन्नमस्ता माता को तंत्र की देवी कहलाती हैं इसलिए इनकी पूजा तांत्रिकों या योगियों द्वारा किया जाता हैं. माँ छिन्नमस्ता की पूजा साधना में विधि विधान का विशेष ध्यान रखा जाता हैं और इनकी पूजा सामान्य मनुष्यों को करनी की मनाही होती हैं क्योंकि इनका स्वरूप अत्यंत गोपनीय है जिसको केवल सिद्ध साधक ही जान पाते हैं.
जानते हैं माँ छिन्नमस्ता माता के सिद्धपीठ के बारे में :
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 km दूर रामगढ़ जिले के रजरप्पा में दामोदर और भैरवी नदी के तट पर माँ छिन्नमस्तिका माता का प्रसिद्ध सिद्धपीठ स्थिति है जहां पर सालों से देश भर के कोने कोने से श्रद्धालु पंहुचकर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए माँ के दरबार में आते हैं यही कारण है कि यह सिद्धपीठ मनोकामना देवी के नाम से भी जानी जाती हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) गुप्त नवरात्र के पांचवें दिन किस माता की पूजा अर्चना किया जाता हैं ?
माँ छिन्नमस्ता.
2) माँ छिन्नमस्ता किन गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं ?
सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों का.
3) माँ छिन्नमस्ता का सिद्धपीठ देश के किस राज्य में स्थित हैं ?
झारखंड राज्य.
4) माँ छिन्नमस्ता को ओर किस नाम से जाना जाता हैं ?
प्रचंड चण्डिका माता.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.