Mohini Ekadashi Vrat Katha | हिंदू धर्म में मोहिनी एकादशी का विशेष महत्व है और यह एकादशी हर साल वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ती है. यह दिन सृष्टि के पालनहार देव श्री हरि विष्णु भगवान को समर्पित एक विशेष दिन है क्योंकि धार्मिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश निकला तो देवताओं और असुरों में अमृत के बंटवारे को लेकर बहस छिड़ गई असुर देवताओं को अमृत देना नहीं चाहते थे जिस कारण से भगवान से विष्णु ने एक बहुत ही रूपवती स्त्री मोहिनी का रूप धारण करके और असुरों को रिझा कर उनसे अमृत कलश लेकर देवताओं में अमृत बांट दिया था इसके बाद से सारे देवता अमर हो गए और यह घटना वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को हुई थी इसलिए इस तिथि को मोहिनी एकादशी कहा जाता है और इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की पूजा आराधना की जाती है. पूजा के दौरान एकादशी व्रत की कथा सुनने और पढ़ने से साधक को विशेष फलों की प्राप्ति होती है समस्त पाप और दुखों का भी नाश होता है तो वही धन सौभाग्य का भी आशीर्वाद मिलता है मोहिनी एकादशी व्रत के बारे में कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी मनोकामना पूर्ण होने के साथ ही अगर कोई व्रत नहीं रख सकते हैं तो भी इस कथा को पढ़ने और सुनने से ही सहस्त्र गोदान के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
Mohini Ekadashi Vrat Katha | मोहिनी एकादशी व्रत कथा : –
एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण ने पूछा कि हे केशव ! वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी (Ekadashi 2024) को किस नाम से जाना जाता है और उसकी कथा क्या है पूजा विधि समेत मुझसे विस्तार से समझाइए. धर्मराज युधिष्ठिर के इस सवाल पर भगवान श्री वासुदेव श्री कृष्णा ने कहा कि मैं तुमको यह कथा सुनाता हूं जो वशिष्ठ जी ने भगवान राम को सुनाई थी. कृष्ण जी ने आगे बताते हुए कहा कि एक बार श्री रामचंद्र ने ऋषि वशिष्ठ से पूछा कि है गुरुवर! ऐसा कोई व्रत बतलाइए जिससे समस्त दुखों और पापों का नाश होता हो, तब ऋषि महर्षि वशिष्ठ ने कहा हे राम ! वैसे तो आपका नाम से ही सभी दुख और पाप का नाश हो जाता है पर आपके सवाल का जवाब लोगों को भी रास्ता दिखाएगा, महर्षि वशिष्ठ ने आगे बताते हुए कहा की वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जिसको मोहिनी एकादशी कहा जाता है इस एकादशी का व्रत सभी दुखों और पाप का नाश करने वाला है इसकी कथा इस तरह है.
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सरस्वती नदी के तट पर बसी एक भद्रावती नामक नगरी में घृतिमान नाम का चंद्रवंशी राजा राज करता था उसके दरबार में धन – धान्य से संपन्न और पुण्यवान एक वैश्य रहता था जिसका नाम धनपाल था जो की परम विष्णु भक्त था और उसने नगर में कई भोजनालय, सरोवर, धर्मशाला प्याऊ, कुआं आदि बनवाए थे इतना ही नहीं उसने सड़कों पर आम जामुन आदि के वृक्ष भी लगवाए थे. उस वैश्य के पांच पुत्र – सद्बुद्धि, सुमना, सुकृति, मेधावी और धृष्टबुद्धि थे. इन पांच पुत्रों में से एक पुत्र धृष्टबुद्धि बहुत ही महापापी था और वह पितर आदि को भी नहीं मानता था वह सदैव वेश्या, दुराचारी मनुष्य की संगति में रहता था और जुआ खेलता था इतना ही नहीं वह पर – स्त्री के साथ भोग विलास करता और मांस मदिरा का सेवन भी करता था इसी तरह के कुकर्मों में विलीन का वह दुष्ट पुत्र अपने पिता के धन को नष्ट करता रहता था. पुत्र के ऐसे बर्ताव से त्रस्त होकर पिता धनवान ने उसे घर से निकाल दिया. घर से निकल जाने के बाद वह अपने गहने कपड़े आदि बेचकर अपना निर्वाह करने लगा लेकिन जब सब कुछ खत्म हो गया तो वैश्या और दुराचारी साथियों ने भी उसका साथ छोड़ दिया. सब कुछ खत्म होने के बाद वह खाने पीने को भी तरसते लगा कोई सहारा ना देखकर वह पापी चोरी करना भी शुरू कर दिया.
एक बार वह चोरी करते हुए पकड़ा गया तो उसे वैश्य का पुत्र जानकर और आखरी चेतावनी देकर उसे छोड़ दिया गया मगर दूसरी बार पकड़े जाने पर राजा की आज्ञा से उसे कारागार में डाल दिया गया कारागार में उसे कष्ट सहना पड़ा अंत में राजा से उसे नगर से निकल जाने का आदेश दिया और फिर वह नगर से निकाल कर वन में चला गया. वन में वह वन पशु पक्षियों को मार के खाना शुरू कर दिया कुछ समय गुजर जाने के बाद वह बहेलिया बन गया और धनुष वाण से पशु पक्षियों को मार कर उसका मांस खाकर अपना जीवन व्यतीत करने लगा.
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एक दिन वह भूख – प्यास और खाने की तलाश में भटकता हुआ कौंडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुंचा उस समय वैशाख का महीना था और ऋषि गंगा स्नान करके आ रहे थे तो उनके भीगे वस्त्रों के कुछ छीटें उस पापी धृष्टबुद्धि पर पड़ी तो उसे कुछ सद्बुद्धि मिली तब उसने कौंडिन्य ऋषि से हाथ जोड़कर कहा कि हे मुनिवर ! मैंने अपने जीवन में कई पाप किए हैं आप इन पापों से मुक्ति पाने का बिना खर्च वाले कोई साधारण सा उपाय बताइए उसके दीन वचन को सुनकर ऋषि प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी का व्रत करो इसके प्रताप से तुम्हारे द्वारा किए गए सारे पाप नष्ट हो जाएंगे.
ऋषि कौंडिन्य के वचन को सुनकर वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और विधि विधान अनुसार व्रत का पालन किया इस व्रत के प्रताप से उसके सारे पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णु लोक चला गया. अतः संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं इसके माहात्म्य को पढ़ने या फिर सुनने से एक हजार गोदान के बराबर फल प्राप्त होता है इसलिए हर मनुष्य को यह व्रत जरूर करना चाहिए साथ ही इस व्रत की कथा को पढ़ना या सुना भी अवश्य चाहिए.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
पंचांग के अनुसार मोहिनी एकादशी व्रत कब रखी जाती है ?
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को.
मोहिनी एकादशी व्रत कथा को किसने किसको सुनाया है?
ऋषि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्र को.
मोहिनी एकादशी के दिन किस भगवान ने मोहिनी अप्सरा का रूप धारण किया था ?
भगवान विष्णु.
मोहिनी एकादशी का व्रत रखने से किस फल की प्राप्ति होती है ?
एक हजार गोदान के बराबर पुण्य की प्राप्ति.
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