Mata Parvati and Ganga | भगवान शिव को देवाधिदेव महादेव के अलावा जगतपति भी कहा जाता है. धार्मिक मान्यतानुसार भगवान शिव का विवाह इस जगत की शक्ति माता पार्वती से हुआ है और माना जाता है कि इन दोनों के संयोजन से ही सृष्टि का संचालन होता है. भगवान शिव और जगतजननी माता पार्वती एक दूसरे के अर्धाग हैं और यह एक दूसरे के बिना अधूरे भी है जहां एक ओर भगवान शिव अनादि के सृजनकर्ता हैं तो वही माता पार्वती जगत शक्ति का मूल स्वरूप हैं.
माता पार्वती हिमालय राज की पुत्री हैं इसलिए यह शैलपुत्री भी कहलाती है तो वहीं माँ गंगा का अवतरण भी हिमालय से हुआ है इन्ही करणों से यह माता पार्वती की बहन मानी जाती है लेकिन एक बार इन दोनों के बीच ऐसी विवाद और अनबन हुआ कि माता पार्वती ने क्रोधित होकर गंगा को श्राप दे दिया जिसके उल्लेख पुराणों में भी मिलता है.
आखिर क्यों माता पार्वती ने गंगा को श्राप दिया :
पौराणिक कथानुसार एक बार भगवान शिव अपने परम निवास स्थान कैलाश पर्वत पर ध्यान मग्न बैठे थे साथ में माता पार्वती भी ध्यान में लीन थी. उस समय शिव और शक्ति का एक साथ मनोहर स्वरूप सुंदर लग रहा था इन दोनों का मनोहर रूप की शोभा को देखकर उनके परम् भक्त नंदी के नेत्रों से आंसू बहने लगे. भगवान शिव को जब अपने भक्त की आंखों से बहते आंसुओं को ज्ञान हुआ तो उन्होंने अपने नेत्र खोलें किंतु महादेव ने जब अपने नेत्र खोले तो उनके समक्ष साक्षात गंगा हाथ जोड़े खड़ी थी. गंगा को अपने समक्ष देखकर भगवान शिव आश्चर्य होते हुए बोले – ” देवी गंगे ! आप ? भगवान शिव के वचन को सुनकर गंगा बोली – हे आदिपुरुष ! मैं आपके रूप को देखकर आप पर मोहित हो गई हूँ, कृपा करके आप मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कीजिए .
माता पार्वती ने जैसे ही गंगा के कहे संवाद को सुना तो वो क्रोधित हो गई जिससे कि उनके नेत्र लाल हो गए और क्रोध में ही बोली – देवी गंगा ! आप हमारी बहन होकर सीमा मत लांघिये, यह मत भूलिए कि देवाधिदेव महादेव हमारे पति हैं. माता पार्वती के इस बातों को सुनकर गंगा ने मजाकिया अंदाज मे बोली – अरे बहन ! क्या फर्क पड़ता है तुम भगवान शिव की भले ही पत्नी हो किंतु महादेव मुझे ही तो अपने शीश पर धारण करते हैं. तुम महादेव के साथ जहां कहीं नहीं जा सकती पर मैं तो वहां भी पहुँच ही जाती हूँ . देवी गंगा के कहे बाते को सुनकर माता पार्वती का क्रोध से मुख भयंकर रूप ले लिया और इसी क्रोध में माता ने गंगा को श्राप देते हुए बोली – गंगे ! तुम मेरी बहन होकर अपनी सीमा लांघी हैं, मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम में मृत देह बहेंगे, जन जन के पाप धोते – धीते तुम स्वयं मैली हो जाओगी जिसके कारण से तुम्हारा रंग भी काला पड़ जायेगा.
माता पार्वती के श्राप को सुनकर गंगा को अपनी गलती का एहसास हुआ और क्षमा याचना के लिए भगवान शिव और माता पार्वती के चरणों में गिर गई और श्राप को वापस लेने की प्रार्थना किया तब देवाधिदेव महादेव ने कहा – हे गंगे ! यह श्राप तो फलित होकर रहेगा किंतु तुम्हारे पश्चाताप से प्रसन्न होकर हम तुम्हें श्राप से मुक्ति देते हैं कि – हे गंगे ! तुम जनमानस के पापों से दूषित होती रहेगी किंतु संतजन के स्नान से तुम्हारी शुद्धि तुम्हें वापस मिलते रहेगी. और तब से इस क्रम के बाद से ही गंगा में स्नान से पाप धुलने लगें और तब से यह भी माना जाता है कि गंगा नदी में डुबकी या स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाने के साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) माता पार्वती किनकी पुत्री कहलाती हैं ?
हिमालय राज.
2) गंगा कहा से अवतरित हुई हैं ?
हिमालय से.
3) माता पार्वती ने किसको श्राप दिया है ?
देवी गंगा.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.