Maa Brahmacharini | माँ दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप के रुप में पूजन किया जाता हैं ब्रह्मचारिणी माता का. यहां ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या से है. दुर्गा माता का ये स्वरुप भक्तों और साधक को असीम कृपा का फल देने वाला हैं और इस माता की आराधना से तप, त्याग, वैराग्य सदाचार और संयम में वृद्धि होती हैं. ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप की चारणि अर्थात तप की आचरण करने वाली देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिमर्य और अत्यंत भव्य है. इस देवी माता के दाएं हाथ में जाप करने वाली माला हैं और बाएं हाथ में कमंडल हैं.
Maa Brahmacharini – पौराणिक कथा :
पुर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था जिसने नारद जी के उपदेश सुनकर भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिये कठिन तपस्या की थी और इसी कठिन तपस्या के कारण इनका नाम तपशररिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम पड़ा. इस माता ने लंबे समय तक लगभग एक हज़ार सालों तक सिर्फ फल-फूल खाकर और जमीन पर रहकर जीवन का निर्वाह किया. बहुत सालों तक कठोर उपवास रखें और खुले आकाश के नीचे बारिश और धूप के घोर कष्ट को सहे. तीन हज़ार वषों तक सूखे हुए बेलपत्र खाये और भगवान शंकर की आराधना करती रही पर कुछ समय बाद तो इन्होंने सूखे बेलपत्र खाना भी त्याग दिया जिसके कारण नाम अपर्णा नाम पड़ गया.
कई हज़ारों सालों तक निर्जल और निराहार रहकर तपस्या करने के कारण इनका शरीर क्षीण हो गया. देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया और और प्रसन्न होकर माता ब्रह्मचारिणी को आशीर्वाद देते हुए कहा -है देवी आज तक तुम्हारे सिवाय किसी ने इस प्रकार की कठोर तपस्या नहीं की ये तुम्हीं से संभव था, तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण हुई और भगवान शंकर तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे. अब तपस्या छोड़कर वापस घर लौट जाओ जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं.
इस देवी की कथा से हमें ये सीख मिलती है कि जीवन के कठिन संघर्षों से कभी भी मन विचलित नहीं होना चाहिये. माँ ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini) देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है.
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