Jaya Ekadashi Vrat Katha | माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी व्रत किया जाता हैं जो कि भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है मान्यता है कि एकादशी का जन्म श्रीहरि के शरीर से ही हुआ है यही कारण है कि सभी व्रतों में एकादशी व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है कहा जाता हैं कि जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत से मोक्ष मिलने के साथ कभी पिशाच और प्रेत योनि में जन्म नहीं होता हैं. जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने के बाद जया एकादशी व्रत कथा (ekadashi ki katha) को जरूर पढ़ना या फिर सुनना चाहिए तभी पूजा का पूर्ण फल की प्राप्ति होती हैं.
Jaya Ekadashi Vrat Katha | जया एकादशी व्रत कथा :
पद्म पुराण के अनुसार चिरकाल में एक बार स्वर्ग में स्थित नंदन वन में उत्सव को आयोजित किया गया था जिसमें सभी देवगण, सिद्धगण और मुनिगन उपस्थित थे. उत्सव में नृत्य और गायन का कार्यक्रम चल रहा था इसमें नृत्य और गायन को गंधर्व और गंधर्व कन्याएं कर रहे थे कि तभी नृतिका पुष्यवती की दृष्टि गंधर्व माल्यवान पर पड़ी और माल्यवान के यौवन पर नृतिका पुष्यवती मोहित हो गई जिससे वह अपना सुध खो बैठी और अमर्यादित तरीके से नृत्य करने लगी तो वहीं माल्यवान भी बेसुरा गाना गाने लगा जिसके कारण सभा मे उपस्थित सभी लोग क्रोधित हो गए और यह देखकर स्वर्ग नरेश इंद्र भी क्रोधित हो गए और उन दोनों को स्वर्ग से निष्कासित करने के साथ ही श्राप भी दे दिया कि दोनों को अधम योनि प्राप्त हो.
हिमालय में रहकर दोनों ने बहुत समय तक पिशाच योनि में कष्टकारी जीवन को व्यतीत करने लगे. एक बार माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि कि जया एकादशी का दिन आया और माल्यवान व पुष्यवती ने उस दिन अन्न नही खाया जबकि फल खाकर दिन को गुजार दिया उन दोनों को दुःख और भूख के कारण रात्रि जागरण करने के साथ श्रीहरि का स्मरण और सुमिरन भी किया और दोनों की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीहरि नारायण ने पुष्यवती व माल्यवान को प्रेत योनि से मुक्त कर दिया. भगवान विष्णु की कृपा से दोनों को सुंदर शरीर प्राप्त हुआ और फिर दोनों पुनः स्वर्ग लोक चले गए.
पुष्यवती और माल्यवान स्वर्ग पहुचंकर जब वे इंद्र को प्रणाम किया तो इंद्र चौंक गए और उन्होंने पुष्यवती और माल्यवान से पिशाच योनि से मुक्ति का उपाय को पूछा तो माल्यवान ने उनको बताया कि जया एकादशी व्रत के प्रभाव और भगवान विष्णु की कृपा से उनको पिशाच योनि से मुक्ति मिली. इस तरह से जो भी व्यक्ति जया एकादशी का व्रत रखता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं. वह अपने व्रत के पुण्य को पितरों को दान कर सकता है जिससे कि कोई पिशाच, भूत या फिर प्रेत योनि में हो तो उसे मुक्ति मिल सके.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
जया एकादशी व्रत कब मनाई जाती हैं ?
माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी.
भूत प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने वाला कौन सी एकादशी हैं ?
जया एकादशी.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.