Maa Kali | गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा अर्चना और उपासना की जाती हैं. दस महाविद्या की पहली अधिष्ठात्री काली माँ हैं जिसकी गुप्त नवरात्र के पहले दिन उपासना और आराधना की जाती हैं. काली मां को भयंकर, अंधकार और श्मशान की देवी कहा जाता हैं मान्यता है कि पूरे विधि- विधान से काली मां की पूजा करने से घर में सुख – समृद्धि बनी रहने के साथ परेशानियां भी दूर होती हैं कहा जाता है कि संसार में जितने भी कष्ट, विपत्तियां और आसुरी शक्तियां होती हैं वे सब काली मां का नाम लेते ही समाप्त हो जाते हैं.पौराणिक कथानुसार काली मां को जगत जननी माँ दुर्गा का रूप कहा जाता हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति जगत जननी माँ दुर्गा के ललाट से हुई थी.
जानते हैं कैसे हुआ दस महाविद्याओं की उत्पत्ति :
भगवती सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक बार यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने अपनी पुत्री सती और उनके पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. सती को इससे बहुत बुरा लगा लेकिन उसने सोचा कि कोई बात नहीं, पिता का घर हैं. नहीं बुलाया तो कोई बात नहीं, मैं अवश्य जाऊंगी किंतु भगवान शिव ने उनको मना किया कि बिन बुलाएं कहीं नहीं जाते पर फिर भी भगवती सती ने जिद पकड़ लिया और अपनी दस महाशक्ति को प्रकट करकेभगवान शिव को अपना फैसला सुनाते हुए संबोधित किया – कृष्ण रंग की काली, आपके ऊपर नीले रंग की तारा, पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व – दक्षिण में धूमावती, दक्षिण – पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम – उत्तर में मातंगी और उत्तर – पूर्व में षोड़शी एवं मैं खुद भैरवी स्वरूप में आपके समक्ष अभयदान देने के लिए खड़ी हूँ. यही दस महाविद्या यानि कि दस शक्ति है और माँ भगवती ने इन्हीं दस शक्तियों के साथ असुरों के साथ युद्ध किया था किंतु जब असुरों ने कहा कि तुम तो इन अनेकानेक शक्तियों के साथ संग्राम कर रही हो अकेले लड़ों तो जाने तब देवी भगवती ने इन सारे शक्तियों को एकांक यानि कि एक कर लिया.
जानते हैं दस महाविद्या की पहली शक्ति माँ काली के स्वरूप को :
गुप्त नवरात्र का पहला दिन माँ काली को समर्पित है और यह दस महाविद्या में प्रथम रूप वाली है. काली मां को भयंकर, अंधकार और श्मशान की देवी कहै जाने के साथ इनके चार रूप और भी माने जाते हैं – श्मशान काली, दक्षिणा काली, मातृ काली एवं महाकाली हैं और इनका प्रमुख अस्त्र – शस्त्र त्रिशूल और तलवार हैं तथा इनकी पूजा मुख्य रूप से शुक्रवार के दिन किया जाता हैं. माँ काली अभंयकारी और मंगलकारी होने के साथ यह असुरों का नाश करने वाली है मान्यता है कि इनकी पूजा उपासना करने वाले साधक के समक्ष आसुरी शक्तियां तेजहीन रहती हैं और इसके अलावा साधक को रूप, यश और जय की प्राप्ति के साथ ही सांसारिक बाधाएं भी दूर करती हैं. काली मां ने चंड – मुंड का संहार किया है इसलिए इनका नाम चामुण्डा होने के साथ यह महिषासुरमर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली भी कहलाती हैं. यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुण्डमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग तो दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के सामने प्रकट होती हैं.
जानते हैं काली माँ की उत्पत्ति कैसे हुई :
मान्यता है कि काली माँ की उत्पत्ति जगत जननी माँ भगवती दुर्गा के ललाट से हुई थी. पौराणिक कथानुसार शुम्भ- निशुम्भ असुरों के आतंक के प्रकोप इतना बढ़ गया था कि उन दोनों न अपने बल, छल और असुरों शक्तियों के द्वारा देवराज इंद्र के साथ समस्त देवताओं को हराकर स्वयं उनके स्थान को छीनकर उन्हें अपने प्राणों की रक्षा के लिए भटकने के लिए छोड़ दिया. असुरों के आतंक से दुखी देवताओं को स्मरण आया कि जब महिषासुर ने इंद्रपुरी पर अधिकार किया था तब जगत जननी दुर्गा ने ही उनकी सहायता किया था यह सोचकर सभी देवतागण दुर्गा का आह्वान करने लगे.
देवतागण के इस प्रकार आह्वान से देवी दुर्गा प्रकट हुई और शुम्भ – निशुम्भ के सबसे शक्तिशाली चंड – मुंड असुरों के साथ घमासान युद्ध करके उन दोनों का नाश कर दिया. चंड – मुंड के देवी दुर्गा के द्वारा युद्ध में मारे जाने और अपनी विशाल सेना का संहार हो जाने पर असुरराज शुम्भ ने बहुत क्रोधित होकर अपनी समस्त सेनाओं को युद्ध में जाने को कहते हुए कहा कि आज छियासी उदायुद्ध नामक असुर सेनापति और कम्बु असुर के चौरासी सेनानायक अपनी वाहिनी से घिरे युद्ध के लिए प्रस्थान करें. कोटिवीर्य कुल के पचास, धौम्र कुल के सौ असुर सेनापति मेरे आज्ञा से सेना और कालक, दौहृद, मौर्य एवं कालकेय असुरों सहित युद्ध के लिए कुछ करें. बहुत ही क्रूर और दुष्टाचारी असुरराज शुम्भ अपने साथ इन सहस्त्र असुरों वाली भयानक असुरसेना को लेकर निकला. देवी दुर्गा ने जब भयानक असुरसेना को युद्ध स्थल में आते देखकर अपनी धनुष से ऐसी टँकार दिया जिसकी ध्वनि से आकाश एवं संपूर्ण पृथ्वी गूंज उठा, पहाड़ों में दरार पड़ गई. देवी माँ के सिंह ने भी दहाड़ना शुरू किया इसके पश्चात जगत जगनी जगदंबिका ने घन्टे के स्वर से उस ध्वनि को दुगुना कर दिया. धनुष, सिंह और घण्टे की ध्वनि से संपूर्ण दिशाएं गूंज उठी इस भयंकर नाद को सुनकर असुर सेना ने देवी के वाहन सिंह और काली मां को चारों ओर से घेर लिया.
असुरों के संहार और देवतागण के कष्ट से मुक्ति के लिए परमपिता ब्रह्माजी, विष्णु, महेश, कार्तिकेय, इन्द्रादि देवों की शक्तियों ने रूप को धारण किया और संपूर्ण देवों के शरीर से अनंत शक्तियां निकलकर अपने पराक्रम व बल के साथ माँ जगदम्बा दुर्गा के पास पहुंची तब समस्त शक्तियों से घिरे शिवजी ने देवी जगदम्बा से कहा – “मेरी प्रसन्नता के लिए तुम इस संपूर्ण असुर दलों का सर्वनाश करों”. तब देवी जगदम्बा के शरीर से भयानक उग्र रूप धारण करके शक्ति रूप में चंडिका देवी प्रकट हुई जिसके स्वर में सैकड़ों गीदड़ों के समान आवाज आती थी. असुरराज शुम्भ – निशुम्भ बहुत क्रोधित होकर देवी जगदम्बा पर धनुष, बाण, शक्ति, त्रिशूल, फरसा जैसे अस्त्रों – शास्त्रों के द्वारा प्रहार करने आरंभ किया तब देवी दुर्गा ने अपने धनुष की टंकार और अपने बाणों से उसके सभी अस्त्रों – शास्त्रों को काटा जो उनकी ओर बढ़ रहे थे. इसके पश्चात काली मां ने अपने शत्रुओं को अपने शूलादि के प्रहार द्वारा आक्रमण करती हुई और खड्ग से कुचलती हुई युद्धभूमि में विचरने लगी. समस्त असुरों चंड मुंडादि का वध करने के बाद अंत में असुर रक्तबीज को भी मार गिराया जिसके लिए काली मां ने शक्ति का यह अवतार लिया था. जब काली मां का गुस्सा शुम्भ – निशुम्भ का वध करने के बाद भी शांत नहीं हुआ तब भगवान शिव इनके इस गुस्से को शांत करने के लिए काली मां के रास्ते में लेट गए तब काली मां का पांव भगवान शिव के सीने पर पड़ा और शिवजी पर पांव रखते ही काली मां का क्रोध शांत होने लगा.
काली मां की पूजा विधि को : –
गुप्त नवरात्रि के प्रथम दिन काली मां की पूजा अर्चना के लिए सरल नियमो को अपनाने के साथ पूरी श्रद्धा, निष्ठा और विश्वास मन से पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना शुभ फलदायक होता हैं. स्नानादि के बाद काली मां को लाल रंग के पुष्प और अक्षत को अर्पित करके धूप एवं घी का दीपक को जलाएं और काली मां को भोग में मिठाई, पंचमेवा, पांच तरह के फल के साथ गुड़ को चढ़ाएं मान्यता है कि काली मां की पूजा में गुड़ का विशेष महत्व होता हैं. गुप्त नवरात्रि की पूजा को सदैव गुप्त रूप से करना चाहिए गृहस्थ लोगों भी यह पूजा कर सकते हैं लेकिन किसी को बिना बताएं.
जानते हैं काली मां के मंत्रों को :
काली मां की पूजा में इन मंत्रों का जाप करना चाहिए :
1) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके नमः
2) ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे :
3) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) गुप्त नवरात्रि के प्रथम दिन किस देवी माँ की साधना किया जाता हैं ?
काली मां.
2) काली मां के चार रूपों के क्या नाम है ?
श्मशान काली, दक्षिणा काली, मातृ काली और महाकाली.
3) काली मां की उत्पत्ति कैसे हुई थी ?
जगत जननी माँ दुर्गा के ललाट से.
4) काली मां ने किन असुरों का वध किया है ?
रक्तबीज और चंड – मुंड.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.