Shri Saraswati Chalisa PDF Download | सनातन धर्म में मां सरस्वती को ज्ञान और कला की देवी कहा गया है. धार्मिक मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती की रचना सृष्टि से अज्ञानता को समाप्त करने के लिए की थी. जिस मनुष्य को मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है उसके जीवन में धन-बुद्धि और ज्ञान-विवेक की कभी कोई कमी नहीं होती है वे हमेशा सुख और सौभाग्य से भरपूर जीवन जीता है. मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा में श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं, तथा जीवन में सकारात्मकता और ज्ञान विवेक की प्राप्ति होती है. मां सरस्वती की पूजा के लिए गुरुवार के दिन को बहुत ही उत्तम माना जाता है और प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी और दीपावली के दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती है.
श्री सरस्वती चालीसा पाठ करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं जैसे कि मन शांत और एकाग्रचित होता है, इसीलिए विद्यार्थियों को इसका पाठ अवश्य करना चाहिए जिससे उनकी शिक्षा में उनका मन एकाग्रचित हो सके. यदि आपके जन्म कुंडली में बुध ग्रह कमजोर है तो श्री सरस्वती चालीसा का प्रत्येक दिन पाठ करने से आपका बुध ग्रह मजबूत होता है और साथ ही वाणी, संगीत, व व्यापार में भी तरक्की मिलती है.
श्री सरस्वती चालीसा को आप ऑनलाइन पढ़ भी सकते है और साथ ही श्री सरस्वती चालीसा PDF (Shri Saraswati Chalisa PDF in Hindi) को अपने फ़ोन में डाउनलोड (pdf download free) भी कर सकते है और पढ़े बिना इंटरनेट के.
Shri Saraswati Chalisa PDF Download | श्री सरस्वती चालीसा
श्री सरस्वती चालीसा (Shri Saraswati Chalisa – PDF Download) हिंदी PDF डाउनलोड करें, नीचे लिंक दिया हुआ है.
Shri Saraswati Chalisa PDF in Hindi
॥ अथ श्री सरस्वती चालीसा ॥
॥ दोहा ॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि । बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि ॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव,महिमा अमित अनंतु । दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु ॥
॥ चालीसा ॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी । जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ॥
जय जय जय वीणाकर धारी । करती सदा सुहंस सवारी ॥
रूप चतुर्भुज धारी माता । सकल विश्व अन्दर विख्याता ॥
जग में पाप बुद्धि जब होती । तब ही धर्म की फीकी ज्योति ॥
तब ही मातु का निज अवतारी । पाप हीन करती महतारी ॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा । तव प्रसाद जानै संसारा ॥
रामचरित जो रचे बनाई । आदि कवि की पदवी पाई ॥
कालिदास जो भये विख्याता । तेरी कृपा दृष्टि से माता ॥
तुलसी सूर आदि विद्वाना । भये और जो ज्ञानी नाना ॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा । केव कृपा आपकी अम्बा ॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी ।दुखित दीन निज दासहि जानी ॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता । तेहि न धरई चित माता ॥
राखु लाज जननि अब मेरी । विनय करउं भांति बहु तेरी ॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा । कृपा करउ जय जय जगदंबा ॥
मधुकैटभ जो अति बलवाना । बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना ॥
समर हजार पाँच में घोरा । फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ॥
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला ।बुद्धि विपरीत भई खलहाला ॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी । पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता । क्षण महु संहारे उन माता ॥
रक्त बीज से समरथ पापी । सुरमुनि हदय धरा सब काँपी ॥
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा । बारबार बिन वउं जगदंबा ॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा । क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा ॥
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई । रामचन्द्र बनवास कराई ॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा । सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा ॥
को समरथ तव यश गुन गाना । निगम अनादि अनंत बखाना ॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी । जिनकी हो तुम रक्षाकारी ॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी । नाम अपार है दानव भक्षी ॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा । दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता । कृपा करहु जब जब सुखदाता ॥
नृप कोपित को मारन चाहे । कानन में घेरे मृग नाहे ॥
सागर मध्य पोत के भंजे । अति तूफान नहिं कोऊ संगे ॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में । हो दरिद्र अथवा संकट में ॥
नाम जपे मंगल सब होई । संशय इसमें करई न कोई ॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई । सबै छांड़ि पूजें एहि भाई ॥
करै पाठ नित यह चालीसा । होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा ॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै । संकट रहित अवश्य हो जावै ॥
भक्ति मातु की करैं हमेशा । निकट न आवै ताहि कलेशा ॥
बंदी पाठ करें सत बारा । बंदी पाश दूर हो सारा ॥
रामसागर बाँधि हेतु भवानी । कीजै कृपा दास निज जानी ॥
॥ दोहा ॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप ।डूबन से रक्षा करहु, परूँ न मैं भव कूप ॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु । राम सागर अधम को, आश्रय तू ही देदातु ॥
॥ इति श्री सूर्य चालीसा पाठ समाप्त ॥
PDF Name | Shri Saraswati Chalisa PDF |
No. of Page | 05 |
Page Content | Shri Saraswati Chalisa |
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