Chhath Puja | छठ का व्रत संतान की प्राप्ति और लम्बी आयु के लिए किया जाता हैं और इस पर्व की शुरुआत दीवाली पर्व के समापन के साथ हो जाती यह पर्व कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से चार दिनों का होता है. नहाय खाय के दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है तो चौथे दिन औऱ अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्ध्य देकर छठ महापर्व का समापन हो जाता हैं इस छठ महापर्व में छठी मैया की उपासना और पूजन का विधान है.
Chhath Puja | आइए जानते हैं कौन है छठी मैया जिसकी पूजा विशेष रूप से छठ महापर्व में किया जाता हैं :
धार्मिक मान्यता है कि छठी मैया (Chhathi Maiya) ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं जो कि भगवान सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना के समय अपने शरीर को दो भागों में बांटा जिसके दाईं भाग से पुरूष और बाएं भाग से प्रकृति का जन्म हुआ और प्रकृति ने अपने आप को छह भागों में बांटा ओर प्रकृति देवी के छठवें भाग को षष्ठी देवी कहा गया यही छठी मैया कहलाई. छठी मैया को शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता हैं किसका स्वाभाविक गुण धर्म बच्चों की रक्षा करना है जो देवसेना के नाम से जानी जाती हैं.
माना जाता है कि छठी मैया की आराधना और पूजा करने से सन्तानें की लंबी उम्र होने के साथ आरोग्य का आशीर्वाद भी मिलता है और जिन सुहागिन महिलाओं को संतान नहीं होते हैं छठी मैया की पूजन से संतान सुख का वरदान प्राप्त होता हैं मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के समय जब द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वधामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की हत्या किया तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा को छठी मैया का पूजन और व्रत करने को कहा था.
पुराणों के अनुसार इस देवी को कात्यायनी के नाम से भी जानी जाती हैं जिसको पूजा नवरात्र के छठे दिन की जाती हैं स्कंद पुराण में इस छठी मैया के व्रत का उल्लेख मिलता है कि जो भी भक्त इस व्रत को सच्चे मन और श्रद्धाभाव से करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं यह व्रत सभी सुखों को देने वाला है.
Chhath Puja | आइए जानतें हैं छठी मैया से जुड़ी पौराणिक कथा को :
पौराणिक कथा (katha) के अनुसार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी को कोई संतान नही था जिसके कारण वह दोनों हमेशा दुःखी रहा करते थे एक दिन वह अपनी इस समस्या को लेकर महर्षि कश्यप के पास गए तब महर्षि कश्यप ने राजा को पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने को बोले इसके बाद राजा ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. महर्षि कश्यप ने यज्ञ समाप्त होने पर राजा की पत्नी मालिनी को खीर दिया जिसको खाने के बाद रानी मालिनी गर्भवती हुई और नौ महीने के बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुआ लेकिन बदकिस्मती से उनका पुत्र मृत पैदा हुआ यह सब देखकर राजा रानी बहुत दुःखी हुए.
राजा प्रियव्रत अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए जहां पर उन्होंने पुत्र वियोग से प्राण की आहुति देने लगे कहा जाता है कि उसी समय ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई और कहा कि – मैं षष्ठी देवी हूँ और मैं ही लोगों को पुत्र सुख दिया करती हूं जो भी व्यक्ति सच्चे मन से मेरी पूजा करता है उसकी मैं सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हूं अगर राजन! तुम मेरी विधि विधान से पूजा करोगे तो मैं तुमको पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान दूंगी. षष्ठी माता के ऐसा कहने पर राजा प्रियव्रत ने वैसा ही किया उसके बाद उनको तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई तब से ही कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन षष्ठी माता की पूजा की शुरुआत हुई जो आज भी चल रहा है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
छठी माता किनकी मानस पुत्री हैं ?
ब्रह्माजी
ब्रह्माजी ने अपने शरीर को कितने भागों में बांटा था ?
दो भाग
छठी मैया को किसकी अधिष्ठात्री देवी कहा जाता हैं ?
शिशुओं की.
किसके कहने पर राजा प्रियव्रत ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था ?
महर्षि कश्यप.
छठी मैया किस ओर नाम से जानी जाती हैं ?
देवसेना.
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