Geeta Gyan | श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा ग्रँथ हैं जिसमें बताएं गया हर एक ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध भूमि पर उस समय दिया जब अपनों को देखकर अर्जुन का मन विचलित हो गया था और गीता का उपदेश अर्जुन को देने का उद्देश्य मात्र इतना ही था कि अर्जुन को आत्मबल की प्राप्ति हो और वह पूरे आत्मविश्वास के साथ युद्ध को लड़े और विजय को प्राप्त करें. भगवान श्रीकृष्ण ने उस युग में जो ज्ञान व उपदेश दिया वह आज भी कलयुग में मनुष्यों का मार्गदर्शन करती है क्योंकि श्रीमद्भगवद्गीता (भगवान श्री कृष्ण के गीता उपदेश) केवल एक ग्रँथ ही नहीं जबकि वर्तमान समय में मनुष्यों के लिए एक मार्गदर्शक के समान कार्य करती हैं.
धार्मिक मान्यता है कि जो मनुष्य श्रीमद्भगवद्गीता के सार को समझ लिया उसे अपने जीवन में हर तरह की मुश्किलों से निकलने का राह मिल गया और उसका जीवन सार्थक हो गया लेकिन जिन मनुष्यों का मन सदैव भटकता रहें, बेचैन रहें और उन्हें हर समय कोई न कोई भय सताते रहें तो ऐसे मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के इन पांच उपदेशों को पढ़ें जिससे कि उनको हर तरह के तनाव से मुक्ति मिलने के साथ ही मानसिक शांति कि भी प्राप्ति हो.
जानते हैं गीता के उन उपदेशों को जो हर तनाव को मुक्त करने के साथ शांति का अनुभव कराते हैं :
1) मोह से बंधन से दूर रहें :
श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि मनुष्य को कभी भी किसी वस्तु के प्रति मोह नहीं रखना चाहिए वैसे वर्तमान समय में मनुष्य को मोहित करने वाली बहुत सारी वस्तुएं हैं किंतु गीता में कहा गया है कि किसी भी वस्तु से ज़रूरत से ज्यादा मोह और लगाव के वजह से ही मनुष्य के मन में उलझनें और तनाव पैदा होती हैं इसलिए किसी पर ना आश्रित रहें और ना ही किसी के प्रति मोह को ही रखें.
2) बुद्धि और विवेक से कार्य करें :
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार मनुष्य को हर कार्य बुद्धि और विवेक से करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उनको ना केवल कार्य में मिलेगी बल्कि पहले से सोच – समझकर कार्य को करने से मानसिक तनाव नहीं आती हैं. मनुष्य बुद्धि और विवेक से किए गए के कार्य में सफलता भी मिलती हैं जिससे मन को शांति भी बनी रहती हैं.
3) कर्म करें, फल की इच्छा किए बिना :
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बहुत ही सरल शब्दों में कहा है कि मनुष्य को सदैव अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. फल की इच्छा किए बिना मनुष्य को कर्म करना चाहिए क्योंकि जब मनुष्य निस्वार्थ भाव से कर्म करता है और फल की चिंता नहीं करता है तो उसे सफल नहीं होने का भय नहीं सताता और मनुष्य शांत चित्त से अपने कर्मों को करता रहता है जिससे उसका मन सदैव शांत रहता हैं.
4) चिंता को छोड़कर भगवान की शरण में जाएं :
श्रीमद्भगवद्गीता के 18वें अध्याय में स्वंय भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो मनुष्य अपने सभी धर्मों को छोड़कर भगवान की शरण लेते हैं ऐसे मनुष्यों के सभी प्रकार के भय, कष्ट और चिंताएं स्वंय भगवान हर लेते हैं. महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी शरण में आने को कहा था. श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम सभी धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ मैं तुमको सभी पापों से मुक्त कर दूंगा इसलिए व्यर्थ की चिंता मत करो.
5) भाग्य के भरोसे नहीं रहें, पुरुषार्थ करें :
श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने संदेश दिया है कि कभी भी मनुष्य को अपने भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए क्योंकि केवल भाग्य के भरोसे बैठकर किसी को कुछ नहीं प्राप्त होता हैं इसलिए सदैव पुरुषार्थ करे कहा जाता हैं कि जो मनुष्य मेहनत करता हैं भाग्य भी उसका साथ देता है. अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने उपदेश देते हुए कहा कि इंसान अपने पुरुषार्थ के बल पर अपने भाग्य बदलने की शक्ति रखता है इसलिए कभी भी पुरुषार्थ करने से पीछे नहीं हटना चाहिए.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश क्यों दिया था ?
अर्जुन को आत्मबल मिलें और युद्ध में विजय की प्राप्ति हो.
2) भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा गीता उपदेश किस ग्रँथ में समाहित हैं ?
श्रीमद्भगवद्गीता ग्रँथ.
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