Ganeshji | आखिर भगवान गणेशजी की पूजा में क्यों चढ़ाया जाता है दूर्वा, जानेंगे इसके पीछे की कथा, महत्व और नियम को.

Ganeshji ko durva

Ganeshji | हिन्दू धर्म में प्रत्येक देवी – देवता को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा विधि व पूजा सामग्रियां अलग अलग  प्रकार की होती हैं, और कुछ ऐसी चीजें भी होती हैं जो उन देवी देवताओं को बहुत पसंद होती हैं जिसके बिना पूजा पाठ अधूरा माना जाता हैं. इन्हीं देवी देवताओं में से एक है प्रथम पूज्य श्री गणेशजी जिनकी पूजा अर्चना किए बिना कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं की जाती इसलिए हर शुभ कार्य में सबसे पहले इनको याद किए जाते हैं.

शास्त्रों में बुधवार के दिन भगवान गणेश को समर्पित हैं माना गया है कि बुधवार के दिन विध्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा करने से उनकी कृपा मिलने के साथ ही विशेष लाभ की भी प्राप्ति होती हैं. भगवान गणेश की पूजा में लाल गुड़हल के फूल,मोदक का भोग और दूर्वा का महत्व सबसे अधिक माना जाता है. अगर भक्त बुधवार के दिन गणेश जी को केवल ये चीजें भी चढ़ा दें तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं. धार्मिक मान्यता है कि दूर्वा चढ़ाने से हर प्रकार के सुख और संपदा में वृद्धि होती हैं और बिना दूर्वा के भगवान गणेश की पूजा अधूरी मानी जाती हैं.

Ganeshji | आखिर क्यों भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाया जाता है?

धार्मिक पुराणों के अनुसार गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने को लेकर एक से अधिक कथाएं प्रचलित हैं. आज के इस अंक में हम अनलासुर नामक राक्षस और महाराज जनक से जुड़ी हुई दो कथाओं के द्वारा जानेंगे क्यों गणेश जी को दूर्वा चढ़ाया जाता है.

1) अनलासुर नामक राक्षस से जुड़ी कथा

एक पौराणिक कथानुसार अति प्राचीन काल में अनलासुर नामक एक राक्षस था, जिसके अत्याचार से स्वर्ग और पृथ्वी लोक पर हाहाकार मची थी क्योंकि अनलासुर एक ऐसा राक्षस था जो ऋषि- मुनियों और साधारण मनुष्यों को ज़िंदा निगल जाता था. इस अनलासुर राक्षस के अत्याचारों से त्रस्त होकर इंद्र और सभी देवी – देवता और ऋषि – मुनि भगवान शंकर से प्रार्थना करने को पहुँचे और सभी ने शंकर भगवान से अनुरोध किया कि वे अनलासुर के आतंक को खत्म करके उनकी रक्षा करें. सभी देवी देवताओं और ऋषि मुनियों की प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर ने कहा ” राक्षस अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकतें हैं इसलिए आप सभी पार्वतीनन्दन के पास जाएं “.

भगवान शंकर की बात को सुनकर सारे देवतागण और ऋषि मुनि इकट्ठा होकर पार्वतीनन्दन श्रीगणेश के पास गए और उनसे अनलासुर को रोकने व उससे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना किया उनकी सारी बातें सुनकर गणेश जी को बहुत क्रोध आया और अनलासुर राक्षस के साथ युद्ध करते करते  वे उस राक्षस अनलासुर को ही निगल गए. जब गणेशजी ने राक्षस को निगल लिया जिसके कारण उनके पेट में जलन होने लगी इस परेशानी को दूर करने के लिए कई तरह के उपाय किया गया किन्तु गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हुई तब ऋषि कश्यप ने दूर्वा की इक्कीस (21) गांठें बनाकर गणेशजी को खाने के लिए दिया. यह दूर्वा जब श्री गणेशजी ने ग्रहण किया तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुआ. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तब से ही शुरू हुई.

2) महाराज जनक से जुड़ी कथा

भगवान श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने को लेकर एक और कथानुसार एक बार देवऋषि नारद ने भगवान गणेशजी को बताया कि धरती पर रहने वाले महाराज जनक को अंहकार को गया है कि वे अपने आप को तीनों लोकों का स्वामी मानने लगे हैं. नारद जी की बात को सुनकर महाराज जनक का अहंकार को तोड़ने के लिए गणेशजी ब्राह्मण के वेश में मिथिला नगरी गए और राजा जनक के समक्ष जाकर कहा कि “” मैंने इस नगरी की प्रसिद्ध के बारे में बहुत सुनकर इसे दिखने के लिए आया हूँ लेकिन बहुत दिनों से भूखा हूँ “” यह सुनकर महाराज जनक ने ब्राह्मण को भोजन कराने का आदेश दिया किन्तु जब भगवान गणेश भोजन करने बैठे तो भोजन करते करते सारे महल और नगर का भोजन खा गए फिर भी उनकी भूख शांत नही हो पाई.

महाराज जनक को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने ब्राह्मण गणेश से अपने अहंकार के लिए क्षमा मांगी लेकिन गणेश जी वहां से उठे और एक गरीब ब्राह्मण जिनका नाम त्रिशिरस था के घर जाकर भोजन करने की बात कही औऱ जब गणेश जी उस गरीब ब्राह्मण के घर गए तो गरीब ब्राह्मण की पत्नी विरोचना ने उन्हें भोजन कराने से पहले दूर्वा घास खाने को दिया जिसको खाते ही भगवान गणेशजी की भूख शांत हो गई और उनको पूरी तरह से तृप्ति भी मिली इसके पश्चात भगवान गणेश ने उस गरीब ब्राह्मण पति पत्नी को मुक्ति का आशीर्वाद दिया. कहा जाता हैं कि तब से ही भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई.

Ganeshji | भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने के नियम :

1) भगवान गणेश को चढ़ाने के लिए दूर्वा किसी मंदिर, बगीचे या फिर साफ स्थान पर उगी हुई होनी चाहिए.

2) भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने से पहले उसे साफ पानी से धोयें.

3) ध्यान रखें कि भगवान गणेश को उस स्थान का दूर्वा नहीं चढ़ाये जहां गंदा पानी आता हो

4) भगवान गणेश की पूजा में हमेशा दूर्वा का जोड़ा बनाकर चढ़ाएं.

5) दूर्वा घास के ग्यारह (11) जोड़ों को भगवान गणेश को चढ़ाना चाहिए

6) दूर्वा चढ़ाते समय गणेशजी के इन मंत्रों (Ganesh Mantra) का जाप करना चाहिए :

  • ॐ गं गणपतये नमः
  • ॐ  गणाधिपाय नमः
  • ॐ उमापुत्राय नमः
  • ॐ विध्ननाशनाय नमः
  • ॐ विनायकाय नमः
  • ॐ एकदन्ताय  नमः
  • ॐ मूषकवाहनाय नमः

Ganeshji | अब जानते है दूर्वा को चढ़ाने के महत्व को :

दूर्वा को दूब, अमृता, अनंता और महौषधि कई नामों से जाना जाता है. सनातन धर्म मे कोई भी मांगलिक कार्य बिना दूर्वा और हल्दी के पूरा नहीं माना जाता हैं. मान्यता है कि भक्त गणपति की पूजा दूर्वा की कोपलों से करे तो उसे कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती हैं. धार्मिक मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति को बीमारी, दरिद्रता और संकट ने घेर रखा है तो सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा करके दूर्वा अर्पित किया जाएं तो इन सारी परेशानियों से छुटकारा मिलता है.


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FAQ – सामान्य प्रश्न

किस भगवान को दूर्वा चढ़ाया जाता है?

भगवान गणेश जी.

भगवान गणेश ने किस राक्षस को निगल लिया था ?

अनलासुर राक्षस.

भगवान गणेश को पेट की जलन को दूर करने के दूर्वा किसने दिया था?

ऋषि कश्यप.

भगवान गणेश को दूर्वा घास के कितने जोड़ों को चढ़ाना चाहिए ?

ग्यारह(11) जोड़ों 


अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.