Omkareshwar Jyotirlinga | बारह (12) ज्योतिर्लिंगों में चौथा ज्योतिर्लिंग ओम्कारेश्वर मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के पास नर्मदा नदी के मध्य ओमकार पर्वत पर स्थित ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर हिंदुओं की चरम आस्था का केन्द्र है. ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ॐकार अर्थात “” ॐ “” का आकार लिए हुए इसलिए इसे ओम्कारेश्वर नाम से पुकारा जाता हैं.
ओम्कारेश्वर की महिमा का उल्लेख स्कंद पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में किया गया है. हिंदुओं में सभी तीर्थों के दर्शन के पश्चात ओम्कारेश्वर के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है. पुराणों के माने तो कोई भी तीर्थयात्री और भक्तजन भले ही सारे तीर्थ कर ले परन्तु जब तक ओम्कारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल यहां नहीं चढ़ता उसके तीर्थ को पूर्ण नहीं माना जाता. पुराणों की माने तो नर्मदा जी के दर्शन के करने से और उसमें स्नान करने से यमुना जी के 15 दिन का स्नान और गंगा जी के 7 दिन का स्नान जितना फल मिलता हैं.
अगर कोई भक्त ओम्कारेश्वर क्षेत्र की तीर्थ यात्रा करता है तो उसे केवल ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन ही नहीं बल्कि वहां बसे अन्य 24 अवतार के भी दर्शन भी करनी चाहिए जिनके नाम है माता घाट (सेलानी), सीता वाटिका, धावड़ी कुण्ड, मार्कण्डेय शिला, मार्कण्डेय सन्यास आश्रम, अन्नपूणश्रीम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओमकार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋण मुक्तेश्वर महादेव, गायत्री माता मंदिर, सिद्धनाथ गौरी सोमनाथ, आड़े हनुमान, माता वैष्णो देवी मंदिर, चांद सूरज दरवाजे, वीरखला, विष्णु मंदिर, ब्रहेश्वसर मंदिर, सेगांव के गजानन, महाराज का मंदिर, काशी विश्वनाथ, नरसिंह टेकरी, कुबेरेश्वर महादेव, चंद्रमौलेश्वर महादेव के मंदिर भी दर्शनीय है.
Omkareshwar Jyotirlinga | ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा :
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ( Omkareshwar Jyotirlinga ) दो स्वरूप में मौजूद हैं जिसमें एक को ममलेश्वर और दुसरे को ओम्कारेश्वर नाम से जाना जाता हैं. ममलेश्वर नर्मदा नदी के दक्षिण तट पर ओम्कारेश्वर से थोड़ी दूर पर स्थित हैं ये दोनों अलग होते हुए भी इसकी गिनती एक ही होती हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद मुनि विंध्य पर्वत पर गए. विंध्याचल ने उनका स्वागत बड़े ही आदर – सम्मान करने के बाद बड़े ही अहंकार भाव के साथ बोले उनके पास किसी भी चीज की कमी नहीं है, हर प्रकार की संपदा हैं. श्री नारदजी अहंकारनाशक कहलाते हैं और उन्होंने विंध्याचल के अहंकार का नाश करते हुए बोले ” विंध्याचल आपके पास सब कुछ हैं लेकिन मेरु पर्वत तुमसे बहुत ऊंचा हैं इस पर्वत के शिखर इतने ऊँचे हो गए हैं कि वो देवताओं के लोकों तक पहुंच चुके हैं, मुझे लगता है कि विंध्याचल तुम्हारे शिखर वहां तक कभी पहुंच नहीं पाएंगे” “ऐसा कहकर नारदजी चले गए लेकिन विंध्याचल को उनकी बात को सुनकर बहुत दुःख हुआ और फिर उन्होंने फैसला किया की वो शिवजी की आराधना करेंगे इसके लिए उसने मिट्टी के शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की कई महीनों तक कठोर तपस्या की. विंध्याचल की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उसे दर्शन और आशीर्वाद देकर विंध्याचल को वरदान मांगने को कहा. विंध्याचल ने भगवान शिव से बोले “अगर आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे कार्य की सिद्धि करने वाली अभीष्ट बुद्धि प्रदान करे” भगवान शिव ने विंध्याचल के मांगे वरदान को पूर्ण किया.इसी समय देवतागण और कुछ ऋषिगण भी वहां पहुँचे और इन सभी ने शिवजी से आग्रह किया कि वहां स्थित ज्योतिर्लिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो जाए इन सबके आग्रह पर ज्योतिर्लिंग दो स्वरूपों में विभक्त हुआ जिसमें एक प्रणव लिंग ओम्कारेश्वर और दूसरा पार्थिव लिंग ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
FAQ – सामान्य प्रश्न
कुल कितने ज्योतिर्लिंग है ?
बारह (12)
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग किस शहर में है?
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के पास नर्मदा नदी के मध्य ओमकार पर्वत पर
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