Vishnu Chalisa PDF | भगवान विष्णु जगत के पालनकर्ता हैं, और उनकी आराधना से जीवन में संतुलन, सद्भाव और समृद्धि आती है। विष्णु चालीसा एक भक्तिपूर्ण रचना है, जिसमें भगवान विष्णु की महिमा और उनके दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। यह चालीसा चालीस चौपाइयों से मिलकर बनी है और इसे श्रद्धाभाव से पढ़ने पर व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति और आत्मबल मिलता है।
विष्णु चालीसा का नियमित पाठ मन को शुद्ध करता है और नकारात्मक विचारों को दूर करता है। यह साधक के भीतर श्रद्धा, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा को मजबूत बनाता है। कहा जाता है कि विष्णु जी की कृपा से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और उसके कार्य सफल होते हैं। एकादशी, पूर्णिमा तथा धार्मिक अवसरों पर इसका पाठ विशेष रूप से शुभ फल प्रदान करता है।
जो भक्त सच्चे मन से इस चालीसा का पाठ करता है, उसके जीवन में दिव्यता और मानसिक स्थिरता का विकास होता है। विष्णु चालीसा केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि ईश्वर से आत्मिक जुड़ाव का माध्यम है, जो व्यक्ति को धर्म, सत्य और करुणा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
आइए पढ़े श्री विष्णु चालीसा जिनके एकादशी (ekadashi) के दिन पाठ करने से दुःख, कष्ट और पापों से मुक्ति मिलती हैं. श्री विष्णु चालीसा के PDF को आप डाउनलोड कर अपने मोबाइल या लैपटॉप में रख सकते हैं और नियमित तौर पर इसे पढ़ सकते हैं. लिंक नीचे दिया हुआ है वहां से आप उसे जरूर डाउनलोड कर ले.
Shri Vishnu Chalisa | श्री विष्णु चालीसा

श्री विष्णु चालीसा (Shri Vishnu Chalisa Hindi- PDF Download) हिंदी PDF डाउनलोड करें, नीचे लिंक दिया हुआ है.
। । दोहा। ।
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
। । चौपाई। ।
नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥1॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥2॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥3॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥4॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥5॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥6॥
आप वाराह रूप बनाया, हरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥7॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥8॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥9॥
वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥10॥
असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लडाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥11॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥12॥
देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥13॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥14॥
हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥15॥
चहत आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥16॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥17॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाईहर्षित रहत परम गति पाई ॥18॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥19॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥20॥
| PDF Name | Shri Vishnu Chalisa PDF |
| No. of Pages | 05 |
| Page Content | श्री विष्णु चालीसा |
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