Chhath Puja | छठ पूजा पर क्यों भरी जाती हैं कोसी? जानेगें क्यों होती हैं मिट्टी के हाथी की जरूरत.

Kosi on Chhath Puja

Chhath Puja | आस्था का महापर्व छठ पूजा भगवान सूर्य देव और छठी माता को समर्पित है और यह  कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती हैं. छठ पूजा मुख्य रूप से चार दिनों की पूजा होती है जो कि नहाय खाय के साथ शुरुआत होता है. छठ एक ऐसा पर्व है जिसमें शुद्धता और पवित्रता के साथ नियमों का भी पालन किया जाता हैं और इन सब का पालन व्रती को चार दिन तक करना पड़ता है तब जाकर पर्व सफल होता हैं. वैसे तो छठ पूजा में निभाई जाने वाली हर एक रिवाज बहुत महत्व और पवित्र होता हैं किंतु कोसी भरने की परंपरा को बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता हैं.

Chhath Puja | आइए जानते हैं छठ पूजा पर कोसी क्यों भरी जाती हैं :

छठ पूजा में कोसी (Kosi) भरने की एक महत्वपूर्ण परंपरा है मान्यता है कि कोई मनोकामनाएं पूरी नहीं हो रही हैं या असाध्य रोग हो तो कोसी भरने का संकल्प लिया जाता है जिससे मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ ही कष्टों से मुक्ति मिलती हैं. मनोकामना पूरी होने पर कोसी भरकर छठी मैया के प्रति आभार व्यक्त किया जाता हैं.

Chhath Puja | आइए जानतें हैं कैसे होती हैं कोसी भराई और मिट्टी के बने हाथी की किस तरह से ज़रूरत होती है :

छठ पर्व की सूर्यषष्ठी की शाम में यानि कि छठी मैया को डूबते सूर्य का अर्ध्य देने के पश्चात घर के आंगन में या फिर छत पर कोसी का पूजा किया जाता हैं जिसके लिए पांच गन्ने का समूह का छत्र बनाया जाता हैं फिर एक लाल रंग के कपड़े में ठेकुआ, फल अर्कपात, केराव रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है और उसके अंदर मिट्टी के बने हाथी को रखकर उस पर घड़ा को रखा जाता है.

मिट्टी के हाथी को सिंदूर लगाकर उसके ऊपर घड़े में मौसमी फल, ठेकुआ, अदरक, सुथनी जैसी चीजें रखी जाती हैं और कोसी पर घी का दीया जलाया जाता था अब इसके बाद कोसी के चारों ओर अर्ध्य के सामान से भरी सूप, डगरा, डलिया, मिट्टी के ढक्कन और तांबे के पात्र को रखकर दीया व अगरबत्ती को जलाया जाता है अग्नि में धूप डालकर हवन किया करते है इसके बाद व्रती और अन्य महिलाएं छठी मैया के गीत को गाती हैं. कोसी भराई के पूजा में अधिकांशतः महिलाओं की भागीदारी रहती हैं तो पुरूष भी कोसी की सेवा करते हैं जिन्हें कोसी सेवना कहा जाता हैं.जिस घर में कोसी पूजन होता है वहां रात भर उत्साह और खुशनुमा का माहौल रहता है.

सुबह के अर्ध्य में घाट पर कोसी भराई की प्रक्रिया पुनः दोहरायी जाती हैं इस समय भी महिलाएं गीत गाकर मनोकामना पूर्ण होने की खुशी व आभार को जाहिर करतीऔर अर्ध्य देने के बाद चढ़ाये हुए प्रसाद को  घाट में प्रवाहित करके गन्ने को लेकर वापस घर आ जाते हैं माना जाता है कि कोसी भराई में रखे गए पांच गन्ने पंचतत्व होते हैं और यह पांच गन्ने भूमि, वायु, अग्नि, जल और आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं.

मिट्टी के बने हाथी को कोसी भराई में खासकर इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि मिट्टी को सनातन धर्म में शुद्ध माना गया है और मिट्टी से बने हाथी पर कोसी को रखने से उसकी शोभा  बढ़ती है यही कारण है कि कोसी भराई में मिट्टी के हाथी का उपयोग खासकर किया जाता हैं. बहुत नियम और कायदे के साथ पहले अर्ध्य (डूबते सूर्य को अर्ध्य) से दूसरे अर्ध्य (उगते हुए सूर्य को अर्ध्य )तक कोसी की पूजा की जाती हैं और भगवान सूर्य और छठी मैया का आभार व्यक्त किया जाता हैं.


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FAQ – सामान्य प्रश्न

कोसी भराई किस पर्व की परंपरा है ?

छठ पर्व.

छठ पूजा में कोसी कब भरा जाता हैं ?

शाम के अर्ध्य के बाद.

कोसी भराई में किसका खासकर इस्तेमाल किया जाता हैं ?

मिट्टी के हाथी

कोसी भराई में कितने गन्ने का इस्तेमाल किया जाता हैं ?

पांच गन्ने.

कोसी भराई में इस्तेमाल किए गन्ने किसका प्रतिनिधित्व करते हैं ?

पंचतत्व. 


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