Importance of crow in Pitru Paksha | पितृ पक्ष पितरों को समर्पित होता है जिसकी शुरुआत पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से होकर अश्विन माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक होती है और हिंदू धर्म में पितृपक्ष को पितरों को प्रसन्न और संतुष्ट करने वाला पर्व माना गया है. पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है और श्राद्ध कर्म पितरों की मृत्यु के तिथि के अनुसार होता है लेकिन पितृ पक्ष के कई नियम होते हैं जिनका विधि पूर्वक पालन किया जाना चाहिए क्योंकि मान्यता है कि अगर पितृ प्रसन्न हो जाए तो आशीर्वाद देकर अपने धाम को लौट जाते हैं और जिस पर पितरों की कृपा हो जाए तो उसे जीवन में सुख समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है. पितृपक्ष के समय ब्राह्मण को भोजन कराके दान करना शुभ माना जाता है तो वहीं पितृ पक्ष में गाय और कौवे का भी विशेष महत्व होता है और श्राद्ध के बाद कौवे को भोजन करना बहुत ही आवश्यक माना जाता है.
Why are crows fed during Pitru Paksha? | पितृ पक्ष में कौवे को भोजन क्यों कराया जाता है :
पितृपक्ष में कौवे को भोजन करने के रहस्य के पीछे एक पौराणिक कथा हैं जो कि त्रेतायुग भगवान श्रीराम से जुड़ा हुआ.कथानुसार त्रेतायुग में ही इंद्र के पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धारण किया था और इसी कौवे अवतार में ही उन्होंने सीता जी के पैर में चोंच मार दी और यह घटना भगवान श्रीराम ने देख लिया और श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दिया तब कौवे अवतार जयंत ने भगवान श्री राम से क्षमा मांगी और फिर श्री राम ने उसे क्षमा दान देते हुए यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया गया किसी के द्वारा भोजन उनके पूर्वजों को मिलेगा तभी से कौवे को श्राद्ध कर्म में भोजन कराने की प्रथा की शुरुआत हुई और यही कारण है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध के दौरान पहले कौवें को भोजन कराया जाता हैं धार्मिक मान्यता है की कौवे द्वारा किया गया भोजन पितरों तक पहुंचता है और वह संतुष्ट होकर अपना आशीर्वाद व कृपा अपने वंशज को देते हैं इसके साथ यह भी माना जाता हैं कि पितृ पक्ष में अगर कौवा भोजन लेकर गाय की पीठ पर अपनी चोंच को रगड़ता हैं तो काम पूरा होने का प्रमाण मिलता हैं.
Importance of crow in Pitru Paksha | पितृ पक्ष में कौवें के महत्व :
1) धार्मिक मान्यतानुसार कौवें को यम का प्रतीक माना गया है और पितृ पक्ष में कौवें को खाना खिलाने से पितृ प्रसन्न होते हैं और सुख समृद्धि का आशीर्वाद दिया करते हैं. कौवें का भोजन ग्रहण करना जहां पितरों की प्रसन्नता का प्रतीक होता है तो वहीं पितृ पक्ष में दिया हुआ भोजन कौवें को ग्रहण नहीं करना पितृ की नाराजगी भी मानी जाती हैं.
2) मान्यता है कि किसी मनुष्य की मृत्यु होने पर उसका कौआ योनि में जन्म होता है और इसी कारण से कौवे के माध्यम से पितरों तक भोजन पंहुचता हैं लेकिन अगर कौवा भोजन नहीं खाता तो ऐसा माना जाता है कि पितर प्रसन्न और संतुष्ट नहीं है.
3) मान्यता है कि पितृ पक्ष में कौवें को भोजन खिलाने से सिर्फ पितरों को ही प्रसन्नता नहीं होती जबकि कुंडली से पितृ दोष भी दूर होता हैं कहा जाता हैं कि पितृ पक्ष में पिंड दान करने और कौवें को छूने से पितृ दोष से मुक्ति मिलने के साथ साथ कालसर्प दोष भी दूर होता हैं.
4) मान्यता है कि कौवा कभी ना तो अपनी मौत मरता है और ना ही किसी बीमारी से ही मरता है बल्कि आकस्मिक मौत होती हैं इसके साथ यह भी माना जाता है कि जिस दिन कौवें की मृत्यु होती है तो उस दिन बाकी साथी कौवा खाना नही खाते हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) पितृ पक्ष में किसको पहले भोजन खिलाना शुभ होता है ?
कौवें को.
2) पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष कब से शुरु होता है ?
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की अमावस्या.
3) कौवा किसका प्रतीक माना जाता है ?
यमराज का.
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